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Updated: 03 जुलाई, 2015 02:37 PM
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रेसुल पूकुट्टी, सईद मिर्जा, किरण राव, रजत कपूर और पीयूष मिश्रा. सब बड़े नाम हैं. एक साथ जुट गए हैं, 'युद्धिष्ठिर' के खिलाफ. इन्हें यह पसंद नहीं कि 'युद्धिष्ठिर' जैसा कोई भी छुटभैया अभिनेता FTII (फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया) का बॉस बना दिया जाए. जी हां, महाभारत के 'युद्धिष्ठिर' यानी गजेंद्र चौहान के खिलाफ FTII के विद्यार्थियों के साथ-साथ अब फिल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े नाम भी एकजुट हो गए हैं. इन लोगों को गजेंद्र चौहान का इतने बड़े पोस्ट पर बैठना पसंद नहीं है.  

'युद्धिष्ठिर' में सिनेमा को दूर तक ले जाने की समझ नहीं
FTII स्टूडेंट एसोसिएशन का आरोप है कि गजेंद्र चौहान के पास इतने प्रतिष्ठित संस्थान का प्रमुख बनने और भारतीय सिनेमा को नई दिशा देने की दृष्टि या पात्रता नहीं है. गोविंद निहलानी का भी यही कहना है कि चौहान से पहले बड़े-बड़े नाम इस संस्थान के प्रमुख बने थे. उन लोगों को सिनेमा और फिल्म-मेकिंग की समझ थी. आरोप शायद सही हो सकते हैं. लेकिन वह कौन सा लिटमस टेस्ट है, जो किसी एक्शन से पहले ही रिजल्ट बता देता है. कोई इंसान अभिनेता अच्छा नहीं है, इसलिए किसी संस्थान को चलाने में भी सक्षम नहीं होगा, यह तर्क, तर्क की कसौटी पर सही नहीं है.

'युद्धिष्ठिर' ने एडल्ट सिनेमा में काम किया
'युद्धिष्ठिर' का विरोध कर रहे एक छात्र के हाथ में एक तख्ती है, जिसमें गजेंद्र चौहान के स्मूच लेते सीन हैं. नारा लगाया जा रहा है - 'युधिष्ठिर हमें धर्म मत सिखाओ'. मानसिक दिवालियेपन की निशानी. फिल्म के स्टूडेंट अगर स्मूच करते अभिनेता का विरोध कर रहे हैं तो अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख, आमिर, रितिक, इमरान को तो कब का देश निकाला दे दिया जाना चाहिए था. प्लीज इस पर ये सड़ा वाला तर्क मत दीजिएगा कि इनकी फिल्मों में कहानी की डिमांड होती है स्मूच और 'युद्धिष्ठिर' की फिल्मों में जबरन ठूंसा हुआ. वैसे इसी देश ने सनी लियोन को भी 'बेबी डॉल मैं सोने दी' माना है.   
     
सफल लोग जब दूसरे फील्ड में होते हैं महा-फ्लॉप
अमिताभ बच्चन तो सदी के अभिनेता माने जाते हैं, नेता हालांकि बुरे साबित हुए. अजय जाडेजा अच्छे क्रिकेटर थे, अभिनेता महा फ्लॉप. रेशमिया सफल संगीतकार रहे पर अभिनेता उतने ही फिसड्डी. कहने और समझने की बात यह है कि किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके पूर्व के कार्यों से करने पर धोखा खा सकते हैं. हो सकता है कि गजेंद्र चौहान अव्वल दर्जे के बेकार कलाकार थे. पर इससे कहां साबित होता है कि उनमें किसी संस्थान के प्रबंधन वाले गुण नहीं हैं.

किसी संस्थान के प्रमुख का मैनेजर होना अहम है
विषय का जानकार सबसे टॉप पोस्ट पर पहुंच जाए, ऐसा कम ही देखने में आया है. इसके पीछे कारण बहुत सारे होते हैं. वित्तमंत्री जरूरी नहीं कि वित्तीय मामलों का जानकार हो, कृषि मंत्री किसान ही हो. स्कूल-कॉलेज के प्रिंसिपल किसी एक विषय के जानकार होते हैं, लेकिन क्या वहां सिर्फ उसी विषय की पढ़ाई होती है या दूसरे विषय के जानकार प्रोफेसरों-शिक्षकों को नीचा दिखाने के लिए किसी एक को टॉप पोस्ट दे दिया जाता है? ऐसा बिल्कुल नहीं है. यह प्रबंधन से जुड़ा मामला होता है. लाइन ऑफ कमांड का मामला होता है.

'युद्धिष्ठिर' से पहले जिन बड़े लोगों ने FTII की इतनी सेवा की, उन्हें सम्मान. अब गजेंद्र चौहान को भी मौका दें. पॉर्न-स्मूच जैसे छिछले मुद्दों पर एक इंसान को जज करने की भूल न करें. याद रखें कि आप ही वो लाग हैं जो अभिनेता के बच्चों को अभिनेता और नेता के बच्चों को नेता मान कर सर-आंखों पर बैठाते हैं. 'युद्धिष्ठिर' तो फिर भी सीरियल्स-फिल्मों से जु़ड़े रहे हैं.

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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