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Updated: 16 जून, 2020 11:22 AM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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एक कलाकार कितनी कड़ी मेहनत और लगन के साथ लोगों के दिल में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हो पाता है. कलाकार के चाहने वाले भी उसे कितना मान और सम्मान देते हैं. कहते हैं कि एक कलाकार तो बस कलाकार होता है. उसका धर्म और उसके जाति पाति से उठकर उसके काम की वजह से लोग उसको पंसद करते हैं. तभी तो किसी भी कलाकार से जुड़ी कोई भी खुशी का लम्हा हो तो चाहने वालों का हुजूम उमड़ पड़ता है. जन्मदिन का मौका हो या फिर कलाकार के शूटिंग पर होने की खबर, चाहने वाले तो बस एक दीदार के लिए अपना ज़रूरी से ज़रूरी काम छोड़ दिया करते हैं और अगर उसी चहेते कलाकार की मौत की खबर सुन लेते हैं तो उनके चाहने वालों के साथ साथ वह लोग भी सदमे में आ जाते हैं जो उस कलाकार को जानते भर हैं. इंसानियत का तकाज़ा भी यही कहता है कि किसी भी अच्छे इंसान की मौत की खबर सुनो तो अफसोस करो और उसके परिवार को सांत्वना दो किसी की मौत पर हंसना कोई भी धर्म नहीं सिखाता है. लेकिन कुछ ऐसे नीच और घटिया किस्म के लोग भी होते हैं जो किसी की मौत पर धार्मिक कट्टरता के कारण खुश हो जाते हैं. किसी की बीमारी का इलाज तो मुमकिन होता है लेकिन किसी की गंदी मानसिकता को कोई कितना भी सुधारने की कोशिश कर ले वह नहीं सुधर पाती है.

साम्प्रदाकिताइरफ़ान और ऋषि कपूर के बाद अब साम्प्रदाकिता फैलाने वालों को सुशांत की मौत के रूप में नया चारा मिला है धर्म हर किसी को अच्छा इंसान बनने के लिए कहता है. दुनिया का कोई भी धर्म हो वो अव्वल नंबर पर इंसानियत की ही शिक्षा देता है. लेकिन जो धार्मिक कट्टरता के लोग होते हैं उनको इंसानियत की कोई भी परवाह नहीं होती है. वह तो हमेशा अपनी गंदी मानसिकता का खुलेआम दिखावा करते हैं. ऐसे लोग किसी की मौत पर श्रद्धांजलि अर्पित करना तो दूर बल्कि खुशी का इजहार करते हैं.

मुझे नहीं पता कि ये अपने आपको धर्म का ठेकेदार समझने वाले एक दूसरे के लिए इतना नफरत और दिमाग में इतना ज़हर कहाँ से भर लेते हैं. लेकिन लोकतंत्र के नाम पर बोलने की आज़ादी के आड़ में यह बड़े ही आसानी से अपने इसी बोल के चलते समाज में ज़हर बोने का काम भी करते हैं.

बॅालीवुड में अभी हाल ही में तीन दिग्गज कलाकारों की मौतें हुयी हैं और तीनों ही कलाकार सर्वश्रेष्ठ थे. तीनों ही कलाकारों ने देश के बाहर भी हिन्दुस्तान का नाम रौशन किया था. एक दो नहीं करोड़ो चाहने वाले थे. ये तीन नाम अभिनेता इरफान खान, ऋषि कपूर और सुंशात सिंह राजपूत के हैं. तीनों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. लेकिन दूसरी ओर कुछ मानसिक रूप से बीमार लोग अपनी ओछी हरकतों से बाज नहीं आए.

तीनों ही दिग्गज कलाकारों की मौत पर जहां एक तरफ पूरा देश सांत्वना भरी बातें लिख रहा था तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी भद्दे किस्म के लोग थे जो कलाकार की मौत वाले दिन ही नफरत की उल्टी करना बेहतर समझ रहे थे.

इरफान खान

इरफान खान जैसा कलाकार सभी तरह के लोगों को खूब पसंद आया. हर वर्ग के लोगों को अपने अभिनय का लोहा मनवाया. जब ही तो उसके चाहने वालों में खूब बड़े बड़े नाम भी शामिल थे. अभिनेता की मौत एक बीमारी के चलते हुयी और समय से बहुत पहले ही वह दुनिया को अलविदा कह गए. उनके देहान्त वाले दिन लोग इतने सदमे में थे जैसे कोई उनका अपना मर गया हो.

न धर्म न जाति न वर्ग बल्कि समूचा हिन्दुस्तान देश के इस कलाकार की मौत पर गमगीन था लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे जो इरफान की जिंदगी और उनके धार्मिक विचारों को कठघरे में खड़ा कर रहे थे. एक ओर जहां इरफान का अंतिम क्रियाक्रम किया जा रहा था तो दूसरी ओर धार्मिक कट्टरता के लोग उसे अनाप शनाप बक रहे थे. वह लोग इरफान को इसलिए घेर रहे थे क्योंकि इरफान के विचार उनके धर्म उनकी सोच के साथ मेल नहीं खा रहे थे.

ये कैसी इंसानियत है कि कोई इंसान मर जाए और उसकी मौत पर लोग खिल्लियां मार कर हस रहे हों क्या वह इंसान इंसान कहलाए जाएंगें. इरफान की मौत पर उनको जिहादी, काफिर, नास्तिक सब कुछ कहा गया. क्या यह गंदी मानसिकता की पहचान नहीं है.

ऋषि कपूर

एक ऐसा नगीना जिसकी अदाकारी के किस्से मशहूर रहे हों. एक ऐसा कलाकार जिसका चहेता परिवार का बेटा भी हो और बाप भी हो. करोड़ों के दिलों पर राज करने वाला यह दिग्गज कलाकार भी एक बीमारी से जंग हार गया. इरफान खान की तरह फिर से धर्म जाति से उठकर समूचा देश गमगीन हो उठा.

लेकिन नहीं बदले वह नीच किस्म के लोग और नहीं साफ हुयी उनके मन की गंदगी. अभिनेता के वर्षो पहले एक बयान को लेकर उनका गुस्सा जोकि शांत हो चुका था वह फिर से जाग गया और नास्तिक की उपाधि देकर इस कलाकार की मौत वाले दिन ही उलूल जुलूल किस्म के वाहियात बातें लिखी गयी.

अभिनेता का एक तरफ अंतिम संस्कार हो रहा था तो दूसरी ओर उसी अभिनेता के पुतले जलाए जा रहे थे और जश्न मनाया जा रहा था. अभिनेता के विरोध में उनकी भतीजी करीना कपूर तक को भी घसीट दिया गया था. किसी के निधन के दिन इतनी ओछी हरकत क्या यह इंसानियत है या लोगों की संवेदना ही मर चुकी है.

सुशांत सिंह राजपूत

ऋषि कपूर और इरफान खान दोनों को ही उनके धार्मिक विचारधारा के लिए कठघरे में खड़ा किया जा चुका था. धार्मिक कट्टरपंथी लोगों के लिए यह दोनों अपने अपने धर्म पर नहीं थे क्योंकि यह उन कट्टर लोगों से अलग सोच रखते थे. लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जो हुआ वह बड़ा ही हैरतअंगेज है.

अभिनेता ने खुदकुशी की यकीनन चारों ओर से निराश होने के बाद ऐसा कदम उठाया होगा. अचानक से हुयी इस मौत ने बॅालीवुड गलियारे में फिर से मातम का माहोल पैदा कर दिया. देश के बड़े बड़े राजनेता, अभिनेता, सामाजिक कार्यकर्ता सब सकते में थे कि इतना मजबूत कलाकार कैसे इतना बड़ा कदम उठा सकता है सभी संवेदना व्यक्त कर रहे थे लेकिन जो लोग समाज के ही दाग हैं उनका खेल बदस्तूर जारी रहा.

इस बार भी दिन वही था मौत वाला दिन, अभिनेता का अंतिम संस्कार तक नहीं हुआ था कि यह लोग ज़हर उगलने लगे. कोई उनको आत्महत्या के लिए कोस रहा है तो कोई उनके फिल्मी किरदार के लिए. कोई इसलिए उनका विरोध कर रहा है क्योंकि उस अभिनेता ने अपने नाम में बदलाव कर लिया तो कोई इसलिए कठघरे में खड़ा कर रहा है कि वह सेक्युलर था.

कितना मुश्किल होता है न यह सब कुछ देख कर इनकी लोगों की मानसिकता को समझ पाना. यह लोग कितने भी अधर्मी काम कर लें लेकिन सामने वाला इनके विचारों से समानता नहीं रखता तो वह ही अधर्मी होता है इनकी नजरों में. एक इंसान धर्म को कितना मानेगा कितना नहीं मानेगा, उसका विचार कैसा होगा कैसा नहीं होगा यह कोई कैसे और क्यों तय करेगा.

हर किसी को अधिकार है जीवन को अपनी तरह से जीने का फिर ये धार्मिक कट्टरपंथी लोग क्यों इन पर अपने विचार और धर्म थोपना चाहते हैं. आप किसी को नहीं पसंद करते हैं न सही मत करिए. मत अफसोस करिए उसकी मौत पर लेकिन उसकी मौत के दिन संवेदना वयक्त करने की जगह अपने दिमागी गंदगी को भी मत परोसिए.

अभिव्यक्ती की आजादी का यह मतलब हरगिज़ नहीं कि कुछ भी बोल कर समाज में ज़हर बो देंगे. वक्त है ऐसे सभी मानसिक किस्म के लोगों पर लगाम लगाने का, वरना यह स्थिति आम हो जाएगी. समय रहते ज़हर घोलने वाले दिमागी रूप से बीमार लोगों का इलाज हो जाना बहुत ज़रूरी है.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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