कंगना रनौत ने थलाइवी में कई अधूरे सवाल छोड़ दिए हैं...
'मणिकर्णिका' में अपनी भद्द पिटवाने वाली कंगना ने इस बार तारीफ़ बटोरी है. बढ़ाये हुए वज़न से जयललिता जैसी दिखने की कोशिश में कमोबेश उन जैसी लगी भी हैं. लेकिन उच्चारण की उनकी आईकॉनिक पहचान मुख्य किरदार के तमिल एक्सेन्ट के साथ न्याय नहीं कर पाती है. 'बॉम्बे' फ़ेम अरविंद स्वामी को एम जी आर के क़िरदार और लुक्स में पहचानना आसान नहीं है.
-
Total Shares
दक्षिण भारत हिन्दी पट्टी वालों के लिये दूसरी दुनिया सरीखा लगता है. इडली, सांभर, डोसा, वड़क्कम भर ही जान-पहचान है हमारी उस दुनिया से. 'आल द रजनी फैन्स-थलाईवा' सुनते हुए सोचती थी थलाईवा क्या है? अब जबकि इंस्टाग्राम पर कंगना 'रानौत' से 'थलाईवी' बन चुकी है, सोचा पता कर ही लेना चाहिये. तो भैया पता चला थलाईवी याने नेत्रि/ नेता/लीडर. लीडर कौन? तमिलनाडु में 30 साल मुख्यमंत्री रहने वाली वहां के आम जन की अम्मा- जे जयललिता. अजयान बाला की किताब 'थलाइवी' पर फिल्म बनाई है एएल विजय ने. तमिल राजनीति, अभिनेत्री से नेत्रि बनती जयललिता के साथ यह फिल्म उन्हें राजनीति में लाने वाले गुरु, मेंटॉर और क्रश एम जी आर और उनके बीच अनकहे रिश्ते को बिना किसी जस्टिफ़िकेशन के प्रेजेंट भी करती है.
कंगना की थलाइवी को लेकर दर्शक भी उम्मीद लगाए बैठे थे
'मणिकर्णिका' में अपनी भद्द पिटवाने वाली कंगना ने इस बार तारीफ़ बटोरी है. बढ़ाये हुए वज़न से जयललिता जैसी दिखने की कोशिश में कमोबेश उन जैसी लगी भी हैं. लेकिन उच्चारण की उनकी आईकॉनिक पहचान मुख्य किरदार के तमिल एक्सेन्ट के साथ न्याय नहीं कर पाती है. 'बॉम्बे' फ़ेम अरविंद स्वामी को एम जी आर के क़िरदार और लुक्स में पहचानना आसान नहीं है.
जयललिता की शपथ 'इस सभा में मंत्री बनकर ही लौटूंगी' को मंत्रमुग्धता से देखते हुए मन जैसे ही कहता है, यस यू नेल्ड इट अम्मो ! फिल्म अचानक खत्म हो जाती है. अचानक इसलिये क्योंकि हम (कम से कम हां मैं तो...) औरत को बार-बार विजयी होते देखना चाहते हैं. और फिल्म विजयी/शक्तिरूपा होने की उस तस्वीर को खारिज करती है, जिसमें मॉडर्न दुर्गा के दस हाथों में कल्छुल, लैपटॉप, दूध पीता बच्चा, झाड़ू, मोबाइल सब कुछ है.
दैवीय, पारम्परिक और आधुनिक कपड़ों में स्टेज और फ़िल्मों में नाचती अपने वक़्त की मशहूर क्लासिकल डांसर जयललिता जब मंत्री बनती हैं तो साड़ी का रख-रखाव शॉल सरीखा करती हैं. तो क्या ठोड़ी तक खुद को ढके रखने की कवायद राजनीति जैसी प्योर मर्दों की दुनिया में खड़े और बने रहने की एक्स्ट्रा अवेयरनेस के तहत है?
फिल्म इसका जवाब नहीं देती. लेकिन मर्दाने समाज से 'कब तक अग्निपरीक्षा लेते रहोगे' जैसे सवाल पूछने की हिम्मत (क्षणिक ही सही) तो देती ही है. फिल्म एम जी आर और जयललिता के बीच अनकहे बेनाम रिश्ते का समर्थन करती है. हालांकि कहने वाले यह भी कहते रहे हैं कि एम जी आर ने जयललिता का मार्गदर्शन करने के साथ राजनीति और अपनी पार्टी के लिये उनका इस्तेमाल भी किया है.
उन्हें पूजने ही हद्द तक पसंद करने वाली जयललिता को इस डॉमिनेंस से फर्क़ भी नहीं पड़ता. सिमी ग्रेवाल से 'rendezvous' करते हुए वे पूरी समर्पणता और आत्मविश्वास से इसे स्वीकारती भी हैं. जयललिता को थोड़ा और क़रीब, और बेहतर ढंग से जानने के लिये यूट्यूब पर मौजूद इस इंटरव्यू को सुना जाना चाहिये.
म्यूज़िक के नाम पर इरशाद कामिल के लिखे हुए गीत और बैकग्राउंड म्यूज़िक सब बेदम है. कोई भी धुन या लफ्ज़ ज़हन में ठहरते नहीं.बाक़ी बची फिल्म तो कंगना ने मेहनत की है. लेकिन विद्या बालन होती तो और बात होती.
ये भी पढ़ें -
World Post Day 2021: बॉलीवुड की इन 5 फिल्मों में 'चिट्ठियों' ने निभाई अहम भूमिका!
ड्रग छापेमारी से हीरो बने समीर वानखेड़े के लिए क्यों मांगी जा रही है जेड प्लस सुरक्षा?
दीपावली के एक दिन बाद आएगी सूर्यवंशी, जानिए पिछले 10 साल में दीवाली पर कैसा रहा बॉक्स ऑफिस हाल
आपकी राय