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नाज़िश अंसारी
naaz.ansari.52
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लेखिका हाउस वाइफ हैं जिन्हें समसामयिक मुद्दों पर लिखना पसंद है.
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सिनेमा
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5-मिनट में पढ़ें
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नाज़िश अंसारी
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साहिर पाकिस्तान से सिर्फ इसलिए लौटे क्योंकि वहां 'हिंदू' नहीं थे...
मुल्क़ बंटकर आज़ाद हुआ. साहिर लाहौर में थे. लेकिन खुश नहीं. यह शहर अब एक नये देश का हिस्सा था. जिसमें विविधता नहीं थी. एक धर्म था. एक मत. एक जैसे सोच विचार के लोग. सबसे बढ़कर यहां हिंदू नहीं थे. उन्हें ऊब हुई. वे लौट आए दिल्ली.
समाज
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नाज़िश अंसारी
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किसी के मोटापे का मजाक उड़ाने वाले संवेदनशीलता के स्तर पर निल्ल बटे सन्नाटा हैं!
चिरकाल से बॉडी शेमिंग का आउट ऑफ़ ट्रेंड ना होना यह भी दर्शाता है कि टेक्नोलाजी, लाइफ स्टाइल, एजुकेशन में इंसानों ने कितनी भी तरक़्क़ी क्यों ना कर ली हो, संवेदनशीलता के स्तर पर निल्ल बटे सन्नाटा हैं. जब दुनिया तीसरे विश्व यद्ध के मुहाने पर खड़ी है, नहीं लगता हमें स्मार्टनेस से ज़्यादा हर स्तर पर संवेदनशील बनने की ज़रूरत है?
सिनेमा
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नाज़िश अंसारी
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'मोरा पिया मोसे बोलत नाही' गाने ने बताया कि पिया ऑक्सीजन है और उसकी नाराजगी घुटन
रणबीर कपूर कैटरीना कैफ का गाना मोरा पिया मोसे बोलत नाही सुनते हुए महसूस यही होता है कि पिया ऑक्सीजन है. उसकी नाराजगी घुटन.ऐसे में सांस बराबर आती है मगर वज़नी होती जाती है.
सिनेमा
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नाज़िश अंसारी
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Delhi Crime 2: पूर्वाग्रहों को तोड़ने की कोशिश तो हुई लेकिन बेअसर, बाकी सीरीज जानदार है
Delhi Crime Season 2: दबे कुचले वर्ग का उद्धार करने आएगा, प्रिविलेज्ड वर्ग. जो अपने जैसे सामान्य पृष्ठभूमि से आए लोगों को समान्यीकरण न करने की सलाह देगा. ऊपर से दबाव होने के बावजूद कोई चतुर्वेदी इन्हें हत्या के इल्ज़ामों से बचाएगा. अहं ब्रह्मस्मि का शंख फूंकेगा. जनता चतुर्वेदी के बड़प्पन पे लहालोट होगी. लेकिन जाते हुए चुपके से अभियुक्तों में से 2 को चोर बता ही दिया जाएगा.
सियासत
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नाज़िश अंसारी
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Bilkis Bano: क्या प्रधानसेवक की जुमलेबाजी और एक्शन के बीच एक मोटी सी रेखा है?
बिलकिस बानो की क़ौम को यह याद रखना चाहिए, जब प्रधानमंत्री महिलाओं के सम्मान की बात करते हैं, तब दरअसल वे मंगलसूत्र और सिंदूर धारी महिलाओं की चिंता में मग्न हैं. बलत्कृत बुर्क़े वालियों की हैसियत कीड़े मकौड़े से ज्यादा की नहीं है. जिन्हें कुचलने, मसलने, तार तार करने पर बलात्कारियों का स्वागत फूल माला, मिठाई से किया जाएगा.
सिनेमा
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नाज़िश अंसारी
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Darlings वो जुगाड़ है जो पति-प्रताड़ित पत्नी अपने लिए चाहती है
व्यवहारिक रूप से भारतीय पतिव्रता पत्नी की कमज़ोरी है यह.और यह भी कि समाज पत्नियों से बिल्कुल अपेक्षा नहीं रखता कि वे घरेलू हिंसा का जवाब हिंसा से दें. लेकिन कभी जो औरत अपनी इन खामियों पर क़ाबू पा ले तो आगे क्या होगा, डार्लिंग्स उसी का जवाब है.
ह्यूमर
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नाज़िश अंसारी
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Ranveer Singh ने साबित किया ईश्वर की बनाई सबसे श्रेष्ठ कृति औरत ही नहीं, अबसे मर्द भी है!
आलोचना का सामना कर रहे रणवीर सिंह के फोटोग्राफर की तारीफ होनी चाहिए. लेकिन कुढ़ कुढ़ के खाक़ हुआ जा रहा समाज. खैर, आप कुछ भी कहिये. कहते रहिये. रणवीर की तस्वीरों को सिर्फ हॉट कहना सतही होगा. वे कला और सौंदर्य का अप्रतिम नमूना हैं. और अश्लील तो कतई नहीं...
सियासत
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नाज़िश अंसारी
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उम्मीद है मुर्मू किताबों में लिखी 'रबर स्टाम्प' वाली राष्ट्रपति नहीं साबित होंगी!
राज्यपाल रहते हुए जैसे द्रौपदी मुर्मू ने मुख्यमंत्री द्वारा पारित बिल को आदिवासियों की जमीनों के पक्ष में न पाकर हस्ताक्षर से इंकार किया था, क्या राष्ट्रपति रहते हुए वे इतना दम खम दिखा सकेंगी? अगर वे कर सकीं तो 'वाह'. वरना हमने स्कूल की नागरिक शास्त्र की किताब में पढ़ ही लिया था, 'राष्ट्रपति रबर का स्टाम्प होता है.'
सिनेमा
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नाज़िश अंसारी
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जादूगर के जितेंद्र समझें 'बॉय टू द नेक्स्ट डोर' से काम नहीं चलता, एक्टिंग भी करनी पड़ती है!
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई जादूगर देखने के बाद इतना तो साफ़ है कि, जितेंद्र कुमार में हीरो जैसी बॉडी, लुक्स वगैरह नहीं है. आम सा चेहरा... जो गुस्से में ढेले जैसी आंखों से सब झुंझलाहट कहता है. उनका चेहरा, दबी मुस्कान ही उनकी यूएसपी है. लेकिन सिर्फ 'बॉय टू द नेक्स्ट डोर' से काम नहीं चलता. एक्टिंग भी करनी पड़ती है.
समाज
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नाज़िश अंसारी
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सुष्मिता के नए अफ़ेयर का पितृसत्ता के गले में हड्डी की तरह चुभना स्वाभाविक है!
जिस समय में मद्रास हाई कोर्ट औरतों के मंगल सूत्र न पहनने को पति के प्रति क्रूर होना कह रहा हो. उस वक़्त आधे दर्ज़न से ज़्यादा प्रेम प्रसंगों वाली सुष्मिता का एक नया प्रेम प्रसंग, पितृसत्तात्मक व्यवस्था के गले में हड्डी की तरह चुभना लाज़मी है.
सिनेमा
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नाज़िश अंसारी
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बॉलीवुड की चकाचौंध में कम दिखे लेकिन खूब बिके KK
हमारे टीनेज के दोस्त. हमारे इश्क़ को अल्फ़ाज़ देकर परवान चढ़ाने वाले. हमारे प्रेमियों को प्रेम अभिव्यक्त करने में सहायता देने वाले. दुख को बगैर आंसुओं के गाकर रोने वाले. हमारे भीगे तकियों के गवाह. हमारी खलिश, बेचैनी, आवारापन, बन्जारा पन के साथी केके अब जबकि तुम जा चुके हो तो कैसे समझोगे, जाने यह कैसी आग लगी है, जिसमें धुंआ न चिंगारी... हो न हो इस बार कोई खाब जला है सीने में...
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परिवार बचाना सिर्फ स्त्री की ज़िम्मेदारी है, बिस्तर पर पति की जबर्दस्ती सहना भी शामिल है!
अब इसे ही विडंबना कहें या कुछ और, समाज हर बार पुरुष की शरीरिक ज़रूरतों को औरत की इच्छा, पर तरजीह देता है. शौहर को मजाजी खुदा (ईश्वर समान) मानते हुए उसकी हर इच्छा का मान रखने, हर तरह से 'खुश रखने' की कंडीशनिंग करवाता है.