उपहार सिनेमा त्रासदी के दंश को स्क्रीन पर प्रदर्शित करती है अभय की 'ट्रायल बाइ फायर'
Netflix पर रिलीज ट्रायल बाय फायर, अभय देओल और राजश्री देशपांडे अभिनीत, उपहार सिनेमा त्रासदी के बारे में एक किताब से प्रेरित एक यथार्थवादी सीरीज है. सीरीज आपको दिखाती है कि किसी हादसे में बच्चों की मौत के बाद माता पिता को इंसाफ के लिए किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कैसे तारीख पर तारीख मिलती है लेकिन इंसान के अंदर से न्याय का भरोसा जाता नहीं है.
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कौन कह रहा है कि बॉलीवुड में अच्छे एक्टर और बढ़िया एक्टिंग नहीं है. भले ही बॉयकॉट बॉलीवुड के इस दौर में हिंदी पट्टी के निर्माता निर्देशक ख़राब कंटेंट के लिए क्रिटिक्स से ज्यादा फैंस के निशाने पर हैं. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है कि, हिंदी पट्टी के प्रोड्यूसर डायरेक्टर्स ने क्वालिटी कंटेंट को सिरे से ख़ारिज कर दिया है. वो तमाम लोग जो आज भी अच्छे प्लॉट के लिए बॉलीवुड से उम्मीदें लगाए हैं उन्हें नेटफ्लिक्स का रुख करना चाहिए. तमाम तरह के विवादों का सामना करने और कोर्ट के फरमान के बाद आखिरकार ‘ट्रायल बाय फायर’ का सीजन वन नेटफ्लिक्स पर आ गया हो चुका है. राजश्री देशपांडे और अभय देओल की यह सीरीज सच्ची घटनाओं पर आधारित है. सीरीज आपको दिखाती है कि किसी हादसे में बच्चों की मौत के बाद माता पिता को इंसाफ के लिए किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. कैसे तारीख पर तारीख मिलती है लेकिन इंसान के अंदर से न्याय का भरोसा जाता नहीं है.
कह सकते हैं कि अपने आप में बेहतरीन सीरीज है ट्रायल बाय फायर
सीरीज पर कुछ बात करने से पहले ये बता देना जरूरी है कि ट्रायल बाय फायर एक विनाशकारी त्रासदी पर आधारित यथार्थवादी वेब सीरीज है जो कई मौकों पर आपको झकझोर देगी. सीरीज की कहानी कृष्णमूर्ति (अभय देओल और राजश्री देशपांडे) के इर्द-गिर्द घूमती है. जो मिडिल क्लास बैकग्राउंड से हैं और एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं. कपल की पूरी जिंदगी उनके बच्चों के इर्द गिर्द घूमती है और बच्चों की खुशियां ही उनके लिए सब कुछ हैं.
सीरीज में दिखाया गया है कि उनके बच्चे फिल्म देखने जाते हैं सिनेमा घर में आग लग जाती है (उपहार सिनेमा त्रासदी) और उन बच्चों की मौत हो जाती है.इसके बाद, वे 'दुर्घटना' के लिए न्याय मांगने का फैसला करते हैं और अंत में 'सिस्टम' के साथ भिड़ जाते हैं.
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सीरीज का प्लाट ऐसा है जिसे देखकर आपको कहीं से भी ये फेक नहीं लगेगा. जब आप सीरीज देखेंगे तो आपको यही महसूस होगा कि एक आम आदमी जब न्याय के लिए कोर्ट की क्षरण में जाता है तो तमाम मुश्किलें होती हैं जिनका सामना एक आम आदमी को करना पड़ता है. उन्हीं चुनौतियों को आप इस सीरीज के जरिये अपनी स्क्रीन पर देखेंगे.
विषय चूंकि मौत से जुड़ा है तो कहानी को संवेदनशील ट्रीटमेंट देना लाजमी है ऐसे में जब हम इस सीरीज की राइटिंग को देखते हैं तो मिलता है कि परिपक्व और संवेदनशील लेखन ने कहानी में चार चांद लगा दिए हैं.
सीरीज एक डिस्क्लेमर के साथ शुरू होती है जिसमें कहा गया है कि यह एक ऐसा फिक्शन है, जो 2016 की पुस्तक ट्रायल बाय फायर द ट्रेजिक टेल ऑफ द उपहार फायर ट्रेजेडी से प्रेरित है. इसके बाद जैसे ही ये सीरीज शुरू होती है तो चाहे दृश्यों का फिल्मांकन हों, कैरेक्टर्स का चुनाव हो, कैमरा वर्क हो महसूस यही होता है कि मेकर्स ने इस सीरीज के लिए भरपूर मेहनत की है और पूरी कहानी के साथ भरपूर इंसाफ किया है.
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जब आप वो सीन देखेंगे जहां अभय बच्चों के साथ समय बिता रहे हैं तो आपको उस मेहनत का अनुमान लग जाएगा जो इस सीरीज के लिए मेकर्स ने की है. कई सीन ऐसे हैं जो आपके दिल को छू लेंगे. वहीं जब आज लगने के बाद अभय अपने बच्चों को अस्पताल में खोजने जाते हैं उस सीन को देखकर आपको उस बाप की मज़बूरी का एहसा होगा जिसकी आंखों के सामने उसका परिवार बर्बाद हो जाता है.
वहीं वो सीन जिसमें इंसाफ के लिए अभय और उनकी पत्नी को दर दर भटकते दिखाया गया है उसे देखकर आपको लगेगा कि एक आम आदमी के लिए किसी मजबूत आदमी से लड़ना बिल्कुल भी आसान नहीं है.
कुल मिलाकर ट्रायल बाय फायर एक देखने लायक सीरीज है. इसे इसलिए भी देखना चाहिए क्योंकि पहली बात तो ये कि ये रियल लाइफ इंसिडेंट पर आधारित है दूसरा ये कि बहुत कम होता है कि बॉलीवुड के मेकर्स अच्छी स्क्रिप्ट के साथ न्याय कर पाते हैं जो कि इस सीरीज में किया गया है. सीरीज में ऐसा बहुत कुछ है जो आपको बोर नहीं करेगा साथ ही इस बता का भी एहसास कराएगा कि क्यों हमारे लिए परिवार और रिश्ते बहुत जरूरी हैं.
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