'दो जिस्म एक जान' सिर्फ मिथक है, शादी बाद स्त्री के जिस्म और जिंदगी की हकीकत गुलाबी नहीं है
दो जिस्म एक जान सिर्फ मिथ है, असल में यह कहावत 'दो जिस्म आदमी की जान' होना चाहिए...क्योंकि महिला की जान तो रहती नहीं है. ऐसा अभिनेत्री विद्या बालन का कहना है. इस बारे में आपकी राय क्या है?
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क्या महिलाएं (women) मजह एक जिस्म है? क्या महिलाएं सिर्फ उपभोग की वस्तु हैं? क्या एक स्त्री की जिंदगी सिर्फ दूसरों के लिए बनी है? क्या औरतों की कोई इच्छा नहीं हो सकती? क्या महिलाओं के सपने नहीं होते? क्या महिलाओं की जिंदगी उनके हिसाब से नहीं चल सकती?
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि विद्या बालन (Vidya Balan) ने इस मुद्दे पर दो शब्दों में ही बड़ी गंभीर बात कह दी है. हमें लगता है कि कहीं न कहीं यह बात महिलाओं की जिंदगी पर लागू होती है. किसी महिला के ऊपर कम तो किसी महिला के ऊपर अधिक...लेकिन कहीं ना कहीं लागू होता है.
क्या दो जिस्म एक जान वाली कहावत झूठी है?
इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में विद्या बालन ने कहा है कि, शादी के बाद 'दो जिस्म एक जान सिर्फ मिथ है, असल में इसे 'दो जिस्म आदमी की जान' होना चाहिए...क्योंकि हमारी जान तो रहती नहीं है.
कई लोगों को तो यह लाइन समझ में ही नहीं आई होगी. लोग जब एक स्त्री की चीख को नहीं समझ पाते, तो फिर इस गहराई को क्या ही समझेंगे? पता नहीं आप किस बात से कितना सहमत हैं या नहीं हैं?
चलिए इस लाइन को हम कुछ लाइनों में समझने की कोशिश करते हैं-
1- लड़की पैदा हुई, लोगों ने कहा कोई बात नहीं घर में लक्ष्मी आई है. यह जो कोई बात नहीं शब्द है बस यहीं से शुरुआत हो जाती है. वहीं अगर दूसरी संतान भी बेटी हो जाए तो वह बोझ होती है, माने तब लक्ष्मी का रूप बदल जाता है.
2- होश संभालते ही उसके कानों में पराया धन और दूसरे घर जाना है जैसी बातें सुनाई देने लगती हैं. उसे समझा दिया जाता है कि घर का काम करना उसके लिए कितना जरूरी है? घर में कोई आए तो पानी वही लाएगी और चाय भी वही बनाएगी. छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी भी वही निभाएगी, भले ही वह भाई से छोटी क्यों न हो.
3- आजकल लड़कियों को पढ़ाई करने दिया जा रहा है. पढ़ता तो भाई भी है लेकिन बेटियों को स्कूल भेजकर ऐसा लगता है कि एहसान किया जा रहा हो. शहर से दूर पढ़ने भेज भी दिया तो साथ में 10 कंडीशन अप्लाई चिपका कर.
4- छोटी थी तो पापा, थोड़ी बड़ी हुई तो भाई, शादी के बाद पति और मां बनने के बाद बेटे के हिसाब से उसकी जिंदगी करवट बदलती रहती है. डायरेक्ट रूप से ना सही लेकिन इनडायरेक्ट रूप से उसकी कंडीशनिंग होती रहती है.
5- सबसे बड़ी बात शादी होते ही लड़कियों की जिंदगी बदल जाती है. उसके ऊपर अचानक से जिम्मेदारियों का बोझ आ जाता है. एक पल में वह बेटी से बहू बन जाती है. बहू का ओहदा जितना बड़ा होता है, उससे कहीं बड़ी उसकी जिम्मेदारियां होती हैं. बहू मतलब पति के इच्छाओं को पूरी करने वाली. बहू मतलब किसी की एक पुकार पर दौड़कर उसके पास पहुंचने वाली. बहू मतलब चलता-फिरता वह मशीन जो हर डिमांड पूरी कर सके.
6- शादी के बाद एक लड़की को अपना सबकुछ भूलकर ससुराल के हिसाब से ढलना होता है. चाहें वह पहनावा हो, उसके पसंद का खाना हो. वह पति, सास-ससुर, देवर-ननद, भतीजे-भतीजी, भांजे-भांजी, दादी सास-नानी सास, बुआ-फूफा, चाचा-चाची, बड़े पापा-मम्मी, पड़ोसी, मोहल्ले वाले, दूर के रिश्तेदार, महीने का खर्च, घर की सफाई, रसोई, राशन, शादी, नेवता, हिसाब, बिजली, गैस बिल, बर्थ डे रिमाइंडर में कहीं गुम सी होती जाती है.
7- जब वह मां बन जाती है तो यह मान लिया जाता है कि अब उसकी अपनी कोई जिंदगी नहीं है. उसका सबकुछ अब पति और बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमता रहेगा. उनकी अब कोई दुनिया बची नहीं है. पति और बच्चे की दुनिया ही अब उस महिला की दुनिया है. वह बस दूसरों के लिए करती रहे, भागती रहे. वह सबके बारे में सोचे लेकिन अपने बारे में सोचने पर उसके ऊपर दोष मढ़ दिया जाता है.
कहने का मतलब यह है कि वह अपनी जिंदगी अपनों के नाम इस कदर कर देती है कि उसका अपना कुछ बचता नहीं है. पति भी काम करते हैं लेकिन इतना नहीं करते जितना वह महिला करती है. तो फिर दो जिस्म एक जान कैसे हुए? दो जिस्म तो दोनों रहते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि जान सिर्फ पति की बचती है. वह महिला अपने संसार में इतना गुम हो जाती है कि लगता ही नहीं कि वह अपने लिए जी रही है...जैसे वह बेजान हो औऱ सिर्फ उसका जिस्म ही बचा हो.
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