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Updated: 13 नवम्बर, 2016 10:57 AM
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साहित्य आजतक के मंच पर समां ऐसा बंधा कि मोदी जी की कालेधन पर की गयी सर्जिकल स्ट्राइक के बाद अगर कोई जगह ऐसी थी जहां लोगों का सारा स्ट्रेस निकला हो तो वो यहीं थी...यहीं थी. इधर लोग राजस्थानी, पंजाबी और भोजपुरी गीतों पर झूम रहे थे, वहीं भीड़ और बढ़ रही थी क्योंकि लोग संगीत के बाद मध्यप्रदेश की खुशबू का भी आनंद लेना चाहते थे.

अपनी मिटटी से जुड़े अभिनेता और लेखक आशुतोष राणा भी साहित्य के मंच पर पहुंचे. उन्होंने जो भी कहा उससे एक बात जो मैंने महसूस की, वो ये की साहित्य सिर्फ कविता, कहानी या शायरी नहीं, बल्कि साहित्य आवाज़ से भी झलकता है. आशुतोष एक एक्टर हैं, और उनकी आवाज़ की गंभीरता, जेहनियत और हिंदी का उच्चारण अपने आप में एक साहित्य गढ़ रहे थे.

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आशुतोष का कहना था कि आजतक एक समाचार चैनल है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि कोई समाचार चैनल विचार से जुड़ा हो, आजतक समाचार चैनल ने विचार चैनल की प्रतिष्ठा प्राप्त की है. ये मंच साहित्य का महाकुम्भ था, यहाँ आकर उन्हें कुम्भ के असल मायने पता चले हैं. कुम्भ में अकार लोग खो जाते हैं, इस कुम्भ में आकर मैं अपनों(भारत) से मिला हूँ.

साहित्य और भाषा के बारे में आशुतोष राणा का कहना था कि साहित्य और शब्दकोष में शब्दों के अर्थ होते हैं... लेकिन लोगों को शब्दकोष के रचयिता का नाम नहीं पता होता और साहित्यकार का नाम याद रखते हैं. वजह ये की शब्दकोष में शब्दों के अर्थ होते हैं और साहित्य में भाव होते हैं. साहित्य शब्दों का संवाहक होता है.

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'मेरे लिए भाषा कभी विवाद का विषय नहीं रही, भाषा हमेशा संवाद का कारण रही है. मेरा मानना है कि दुनिया के तमाम विवादों को अगर हल करना है तो संवाद का सेतु स्थापित कर लीजिए, विवाद संवाद में बदल जाएंगे.'

हिंदी भाषा पर आशुतोष राणा के विचार कुछ ये हैं- 'इंसान के चरित्र का मूल्यांकन उसकी भाषा से होता है. भाषा दो तरह की होती है- धन की भाषा और मन की भाषा, और हिंदी मन की भाषा है. अपनी कविता में इन्होंने हिंदी को माँ का दर्जा दिया है.'

आशुतोष राणा सोशल मीडिया पर अपने विचार लोगों से साझा करते रहते हैं, लेकिन उनका मानना है जो विचार सोशल मीडिया पर दिखाई देते हैं उसमे और साहित्य में एक बारीक सा अंतर है, ये दोनों एक दूसरे से मिलते जुलते नज़र आते हैं.

सोशल मीडिया पर एक शेर आशुतोष कहते हैं कि-

"देश चलता नहीं मचलता है, मुद्दा हल नहीं होता सिर्फ उछलता है. जंग मैदान में नहीं सोशल मीडिया में जारी है, आज तेरी तो कल मेरी बारी है."

अपनी बातों के मोहपाश में आशुतोष दर्शकों को बांधते जा रहे थे, साहित्य और भाषा से अलग उन्होंने एक बात और कही जो व्यक्तिगत तौर पे मुझे बहुत अच्छी लगी, उन्होंने कहा- 'हम लोगों का जीवन या तो हमारे बच्चों के लिए चेतावनी बन सकता है या मिसाल, हमारे पास यही एक जरिया है जिससे हम अपने बच्चों को ये बात बता सकें कि तुमसे पहले हम क्यों आए थे.' और इस बात पर तालियां उतनी नहीं बजीं जितना कि उनकी कविताओं पर बजी थीं, वो इसलिए कि उनके इस विचार ने लोगों को विचारमंथन करने पर मजबूर कर दिया था. मेरे हिसाब से साहित्य की परिभाषा का इससे बेहतर उदाहरण और कोई नहीं था..

देखिये वहां क्या हुआ, और यकीनन इस वीडियो को बीच में रोक नहीं पाएंगे आप...

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