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Updated: 24 अक्टूबर, 2022 12:38 PM
सरिता निर्झरा
सरिता निर्झरा
  @sarita.shukla.37
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जिंदगी की मोनोटॉनी को तोड़ता हुआ त्योहारों का मौसम और उस रंग रौशनी वाली दिवाली. मौसम का असर है या इस त्यौहार की खूबसूरती कि इसके आते ही मन अपने आप खुश होने लगता है. भले ही खुशी को नज़र लगाने वाले मुंह काला किए आस पास ही घूमते हों. सोना छोड़िए टमाटर की कीमतें भी बाजार में आसमान छू रही हैं और हंगर इंडेक्स में अपनी भद्द पीटने को जरा जरा से देश भी कमर पर हाथ रख हमसे आगे खड़े हैं. इन सब चीजों को दरकिनार करते हुए आज की शाम रसोइ में से गुलाब जामुन गुलगुले दही बड़े और कुछ कुछ जगहों से करंजी या गुजिया की खुशबू आ रही होगी और यहीं खुशबुएं ही तो जिंदगी की ट्रैफिक से, धुंए ग्रीस से छुटकारा दिलाती हुई कुछ देर के लिए असल जिंदगी से दूर ले जाती हैं.

Diwali, Festival, Hindu, Inflation, Market, Chocolate, Dessert, Childrenदिवाली की खूबसूरती ये भी है कि भले ही ये महीने के अंत में आये लेकिन इसका एक्मेंसाइट कम नहीं होता

महीने के लगभग आखिर में आता हुआ त्योहार भी जी खोलकर खर्चा करने की हिम्मत दे ही देता है. बस इसी उम्मीद में कि जनाब हफ्ता ही तो बचा है. फिर 1 तारीख आएगी और बैंक में सैलरी क्रेडिट का मैसेज आ जाएगा. तो आज तो दिवाली मना ही लेते हैं. बाजारीकरण ने किसी भी त्योहार को उसके असल रूप में नहीं रहने दिया.

दीपावली कब श्री राम के स्वागत में दीप जलाने से ताश पार्टी में बदली खबर ही नही हुई. धनतेरस पर धनवंतरी को छोड़कर हर कोई कुबेर के पीछे भागता है और तनिष्क हो या पीपी ज्वेलर्स सभी महीने भर पहले से ही आप को धनतेरस की याद दिलाने लगते हैं. मुआ सोना न हुआ ऑक्सीजन सिलेंडर हुआ बचा बचा के छुपा छुपा के रखो.

बेचारी मिठाइयों को भी टक्कर देते हुए विदेशी चॉकलेट जुबान का स्वाद बदलने के लिए तैयार रहते हैं. इस दिवाली कुछ मीठा हो जाए अपनों को दीजिए कैडबरी का तोहफा! क्यों जी हमारी सोनपापड़ी पर बने मीम और चॉकलेट के साथ बनाओ टीम! ये अच्छी बात नहीं है ! यार कुछ भी कहो बुरा तो लगता ही होगा बेचारी को पर बुरा लगने की कौन ही परवाह करता है.

बताओ ज़रा राहुल गांधी को पापड़ी जैसा ट्रीट करते हो बुरा लगना होता तो उन्हे लगता लेकिन बंदा बिना तेल के दिये सा फड़फड़ा फड़फड़ा के जल तो रहा ही है. तेल ये याद आया बीते सालों से हम लोग दिवाली नए तरीके से मनाते है... खुद का रिकॉर्ड खुद ही तोड़ते हैं.

पिछले कुछ वर्षों में दीपावली की खासियत दीपोत्सव रही है... नहीं नहीं वह दीपोत्सव नहीं जो हम और आप अपने अपने घरों में करते हैं बल्कि वह जिसकी तैयारियां जोर शोर से महीनों पहले से होती है.पूरे हफ्ता न्यूज चैनल पर इसी की कवरेज! मिट्टी के दीयों की इंडस्ट्री वाह जी वाह! ऐसा मैंने सुना है!

भगवान श्री राम के घर में उनके स्वागत का वही रूपांतरण करने की कोशिश जो शायद हजारों बरस पहले उनके सम्मान में किया गया होगा जब रावण को मार कर अयोध्या लौटे थे. सुना है इस साल भी करीब 17 लाख दिये है और 35 लीटर तेल के साथ दीपोत्सव का पर्व मनाया गया है.

भारतीय संस्कृति को गौरवान्वित करने वाले ऐसे पल विलक्षण होते हैं लेकिन सरयू के किनारे बसे अयोध्या में छोटी-छोटी गलियां भी हैं जिन गलियों की राह पर गड्ढे हैं और सड़क के नाम पर भद्दा मजाक किया गया है क्या इस दिवाली पर उसे रोशनी नसीब होगी?

यूं दिवाली रौशन दीयों से कहां होती है. उसकी रौशनी तो अपनों की हंसी में छुपी होती है. कितनी माएं होंगी जिनके बेटे घर से दूर होंगे. इस बार नहीं अगले साल पक्का का वादा कर शुभ शगुन का मीठा तो वो भी बनाती होगी और शायद कोई मां भारतीय रेल की लेट ट्रेनों को कोसती लड़ियों को ठीक करती सबसे काली रात से जरा पहले अपने आंखो के नूर का इंतजार करती हो.

अब एक ही तो त्योहार पर आखिर कितना बोझ डाला जाएगा इसपर? अपनी तरफ से तो कोशिश कर ही रहा है बरसों से कि साल की सबसे काली रात रौशन हो!

तो दूर हो या पास हो,

बस सुकून का एहसास हो

चॉकलेट हो या सोनपापड़ी

ज़रा ज़रा सी मिठास हो

दो साल बाद गले लग कर दिवाली की मुबारक बाद देने का समय नसीब हुआ है. अपनो के साथ खुश रहिए. दीपावली की शुभकामनाएं.

लेखक

सरिता निर्झरा सरिता निर्झरा @sarita.shukla.37

लेखिका महिला / सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं.

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