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सियासत
| 2-मिनट में पढ़ें
नवीन चौधरी
@choudharynaveen
किसी भी हिंसा पर तब कहां थे? जैसे सवाल असल में अभी के अपराधों को बचाने का जरिया है!
भारत जैसे देश में आम हिंदू धार्मिक है मगर कट्टर नहीं. तब कहां थे? जैसे सवाल असल में अभी के अपराधों को बचाने का जरिया है, चाहे जो पूछे... और ये सवाल आम नागरिक की सोच को धीरे-धीरे कट्टर में बदलते हैं.
ह्यूमर
| 4-मिनट में पढ़ें
नवेद शिकोह
@naved.shikoh
आखिरकार भगवंत मान गए, शराब बड़ी खराब है...
होली पर एक मित्र दार्शनिक हो गए. कहने लगे होली का त्योहार राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना भी व्यक्त करता है. राष्ट्रवादियों और समाजवादियों के क्रमशः राष्ट्रवाद और समाजवाद को राष्ट्रहित के सूत्र में बांधता है. गरीब से लेकर मध्यम वर्ग और अमीर सभी बराबर मात्रा में शराब का ख़ूब टेक्स देकर सरकारों को भारी-भरकम राजस्व देते हैं.
सोशल मीडिया
| 4-मिनट में पढ़ें
बिलाल एम जाफ़री
@bilal.jafri.7
होली पर Boycott तो होना ही था, खाने को छोड़कर हर मुद्दे पर बात कर रहा है Swiggy!
Swiggy जब आया तो महसूस हुआ कि अब घर बैठे ही लोगों को क्वालिटी फ़ूड मुनासिब कीमतों पर मिलेगा। शुरू- शुरू में ऐसा हुआ लेकिन अब वैसे हालात नहीं हैं. अब Swiggy ने खाने से ध्यान हटा लिया है और हर मुद्दे पर बात कर रहा है फिर चाहे वो दिवाली और होली ही क्यों न हो.
संस्कृति
| 6-मिनट में पढ़ें
सैयद तौहीद
@8187076694635826
होली के निराले त्योहार को लेखकों ने कुछ ऐसे व्यक्त किया...
होली तमाम दायरों को तोड़ने की ताकत रखने वाला पर्व है. एक दूसरे की संस्कृति को गहराई में उतर कर देखने पर समावेश को महसूस किया जा सकता है. होली सामाजिक समावेश के अनोखे त्योहार के रूप में देखी जाती है.
समाज
| 5-मिनट में पढ़ें
Prince D
आखिर क्यों मर्दों के कारण लड़कियां होली पर सड़कों पर नहीं निकल पातीं
होली चाहे गांव-देहात की हो या मेट्रो सिटी के क्लब की. महिलाओं से अभद्रता करते शराब भांग के नशे में लड़कियों, महिलाओं को यहां वहां छूते लोग मिल ही जाएंगे. महिलाओं से कहा जायेग कि बद्तमीजी करने वाला पुरुष होश में नहीं है तो उसे बुरा नहीं मानना चाहिए.
संस्कृति
| 3-मिनट में पढ़ें
आयुष कुमार अग्रवाल
@100006809583831
इगास-बग्वाल: उत्तराखंड का लोकपर्व जो दिवाली के 11 दिन बाद मनाया जाता है!
उत्तराखंड के लोकपर्व इगास-बग्वाल को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजकीय अवकाश की घोषणा की है. यह दूसरा मौक़ा होगा जब उत्तराखंड के इस लोकपर्व को लेकर सरकारी अवकाश घोषित किया गया है. यह लोकपर्व दीपावली से 11 दिन बाद मनाया जाता है. इसे बूढ़ी दीवाली भी कहा जाता है. आइए इसके पीछे की मान्यता को जानते हैं.
समाज
| 2-मिनट में पढ़ें
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
@siddhartarora2812
सिर्फ भाई दूज क्यों आखिर बहन दूज क्यों नहीं? सवाल तो होना ही चाहिए
अब आज का पति डबल एयर बैग वाली स्कोडा लौरा में घूमता है. हेल्थ इंश्योरेंस रखता है. वॉर के नाम पर ऑफिस में बैक बिचिंग झेलता है और एक्सीडेंट के नाम पर बाथरूम में भी नहीं फिसलता है. अब व्रत इसलिए रखे जा रहे हैं कि सदियों से रखे जाते हैं. इसमें ग़लत क्या है? कुछ नहीं! बहन दूज मनाने में हर्ज़ क्या है फिर? कोई भी नहीं!
संस्कृति
| 4-मिनट में पढ़ें
सरिता निर्झरा
@sarita.shukla.37
Diwali 2022 : जिंदगी की मोनोटॉनी तोड़ता प्यारा और खूबसूरत सा त्योहार!
धनतेरस पर धनवंतरी को छोड़कर हर कोई कुबेर के पीछे भागता है और तनिष्क हो या पीपी ज्वेलर्स सभी महीने भर पहले से ही आप को धनतेरस की याद दिलाने लगते हैं. इस दिवाली कुछ मीठा हो जाए अपनों को दीजिए कैडबरी का तोहफा! क्यों जी हमारी सोन पापड़ी पर बने मीम और चॉकलेट के साथ बनाओ टीम ! ये अच्छी बात नहीं हैं!
संस्कृति
| 4-मिनट में पढ़ें
निधिकान्त पाण्डेय
@1nidhikant
पटाखे और दिए की बातचीत हुई, सवाल जितने मजेदार थे, जवाब उतने ही जबरदस्त
भारत में आतिशबाजी का इतिहास पुराना है. भारत जब आजाद हुआ था तब भी तो जोरदार आतिशबाजी हुई थी. तब मेरे दादा-परदादाओं ने आकाश में रंग और फुलझड़ियां बिखेरी थीं, आवाज से वातावरण को गुंजाया था, तब दिये मेरे दोस्त, तुम्हारे पूर्वजों ने भी तो नए भारत के स्वागत में दिये की लड़ियों से पूरा समां रोशन कर दिया था.