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Updated: 09 मार्च, 2023 01:13 PM
सैयद तौहीद
सैयद तौहीद
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देश यूं तो त्योहारों का देश है. मगर फिर भी कुछ त्योहार ऐसे होते हैं, जो पूरे जोश व उल्लास के साथ देश भर में मनाये जाते हैं. होली भी वही त्योहार है, जो मानस के छुपे अल्हड़पन व बचपन को बाहर निकाल कर रख देती है. होली का माहौल अपने आप में बड़ा नशीला होता है. होली का त्योहार अपने में निराला होता है. हाथों में रंग-पिचकारी मुंह में मीठी गुजिया-अनरसे, ढोलक-मंज़ीरे की थाप, फाग गाते हुए गलियों से निकलती टोलियां यानि उम्र के फासले टूटने लगते हैं, क्या बूढ़े? क्या नौजवान? सब रंगों को अपना लेते हैं. होली! लोग इस दिन रंग खेलते हैं। खुशियों को बांटने मुहल्ले में निकल जाते हैं.

होली मतलब रंग, अबीर और मस्ती. पूरे भारत में फाल्गुन में मनाए जाने वाले रंगों के इस त्योहार पर पारम्परिक होली का मिजाज़ कमाल होता है. किंतु दुखद है कि वर्तमान समाज में होली का त्योहार अपना उल्लास और उमंग भूलता जा रहा है. होली दरअसल केवल रंगों का नहीं दिलों के मिलने का उल्लास है.

Holi 2023, Festival, Hindu, India, Writer, Poem, Literature, Bollywood तमाम शायर और साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने अपनी रचनाओं में होली का जिक्र कर उसे कालजयी बना दिया है

होली का आनंद लेने के लिए दिलों में जगह की ज़रूरत होती है मगर समाज अपने में सिमटता जा रहा है. कोई हैरानी नहीं होली में मस्ती के अवसर भी सिमट गए हैं. आज होली के अवसर पर यह देखना सुखद होगा कि कवि शायरों समाज सुधारकों की नजर में होली का क्या रंग रहा है …

प्रेम दीवानी मीरा की ब्रज की होली

कृष्ण भक्ति में डूबी मीरा की होली फागुन के दिन चार होली खेल मना रे

सील सन्तोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे

उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे

घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे

मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल बलिहार रे

वहीं, सूफ़ी अमीर खुसरो कहते हैं

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ

जिसके कपरे रंग दिए सो धन-धन वाके भाग

खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग

जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग

मोहे अपने ही रंग में रंग दे

तू तो साहिब मेरा महबूब-ए-इलाही

हमारी चुनरिया पिया की पयरिया

वो तो दोनों बसंती रंग दे

जो तो मांगे रंग की रंगाई मोरा जोबन गिरवी रख ले

आन पारी दरबार तिहारे

मोरी लाज शर्म सब रख ले

मोहे अपने ही रंग में रंग दे

शायर नज़ीर अकबराबादी होली पर कहते हैं

जब फागुन रंग झमकते हों, तब देख बहारें होली की

और दफ़ (चंग) के शोर खड़कते हों, तब देख बहारें होली की

परियों के रंग दमकते हों, तब देख बहारें होली की

ख़म शीश-ए-जाम छलकते हों,तब देख बहारें होली की

महबूब नशे में छकते हों, तब देख बहारें होली की

हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू रंग भरे

कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो-अदा के ढंग भरे

दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग भरे

कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुंहचंग भरे

कुछ घुंघरू ताल झनकते हों तब देख बहारें होली की

सामान जहां तक होता है इस इशरत के मतलूबों का

वो सब सामान मुहैया हो और बाग़ खिला हो ख़ूबों (सुंदरियों) का

हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का

इस ऐश मज़े के आलम में इक ग़ोल खड़ा महबूबों का

कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें होली की

भारतेंदु हरिश्चंद के शब्दों में होली

गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में

बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में

नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे

ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो

मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में

है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ है

बने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में

रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी

नशीली आंख दिखाकर करो सरशार होली में

साहित्यकार जयशंकर प्रसाद की होली

बरसते हो तारों के फूल छिपे तुम नील पटी में कौन?

उड़ रही है सौरभ की धूल कोकिला कैसे रहती मीन

चांदनी धुली हुई है आज बिछलते है तितली के पंख

सम्हलकर, मिलकर बजते साज मधुर उठती हैं तान असंख्य

तरल हीरक लहराता शान्त सरल आशा-सा पूरित ताल

सिताबी छिड़क रहा विधु कान्त बिछा है सेज कमलिनी जाल

पिये, गाते मनमाने गीत टोलियों मधुपों की अविराम

चली आती, कर रहीं अभीत कुमुद पर बरजोरी विश्राम

उड़ा दो मत गुलाल-सी हाय अरे अभिलाषाओं की धूल

और ही रंग नही लग लाय मधुर मंजरियां जावें झूल

विश्व में ऐसा शीतल खेल हृदय में जलन रहे, क्या हात

स्नेह से जलती ज्वाला झेल, बना ली हां, होली की रात

कवि हरिवंश राय बच्चन के शब्दों में होली

तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है।

देखी मैंने बहुत दिनों तक

दुनिया की रंगीनी,

किंतु रही कोरी की कोरी

मेरी चादर झीनी,

तन के तार छूए बहुतों ने

मन का तार न भीगा,

तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है

अंबर ने ओढ़ी है तन पर

चादर नीली-नीली,

हरित धरित्री के आंगन में

सरसों पीली-पीली,

सिंदूरी मंजरियों से है

अंबा शीश सजाए,

रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है

तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है

महाप्राण निराला की होली

सारे बंधन तोड़ के

नयनों के डोरे लाल गुलाल-भरी खेली होली !

प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली

एक वसन रह गई मंद हंस अधर-दशन अनबोली

कली-सी कांटे की तोली !

मधु-ऋतु-रात मधुर अधरों की पी मधुअ सुधबुध खो ली

खुले अलक मुंद गए पलक, दल-श्रम-सुख की हद हो ली!

बनी रति की छवि भोली

शकील बदायुनी के शब्दों में होली

(मदर इण्डिया फिल्म में गाने के रूप में)

होली आई रे कन्हाई

रंग छलके

सुना दे ज़रा बांसरी

बरसे गुलाल, रंग मोरे अंगनवा

अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा

हो देखो नाचे मोरा मनवा

तोरे कारन घर से, आई हूं निकल के

सुना दे ज़रा बांसरी

होली आयी रे!

होली घर आई, तू भी आजा मुरारी

मन ही मन राधा रोये, बिरहा की मारी

हो नहीं मारो पिचकारी

काहे! छोड़ी रे कलाई संग चल के

सुना दे ज़रा बांसरी

होली आई रे!

इन सब शायरों गीतकारों की कलम से पता चलता है कि होली एक बहुआयामी त्योहार है. समाज से ऊंच-नीच, गरीब-अमीर जैसी विभाजक भावनाएं समाप्त करने के लिए होली मशहूर है. होली का त्योहार प्राचीनकाल से मनाया जाता आ रहा है. इसका स्रोत वैदिक काल तक जाता है. होली का रंग होली से जुडी महान विरासत से समझा जा सकता है.

आधुनिक युग में मेल-जोल की परंपरा कमज़ोर पड़ जाने के कारण होली का जोश एवं रंग पहले जैसा नहीं रहा. पहले से कमज़ोर दिखाई देती है. त्योहार में आपसी सद्भाव की गहराई में बदलाव आया है. गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल कायम करने वाली होली दिलों में सिमटती जा रही है, ऐसा महसूस होता है.

होली तमाम दायरों को तोड़ने की ताकत रखने वाला पर्व है. एक दूसरे की संस्कृति को गहराई में उतर कर देखने पर समावेश को महसूस किया जा सकता है. होली सामाजिक समावेश के अनोखे त्योहार के रूप में देखी जाती है. होली का मिजाज ज़िंदा रहेगा. क्योंकि वो देश के समावेशी भाव का प्रतिनिधि सा है.

लेखक

सैयद तौहीद सैयद तौहीद @8187076694635826

लेखक एक दशक से डिजिटल एंटरटेनमेंट मिडिया के लिए लिख रहे है. सिनेमा केंद्रित पब्लिक फोरम से लेखन की शुरुआत की.

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