राजनाथ सिंह करेंगे राफेल की शस्त्र पूजा, जानिए क्या है ये परंपरा
हम हर उस चीज की पूजा करते हैं, जिसका हमारे जीवन में कोई महत्व हो, इसलिए भारत में सिर्फ शास्त्र ही नहीं, बल्कि शस्त्रों की भी पूजा होती है.
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इस बार विजयदाशमी के दिन शस्त्र पूजा खास होने वाली है, क्योंकि शस्त्र पूजा के दिन ही भारत को एक ऐसा हथियार मिलने जा रहा है, जिसके नाम से ही शत्रु कांप जाते हैं. दुश्मनों का काल बनकर आसमान में उड़ने वाले इस हथियार का नाम है Rafale. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राफेल लाने के लिए खुद फ्रांस पहुंच गए हैं, जहां वो विजयादशमी के मौके पर राफेल की पूजा भी करेंगे. दरअसल, विजयादशमी के दिन हिन्दू घरों में हथियारों की पूजा की जाती है. विशेषकर क्षत्रिय, योद्धा और सैनिक इस दिन अपने शस्त्रों की पूजा करते हैं. वहीं RSS और पीएम मोदी भी विजयादशमी के दिन शस्त्रों की पूजा करते हैं. आधुनिक हथियारों की पूजा करते हुए पीएम मोदी की तस्वीर काफी वायरल भी हुई थी, इसको लेकर मोदी की सोच पर सवाल भी उठाए गए थे, जबकि शस्त्र पूजा हिंदू धर्म और संस्कृति से जुड़ा हुआ है. इसलिए जो सवाल उठाते हैं उन्हें ये जानना चाहिए कि हिन्दू धर्म में शस्त्र पूजा का महत्व क्या है और इससे जुड़ी क्या हैं पौराणिक कथाएं?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राफेल लाने के लिए खुद फ्रांस पहुंच गए हैं, जहां वो विजयादशमी के मौके पर राफेल की पूजा भी करेंगे.
दक्षिणी राज्यों में होती है शस्त्र पूजा
आयुध पूजा या शस्त्र पूजा नवरात्रि का एक अभिन्न अंग है. भारत में नवरात्रि के अंतिम दिन अस्त्र-शस्त्र पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन उन चीजों की भी पूजा होती है, जिनसे इंसान बुद्धि और समृद्धि हासिल करता है. हथियार, किताबें, गाड़ियां, घरेलू उपकरण आदि की पूजा प्राचीन काल से होती आ रही है. तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में इसे आयुध पूजा के नाम से जाना जाता है. इसके अलावा ये त्योहार केरल, ओडिशा, कर्नाटक में मनाया जाता है. महाराष्ट्र में आयुध पूजा को खंडे नवमी के रूप में मनाया जाता है.
शिवाजी और राजा विक्रमादित्य करते थे शस्त्र पूजा
भारत की सभ्यता और संस्कृति शांति का संदेश देने वाली रही है, लेकिन जब-जब युद्ध की नौबत आई तो वीरता और शौर्य की मिसाल से भी हमारा धर्म और इतिहास भरा पड़ा है. कहा जाता है कि कभी युद्ध अनिवार्य हो जाए तो शत्रु के आक्रमण की प्रतीक्षा करने के बजाए उस पर हमला करना कुशल रणनीति है. इसी के तहत भगवान राम ने भी विजयादशमी के दिन रावण से युद्ध के लिए लंका की ओर कूच किया था. मराठा रत्न शिवाजी ने अस्त्र-शस्त्र की पूजा कर इसी दिन औरंगजेब के खिलाफ युद्ध का ऐलान किया था. राजा विक्रमादित्य भी इस दिन शस्त्रों की पूजा किया करते थे.
हथियारों की पूजा करते हुए पीएम मोदी की ये तस्वीर काफी वायरल हुई थी.
कारीगर करते हैं अपने उपकरणों की पूजा
ऐतिहासिक रूप से आयुध पूजा हथियारों की पूजा करने के लिए थी, लेकिन इसके वर्तमान स्वरूप में सभी प्रकार की मशीनों की पूजा एक ही दिन की जाती है. दक्षिण भारत में यह एक ऐसा दिन है, जब शिल्पकार या कारीगर भारत के अन्य हिस्सों में विश्वकर्मा पूजा के समान अपने अन्य उपकरणों की पूजा करते हैं, क्योंकि इनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है. यही वजह है कि शस्त्र पूजा के दिन छोटी-छोटी चीजें जैसे पिन, सुई, चाकू, कैंची, हथौड़ा ही नहीं, बल्कि बड़ी मशीनें, गाड़ियां, बसें आदि को भी पूजा जाता है.
महिषासुर वध के बाद हुई थी शस्त्र पूजा
शस्त्र पूजा से 2 पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. कर्नाटक में देवी दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर का वध करने को उत्सव के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि महिषासुर जैसे शक्तिशाली राक्षस को हराने के लिए देवताओं को अपनी पूरी शक्तियां एक साथ लानी पड़ीं. अपने दस हाथों के साथ मां दुर्गा प्रकट हुईं. उनके हर हाथ में एक हथियार था. महिषासुर और देवी के बीच नौ दिन तक लगातार युद्ध चलता रहा. दसवें दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया. सभी शस्त्रों के प्रयोग का उद्देश्य पूरा हो जाने के बाद उनका सम्मान करने का समय था. उन्हें देवताओं को वापस लौटना भी था. इसलिए सभी हथियारों की साफ-सफाई के बाद पूजा की गई, फिर उन्हें लौटाया गया. इसी की याद में आयुध पूजा की जाती है.
महाभारत से भी जुड़ी है शस्त्र पूजा
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल में दुर्योधन ने जुएं में पांडवों को हरा दिया था. शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि एक साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा. अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिप कर रहना था और यदि कोई उन्हें देख लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन का दंश झेलना पड़ता. इस कारण अर्जुन ने उस एक साल के लिए अपनी गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था और राजा विराट के लिए एक ब्रिहन्नला का रूप धारण कर कार्य करने लगे. एक बार जब उस राजा के बेटे ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद की गुहार लगाई तो अर्जुन ने उसी शमी वृक्ष से अपने धनुष को वापस निकाला और उसकी पूजा कर उन्होंने शत्रुओं को हरा दिया. तभी से इस दिन शस्त्र पूजा होने लगी. साथ ही इस दिन शमी के पेड़ की भी पूजा होने लगी.
मतलब हमारे देश में शस्त्र पूजा की गाथाएं काफी पौराणिक हैं. इसके बड़े आयाम हैं और इसके कई संदेश भी हैं, जिसमें सबसे खास है कि हम अपने जीवन में उपयोग में लाई जाने वाली हर चीज के प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हैं. भले ही बात सेना द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फाइटर जेट की हो, या फिर घरों में इस्तेमाल होने वाली सुई की, हर चीज पूज्यनीय है.
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