कश्मीरी हिंदू ऐसे मनाते हैं महाशिवरात्रि का पर्व
कश्मीरी पंडितों ने अपनी संस्कृति को सम्भाल कर रखने का हर वो प्रयास किया है, जो अपने प्रदेश से बाहर रहकर करना उनके लिए कठिन था.
-
Total Shares
''आए आए हेरथ आए''. महाशिवरात्रि, कश्मीरी पंडितों का सबसे बड़ा त्योहार, जो पंडितों ने कभी अपनी धरती से अलग होकर भी नहीं छोड़ा. अपनी संस्कृति को संभाल कर रखने का हर वो प्रयास पंडितों ने किया, जो अपने प्रदेश से बाहर रहकर करना उनके लिए कठिन था. इसका सबसे बड़ा कारण ये भी है कि पंडित समाज हमेशा से ही देशप्रेमी रहा है और अपनी धरती से प्रेम आखिर किसके मन से जाएगा. महाशिवरात्रि पर शिव परिवार की स्थापना सभी कश्मीरी हिन्दुओं के घरों में होती है और अगले 4 दिन तक वटुकनाथ हमारे घरों में मेहमान बनकर रहते हैं. महीने भर पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं. बर्तनों को प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया जाता है. कई घरों में पुराने समय के पीतल के बर्तनों का प्रयोग भी किया जाता है. महीने भर पहले से ही घरों में सफाई शुरू हो जाती है, बर्तनों को चमकाया जाता है, दिन जैसे-जैसे पास आते हैं, सभी पंडित परिवार पूजा सामग्री खरीदते हैं. सब्जियों में ख़ास होती है कमलककड़ी और गांठगोभी, जिसे मोंजी और नदरू कहा जाता है.
पंडितों की जन्थ्री यानी कश्मीरी हिन्दू कैलेंडर के अनुसार शिव परिवार की स्थापना की जाती है. पुराने ज़माने में मंदिर को ठोकुर कुठ कहा जाता था, अक्सर स्थापना वहीं की जाती थी. कश्मीरी पंडित परिवार 1990 में कश्मीर से विस्थापित होने के कारण हर रीत को सम्भाल कर रखने का प्रयास कर रहे हैं और इस प्रयास में सफल भी हुए हैं.
हर कश्मीरी पंडित का घर शिव परिवार के आगमन से शुद्ध हो जाता है. प्रणितपात्र रखकर भूत-प्रेतों को भगाया जाता है और कलश व गागर में अखरोट भरे जाते हैं. अखरोट को 4 वेदों का प्रतीक माना जाता है. सोनिपतुल जिसे शिव का प्रतीक माना जाता है उसकी पूजा की जाती है. पंच तत्व स्नान के साथ-साथ महिमनापार के साथ फूल, बेलपत्र, धतुरा इत्यादि चढ़ाया जाता है.
अनेक परिवार पितरों का तर्पण भी करते हैं. साथ ही घर में बने प्रसाद को सभी देवताओं को खिलाया जाता है. अनेक कश्मीरी भजन और मन्त्रों के उच्चारण लगातार होते हैं और छोटी-छोटी चावल की रोटियां पितरों को खिलाई जाती हैं.
शिवरात्रि की रात देवताओं को खिलाए खाने को छुपकर घर का एक सदस्य नीचे डालकर आता है ऐसा माना जाता है कि उस समय सभी देवता घर में प्रवेश कर चुके होते है. ऐसे ही शिवरात्रि की पूजा ख़त्म होती है उसके अगले दिन सभी रिश्तेदार एक दूसरे को 'हेरथ मुबारक' कहकर शिवरात्रि की शुभकामनायें देते हैं और पैसे या तोहफों के रूप में बेटियों, बहुओं, बच्चों, बेटों को आशीर्वाद दिया जाता है. सभी शादीशुदा औरतें अठहोर पहनकर रखती हैं जो सभी बड़े त्योहारों पर पहना जाता है.
चौथे दिन को डून मावस कहते हैं इस दिन चावल के आटे की रोटियां, अखरोट और नदरू खाया जाता है. सभी देवता अपने घर लौट जाते हैं और परिवार के सदस्य सारी सफाई कर ये तीन चीज़ें लेकर मंदिर में पूजा करके वापस आते हैं और द्वार खुलने से पहले नीचे दी गई तस्वीर में ऐसे बातचीत होती है.
कर्मकांड पूजा-पाठ सब होता ही है पर हर शिवरात्रि मुझे मेरे दादाजी और दादी की याद दिला देती है. ये याद नहीं कि उन्होंने कितना 'हेरथ खर्च' दिया था, पर ये याद है कि उनके होने से शिवरात्रि का आनंद कुछ और ही होता था. अपनी संस्कृति को बचाने वाले घर के बड़े लोग इन दिनों में जो देते हैं वो शायद हम बच्चों को कोई और नहीं दे सकता. अपनी धरती से खदेड़े जाने के बाद भी अपनी संस्कृति को गले से लगाकर रखना किसी उपलब्धि से कम नहीं. क्या हुआ अगर हम कश्मीर में नहीं हमारे हर घर में कश्मीरियत है और रहेगी.
ये भी पढ़ें-
नीरव मोदी जैसे अरबपति आखिर कहां खर्च करते हैं अपने पैसे
नीरव मोदी से ज्यादा दिलचस्प है यूपी की एक महिला का फ्रॉड
अगर दिख रहे हैं ये 10 लक्षण तो समझिए हो रहा है Blood Infection!!!
आपकी राय