New

होम -> संस्कृति

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 15 जून, 2015 11:31 AM
  • Total Shares

जयपुर में मेट्रो बनाने के लिए दो मंदिरों को गिरा दिया गया. मंदिर क्या टूटा साहब, बवाल मच गया. विरोध पहले से तो हो ही रहा था. लोगों के साथ-साथ कुछ संस्थाएं भी इसमें कूद पड़ीं. मंदिर टूटने के दिन स्थानीय लोगों का विरोध उग्र हो गया. अनहोनी की आशंका के तहत 400 पुलिस वालों को तैनात किया गया था. 12 लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. खैर मंदिर तोड़ दिया गया और मेट्रो के काम में जो रुकावट आ रही थी, वो खत्म हुई.

अच्छे दिन आएंगे! एक साल पहले की ही बात है. देश ने मोदी को हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर नहीं बल्कि इस जुमले पर वोट दिया था. बीजेपी को राम मंदिर के मुद्दे पर नहीं बल्कि देश के विकास और भ्रष्टाचार के खिलाफ वोट मिला था. क्या एक साल के भीतर ही जनता का विकास से मोह टूट गया और वह फिर से धर्म से चिपक गई? ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. हां यह जरूर है कि कुछ शातिर लोग धर्म की आड़ में अपनी दुकान चलाते हैं और कुछ मूर्ख लोग उनके पीछे हो लेते हैं. ऐसे लोगों से चार फर्लांग दूर ही रहें तो बेहतर है.

विकास या विश्वास?

इस देश को आखिर चाहिए क्या? विकास की रेल या धर्म की बेल (घंटी)? सदियों से हम धर्म और आध्यात्म के साये में जीते आए हैं. एकाध सदी विकास की रेलयात्रा भी करके देख लिया जाए. इसके लिए मिसाल के तौर पर क्या कभी ऐसा नहीं होगा कि लोग विरोध की बजाय मंदिरों के टूटने का जश्न मनाएं! लोग खुद आगे आएंगे और सरकार से आग्रह करेंगे कि फलां विकास के कार्य में बाधा आ रही है, कृपया मंदिर को तोड़ डालें! आजमाने में क्या बुराई है? न पसंद आए तो छोड़ देंगे. इतिहास गवाह रहा है, इस देश के लोगों ने धर्म के साथ भी काफी लचीला स्वभाव रखा है. हिंदुत्व, बौद्ध, जैन, इस्लाम, सिख, ईसाईयत और पारसी धर्म यहां साथ-साथ फले-फूले हैं. विकास नाम का धर्म भी साथ चल लेगा, क्या दिक्कत है!       

क्या होता अगर मंदिर की जगह मस्जिद होता?

दोनों मंदिर 200 साल से ज्यादा पुराना था. सोशल मीडिया पर खासकर फेसबुक पर इस मुद्दे पर विवाद चल रहा है. लोग मंदिर की जगह मस्जिद होने और उस पर सरकार के रवैये की कल्पना कर तर्क-वितर्क कर रहे हैं. लोग यह भूल जाते हैं कि राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के बाद महज एक पार्टी नहीं रहती, प्रशासन का हिस्सा बन जाती है. राजस्थान में बीजेपी की सरकार है. क्या कांग्रेस की सरकार होती तो मंदिर नहीं तोड़ी जाती या मस्जिद होता तो निश्चित तौर पर बच जाता? किसी गफलत में न रहें, सरकार अगर विकास के लिए दृढ़ संकल्प है तो वो मंदिर-मस्जिद के पचड़े में नहीं फंसेगी बल्कि अपना काम करती रहेगी. और हां, जयपुर मेट्रो के रास्ते में ऐसे 13 और मंदिर हैं, जिन्हें हटाया जाना है. सिर्फ 6 पुजारियों ने ही इस पर अपनी सहमति दी है. हंगामा और भी होगा. लेकिन यह भी मान कर चलिए कि सरकार तब भी अपना काम करेगी. 

विकास की रेल पकड़िए जनाब! इसी में भविष्य है. कब तक 'हम एक महान देश के वासी हैं...' का गीत गाते फिरेंगे? महानता भूत की नहीं, भविष्य की ओर देखती है. एक कहावत है न, उगते सूर्य को सब सलाम करते हैं. ठीक उसी तरह, विकास भी हमारे देश के लिए उगता सूर्य है, इसे सिर्फ सलाम मत कीजिए, पकड़ लीजिए... उद्धार हो जाएगा. आपका भी, देश का भी.

#मंदिर, #जयपुर, #मेट्रो, मंदिर, जयपुर, मेट्रो

लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय