karwa chauth का व्रत रखने के पीछे श्रद्धा है या डर?
करवाचौथ की हर कहानी में एक खास बात है कि उसमें यही बताया जाता है कि एक महिला जिसने करवाचौथ का व्रत ठीक से नहीं किया, उससे चौथ माता या गणेश जी नाराज हो गए और उसके पति की मृत्यु हो गई या वो गंभीर बीमारी का शिकार हो गया. और जब उन्होंने नियम-धर्म से व्रत किया तो पति जिंदा हो गया.
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Karwa chauth की तैयारियां जोर शोर से चल रही हैं. Beauty parlour में भीड़ लगी हुई है, makeup के लिए प्रीबुकिंग हो रही है. Mehndi लगाने वालों के आगे महिलाओं की लाइनें लगी हुई हैं. साड़ियों के ब्लाउज सिलकर आ गए हैं. मैचिंग चूड़ियां और गहने भी लगभग हो ही चुके हैं. बस करवा भरना ही रह गया है. यानी all set for करवाचौथ.
शादीशुदा महिलाओं के लिए करवाचौथ का एक अलग ही महत्व है. मैं इसे महत्व इसलिए कह रही हूं क्योंकि एक सुहागन महिला के लिए इससे बड़ा त्योहार कोई नहीं होता. पति की लंबी उम्र का मामला है इसलिए इस व्रत को महिलाएं बड़ी श्रद्धा से रखती हैं. हालांकि करवाचौथ के एक्साइटमेंट में बहुत सी महिलाओं को इस बात की चिंता भी होती है कि पूरे दिन भूखा-प्यासा रहना होगा. इनमें ज्यादातर वो महिलाएं हैं जिनकी नई-नई शादी हुई है और पहली बार ये व्रत रखने वाली हैं. इनमें वो भी हैं जो अपने होने वाले पति के लिए व्रत करेंगी. ये आजकल की पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं जिन्हें ये भी पता है कि करवाचौथ का व्रत क्यों रखा जाता है और वो ये भी जानती हैं कि इस व्रत को लेकर आधुनिक समाज में क्या बहस चलती है.
जैसे- सिर्फ महिलाएं ही ये व्रत पति के लिए क्यों करें, पत्नियों की उम्र के लिए कोई व्रत क्यों नहीं होता, इस व्रत को करने से पति की उम्र कैसे बढ़ती है, वगैरह-वगैरह. लेकिन मजाल है कि ये अपनी सास के आगे इस तरह के सवाल कर लें. आजकल जो महिलाएं अपने धर्म और रीति-रिवाजों पर तर्क की बात करती हैं उन्हें अधर्मी, 'ज्यादा' पढ़ी लिखी, अंग्रेज, असंस्कारी कहा जाता है. समाज में ऐसी महिलाओं की इज्जत उतनी नहीं होती जितनी रीति-रिवाज निभाने और नियमित रूप से पूजा-पाठ करने वाली महिलाओं की होती है.
करवाचौथ में श्रद्धा भी है और डर भी
इस त्योहार को लेकर मुझे महिलाओं में हमेशा अपार श्रद्धा दिखी है लेकिन उसके पीछे से झांकता डर भी. मुझे याद है बचपन में करवाचौथ वाले दिन मेरी मां की तबियत काफी खराब हो गई थी. वो निर्जला व्रत करती थीं इसलिए दवाई भी नहीं खाई. शाम को पूजा के वक्त तक उनकी हालत इतनी खराब हो गई कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा. वहां पर भी वो दवा खाने के लिए मुंह नहीं खोल रही थीं. डॉक्टर ने उन्हें जबरदस्ती दवाई दी और वो ठीक हुईं. उनकी हालत देखकर ही मुझे इस व्रत की गंभीरता का अहसास हुआ था. वहां मां की श्रद्धा तो कम दिखाई दी, लेकिन उनका डर दिख रहा था कि अगर उन्होंने चांद देखने से पहले पानी पी लिया तो अशुभ हो जाएगा.
कथा-कहानियों में माताओं का डरावना रूप क्यों दिखाया जाता है?
करवाचौथ की जब पूजा की जाती है तो एक कहानी या कथा पढ़ी जाती है. जिसके लिए कहा जाता है कि कथा सुने बिना व्रत अधूरा माना जाता है. हर जगह के हिसाब से करवाचौथ की अलग-अलग कहानियां प्रचलित हैं. लेकिन हर कहानी में एक खास बात है कि उसमें यही बताया जाता है कि एक महिला जिसने करवाचौथ का व्रत ठीक से नहीं किया, उससे चौथ माता या गणेश जी नाराज हो गए और उसके पति की मृत्यु हो गई या वो गंभीर बीमारी का शिकार हो गया. और जब उन्होंने नियम-धर्म से व्रत किया तो पति जिंदा हो गया.
करवाचौथ की कथा पढ़िए, यहां डराया ही जा रहा है
व्रत ठीक से करने पर मरा हुआ पति कैसे जिंदा हो गया
अब ऐसा कैसे हो सकता है कि मरा हुआ पति जिंदा हो जाए. लेकिन यहां सवाल नहीं किया जा सकता. आपकी श्रद्धा पर सवाल खड़े हो जाएंगे.
क्या एक मां कभी अपने बच्चे को दुख दे सकती है. अगर अनजाने में बच्चे से कोई गलती हो जाए तो उसकी सजा क्या एक मां दे सकती है? नहीं, तो फिर कैसे देवी मां अपने भक्तों से रुष्ट होकर उनके साथ इतना बुरा कर सकती हैं. ये सब सिर्फ कथाओं में लिखा होता है कि माता को प्रसन्न करना है तो व्रत करो. वरना कौन मां अपने बच्चों से कहती है कि पहले पूरे दिन भूखे रहो, तभी प्रसन्न होंउंगी मैं !
इस कथा में जिन शब्दों का इस्तेमाल हुआ है क्या वो शब्द एक मां के हो सकते हैं ?
मेरे विचार भले ही कुछ लोगों को अधार्मिक लग रहे हों. लेकिन मुझे नहीं लगता कि सत्यनारायण भगवान की कथा में पति के आने की खुशी में बिना प्रसाद लिए चली गई महिला के पति की नाव को डुबो देना किसी भगवान ने किया होगा. ये सिर्फ महिलाओं को डराने के लिए बनाई गई कहानियां हैं जो उन्हें रीति-रिवाजों को निभाते रहने और धर्म कर्म करते रहने के लिए बाध्य करती हैं.
कहानियों के माध्यम से महिलाओं के दिमागों में कूट-कूटकर ये भर दिया गया है कि उनके पतियों की उम्र इस व्रत की वजह से ही लंबी हो रही है और उगर इस व्रत में जरा सी भी चूक हुई तो पति को कुछ हो जाएगा. आजकल तो जितना आधुनिक जमाना हो रहा है उतना ही लोगों को डराया भी जा रहा है कि-
और ये काम है कि पति के साथ इस दिन झगड़ा बिल्कुल न करें, कथा सुनते वक्त हिलें नहीं, भूलकर भी पानी न पिएं...वगैरह-वगैरह. यानी महिलाओं को डराने का पूरा इंतजाम इस व्रत में किया जाता है.
और अगर मान भी लें कि सिर्फ ये करवा चौथ ही पतियों की रक्षा किए हुए है तो फिर उन हिंदू महिलाओं के पतियों की रक्षा कौन करता है जिनके यहां करवाचौथ मनाया ही नहीं जाता? और बाकी धर्मों में पतियों की उम्र बढ़ाने के लिए क्या करती हैं महिलाएं? यहां एक और सवाल ये भी उठता है कि उन पतियों का क्या जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, क्या उनकी पत्नियों ने अपने करवा चौथ के व्रत में कोई कसर छोड़ दी थी, जो ऐसा हो गया? क्या देश के लिए अपनी जान देने वाले शहीदों की पत्नियों ने करवा चौथ के व्रत नहीं रखे होंगे? फिर ऐसा क्या हुआ कि उनके पति उनसे छिन गए. और अगर ऐसा है तो फिर भारत के पुरुष तो सबसे ज्यादा उम्र तक जीते होंगे. पर अफसोस ऐसा नहीं है, WHO के मुताबिक स्विटजरलैंड के पुरुष सबसे ज्यादा उम्र तक जीते हैं. और हां, वहां महिलाएं करवाचौथ का व्रत भी नहीं रखतीं.
मैं इस पक्ष में बिलकुल भी नहीं कि पति भी अपनी पत्नियों के लिए व्रत रखें, लेकिन सवाल अब भी यही है कि जहां श्रद्धा से काम चल सकता है वहां इस तरह डराया क्यों जाता है?
त्योहार को मनाना चाहिए, श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करना चाहिए, लेकिन अगर आप डरकर इस व्रत को कर रही हैं तो कुछ सवाल अपने आपसे पूछिए क्या ये सही है?
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