5 कहानियां, जो बताती हैं कृष्ण सिर्फ रसिया नहीं मर्यादा-पुरुषोत्तम भी हैं
भगवान राम को तो उनके मर्यादा पुरुषोत्तम होने के लिए अलग तरह का मान सम्मान दिया जाता है वहीं श्री कृष्ण को उनकी रास लीला की वजह से वो सम्मान नहीं दिया जाता जितना भगवान राम को मिलता है. छेड़छाड़ करने वालों को तो मजाक में कृष्ण-कन्हैया तक कहा जाता है.
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जन्माष्टमी आती है तो भक्त पूजा और व्रत करके श्री कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं. अपने बच्चों को कृष्ण की तरह सजाते हैं. स्कूलों में भी बच्चों को कृष्ण बनाया जाता है. कृष्ण की मन मोहने वाली छवि को सब जीवंत करते हैं. लेकिन ये सिर्फ एक फैंसी ड्रेस शो बनकर ही रह जाता है, जब तक कि कृष्ण के उपदेशों को बच्चों के मन तक नहीं पहुंचाया जाए. लेकिन नटखट, शरारती, माखन चुराकर खाने वाले, गोपियों के संग रास लीला रचाने वाले, और राधा के संग प्रेम की बंसी बजाने वाले कृष्ण के ही छवि लोगों के मन में बसी हुई है.
भगवान राम को तो उनके मर्यादा पुरुषोत्तम होने के लिए अलग तरह का मान सम्मान दिया जाता है वहीं श्री कृष्ण की बड़ी पहचान उनकी रास लीला की वजह से है. छेड़छाड़ करने वालों को तो मजाक में कृष्ण-कन्हैया तक कह दिया जाता है. कृष्ण अगर गोपियों संग रास रचाते थे या राधा को बंसी बजाकर सुनाते थे, तो इसका मतलब ये नहीं कि महिलाओं के प्रति उनके संदेश में गंभीर दर्शन नहीं है.
श्री कृष्ण को उनकी रास लीला की वजह से वो सम्मान नहीं दिया जाता जितना भगवान राम को मिलता है
श्री कृष्ण के जुड़ी ये 5 घटनाएं पढ़िए और सोचिए कि रसिया छवि मानकर कहीं हम कृष्ण से मर्यादा के सबक सीखने से वंचित तो नहीं हो रहे हैं...
द्रौपदी: महिला सम्मान की रक्षा करने वाले कृष्ण
महाराज द्रुपद के यहां यज्ञकुण्ड से जन्मी पुत्री द्रौपदी पांच पांडवों की रानी थीं. श्री कृष्ण द्रोपदी को अपनी बहन मानते थे. वहीं द्रौपदी भी श्रीकृष्ण को अपना सखा, रक्षक, हितैषी व परम आत्मीय मानती थीं. महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर द्रौपदी को दांव पर लगाकर हार गए थे. तब दु:शासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया था. दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने पूरी सभा के सामने ही द्रौपदी को निर्वस्त्र करना शुरू कर दिया था. सभा में मौजूद सभी दिग्गज द्रौपदी की लाज बचाने के बजाए मुंह झुकाए बैठे रहे. ऐसे में द्रौपदी ने आंखें बंद कर वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया. और उनकी लाज बचाने की विनती की. द्रोपदी की पुकार सुनकर श्री कृष्ण अदृश्यरूप में या कहें कि द्रौपदी के वस्त्रों के रूप में वहां पधारे और द्रोपदि की लाज बचाई. दुःशासन द्रौपदी की साड़ी खींच रहा था और श्री कृष्ण साड़ी बढ़ाए जा रहे थे. दु:शासन साड़ी को जितना खींचता, साड़ी उतना ही बढ़ जाती थी. साड़ी का ढेर लग गया. और अंत में दु:शासन लज्जित होकर बैठ गया. ऐसे में श्री कृष्ण ने द्रोपदी के सम्मान की रक्षा की.
आज सड़कों पर, घरों में न जाने कितनी ही महिलाओं के साथ अन्याय होता है, लेकिन कोई किसी के मामले में नहीं पड़ता. उस दौर में तो कृष्ण ने एक नारी की लाज बचा ली थी, लेकिन आज के दौर में महिला की लाज बचाने वाले कृष्ण नहीं मिलते. हां उस घटना को मोबाइल पर रिकॉर्ड करने वाले बहुत मिलते हैं.
सुभद्रा: बहन की पसंद को अहमियत देने वाले कृष्ण
सुभद्रा वसुदेव की पुत्री और भगवान श्री कृष्ण की बहन थीं. बड़े भाई बलराम थे. बलराम सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से करना चाहते थे. लेकिन सुभद्रा और अर्जुन एक दूसरे से प्रेम करते थे. कृष्ण दोनों के मन की बात समझते थे. ऐसे में कृष्ण ने अपनी बहन के प्रेम और उसकी पसंद को सर्वोपरि रखा. उन्होंने अर्जुन को सुभद्रा का अपहरण करने का इशारा दिया. कष्ण ने अर्जुन से कहा- "तुम्हारे यहां स्वयंवर का चलन है, परंतु यह निश्चित नहीं कि सुभद्रा तुम्हें स्वयंवर में वरेगी या नहीं, क्योंकि सबकी रुचि अलग-अलग होती है, लेकिन राजकुलों में बलपूर्वक हर कर ब्याह करने की भी रीति है. इसलिए तुम्हारे लिए वही मार्ग प्रशस्त होगा." एक दिन जब सुभद्रा मंदिर जाने के लिए निकलीं तो अवसर पाकर अर्जुन ने सुभद्रा का हरण कर लिया.
श्री कृष्ण ने तब इस बात को समझा दिया था कि एक नारी को उसका जीवनसाथी चुनने का पूरा अधिकार है. उन्होंने तब बलराम सहित सभी यादवों को अर्जुन के लिए समझाया. उन्होंने बताया कि लड़की की शादी अगर उसकी इच्छा के विरुद्ध की जाएगी तो वो सुखी नहीं रहेगी. सभी लोगों ने कृष्ण की बात मानी और द्वारका में विधिपूर्वक सुभद्रा और अर्जुन का विवाह संपन्न हुआ. कृष्ण एक ऐसे भाई थे जिन्होंने अपनी बहन को केवल खुश देखना चाहा. उन्होंने सुभद्रा और अर्जुन के रिश्ते पर जो कुछ कहा उसे यहां सुनना चाहिए-
आज बहन किसी से प्रेम कर ले तो घर की इज्जत का हवाला देकर उसे रोका जाता है. ऑनर किलिंग की जाती है.
रुक्मिणी: एक स्त्री की इच्छा का मान रखने वाले कृष्ण
लोग भले ही ये सोचते होंगे कि श्री कृष्ण अगर राधा से प्रेम करते थे तो उन्होंने रुक्मिणी से शादी क्यों की. लेकिन उसके पीछे की वजह भी सोचने वाली है. विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं रुक्मिणी. रुक्मिणी लोगों से कृष्ण की प्रशंसा सुनतीं और उनके गुणों पर मुग्ध होकर रुक्मिणीमन ही मन निश्चय किया कि वह श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी को भी पति रूप में नहीं चुनेंगी. रुक्मिणी के भाई उनकी शादी शिशुपाल से करना चाहते थे. विवाह होना निश्चित हुआ लेकिन रुक्मिणी इस रिश्ते से बहुत दुखी थीं. तब उन्होंने श्री कृष्ण को संदेश भेजा जिसमें उन्होंने कहा कि वो कृष्ण को पति के रूप में स्वीकार कर चुकी हैं और अगर उनकी शादी शिशुपाल से होगी तो वो अपने प्राण त्याग देंगी. तब कृष्ण ने रुक्मिणी की इच्छा का सम्मान करते हुए शादी से पहले ही रुक्मिणी का हरण कर लिया. यहां भी उन्होंने नारी को अपनी इच्छा से ही विवाह करने पर जोर दिया था. सुनिए क्या कहा था कृष्ण ने-
देवकी-यशोदा: अच्छा बेटा बनकर मां का सम्मान करने वाले कृष्ण
श्री कृष्ण के जन्म के बारे में हर कोई जानता है. मां देवकी ने श्री कृष्ण को कंस के कारागार में जन्म दिया, और कैसे वासुदेव ने उन्हें योगमाया से बदलकर कृष्ण को बचाकर गोकुल ले आए. यहां वासुदेव की पत्नी माता यशोदा ने कृष्ण को पाल पोसकर बड़ा किया. आज कृष्ण को यशोदा के ही पुत्र के रूप में जाना जाता है जबकि जन्म देने वाली मां देवकी थीं. मां ने तो बेटे को उतना ही प्यार दिया जिसके लिए हर मां जानी जाती है. लेकिन कृष्ण ने भी सब कुछ जानते हुए भी अपनी मां यशोदा का उसी तरह से सम्मान किया जैसा अपनी सगी मां से किया जाता है. गोद लेने वाली मां से कृष्ण के स्नेह का वर्णन पुराणों में मिलता ही है.
राधा: ताउम्र प्रेम निभाने वाले कृष्ण
आज प्रेम की बात हो तो राधा और कृष्ण का ही नाम सबसे पहले लिया जाता है. राधा के कृष्ण के लिए प्रेम की वजह से ही राधा का नाम कृष्ण से पहले लिया जाता है. लेकिन जब दोनों का प्रेम सच्चा था तो दोनों ने शादी क्यों नहीं की. इसको लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. एक वजह यह थी कि अपने पिता के वचन के कारण उनकी शादी कृष्ण से नहीं हुई. राधा रानी के पिता वृषभान ने अपने परम मित्र को वचन दिया था कि वो जीवन में एक बार उनसे कुछ भी मांग सकते हैं. मित्र ने वचन याद दिलाते हुए राधा का विवाह कृष्ण से न करवाकर उनके बेटे अयन (अभिमन्यु) से करवाने की बात कही. वचन की खातिर राधा का विवाह कृष्ण से नहीं हुआ. एक कहानी ये भी है कि श्रीधर ने भी राधा और कृष्ण को 100 वर्षों तक वियोग का श्राप दिया था. जिसके कारण ही श्री कृष्ण और राधा के विवाह में विघ्न आए.
बहरहाल कारण जो भी हो, लेकिन जितना प्रेम राधा ने कृष्ण से किया, कृष्ण ने भी राधा को उतना ही प्रेम दिया. दोनों का प्रेम आज 'राधे कृष्ण' के नाम से पूजा जाता है. तो ऐसे प्रेम करने वाले थे राधा और कृष्ण. शादी नहीं हुई तो क्या हुआ, प्रेम सदियों तक बना रहेगा. प्रेम में त्याग की परिभाषा को कृष्ण से बेहतर कौन समझा सकता है.
दोनों का प्रेम आज 'राधे कृष्ण' के नाम से पूजा जाता है
लेकिन आजकल के प्रेमी जो शादी के लिए मना कर देने पर लड़कियों के चेहरे को तेजाब से जला देते हैं, चाकुओं से गोद देते हैं, लड़कियों की ऑनर किलिंग कर रहे हैं, क्या वो कृष्ण के इस प्रेम से कुछ सीख पाएंगे?
श्री कृष्ण के जीवन की ये पांच घटनाएं यूं तो हर किसी को पता हैं, लेकिन कोई भी कृष्ण के ज्ञान सागर में डूब नहीं पाया. सिर्फ सतही बातें समझीं और कृष्ण की छवि को ही बदल दिया. ये बातें आज इसलिए याद दिलाई गईं कि कृष्ण की रसिया वाली छवि अब बदलनी ही चाहिए. क्योंकि आज के परिवेश में हर लड़की को ऐसे ही कृष्ण की जरूरत है. कृष्ण की ये छवि लोगों को समझाई जाए, तभी जन्माष्टमी सफल हो.
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