वो कश्मीरी पंडित कवि जिसके रामधारी सिंह ‘दिनकर’ भी दीवाने थे
कई दुखों से भरा हुआ कवि के दिल का पिटारा जब टूट जाता है तो उस में से आवाज़ निकलती है और वो आवाज़ ही कविता होती है.
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दादा जी के छोटे भाई से हमेशा साहित्य पर बातचीत होती रहती है और वो मुझे बड़े बड़े नाम वाले कवियों के बारे में बताते रहते हैं. हमारे समाज और देश की ये विडंबना है कि हमारे यहां जिसका नाम रेशम से नहाया हुआ हो और जो किसी भी कारण के चलते चर्चा में रहता हो, लोग उसी को ही अधिकतर याद रखते हैं. पर शायद ये नज़रिया अब बदलने की आवश्यकता है क्योंकि हम बहुत महत्वपूर्ण प्रतिभाओं को अनदेखा करने लगे हैं. एक बात ये भी है कि हम किसी को चर्चा में भी कुछ समय तक ही रख पाते हैं, जिसे अंग्रेज़ी में स्टारडम कहा जाता है. कम से कम वो कवि जिन्होंने अपनी स्याही से वो लिख दिया जो आज भी प्रासंगिक है उनको भूलना किसी जुर्म से कम नहीं.
कश्मीर का नादिम, नादिम यानि मित्र या कहें साथी. कवि दीनानाथ नादिम की आज विश्व कविता दिवस पर बहुत याद आ रही है. कहते हैं कवियों से ईश्वर को बड़ा प्रेम होता है और समाज में चल रही कुरीतियों को ईश्वर सच्चे कवियों से बांटता है, इसीलिए आशीष के रूप में हर सच्चे कवि को एक ऐसी कविता मिलती है जो समाज के लिए कुछ करने के सिद्धांत से आती है. तभी शायद नादिम भी वो लिख गए जो साधारण तो है पर प्रासंगिक भी है, समाज के हित में भी है.
महाकवि दीनानाथ नादिम
नादिम का जन्म 16 मार्च 1916 को श्रीनगर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी मां ने ही उन्हें काव्य रचना के संस्कार दिए, साथ ही संस्कृति का बोध भी कराया. नादिम अंग्रेजी कवि वर्ड्सवर्थ से बेहद प्रभावित थे. भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव जैसे क्रांतिकारी वीरों ने नादिम को देश के प्रति अग्रसर किया.
नादिम एक बेहद प्रगतिशील कवि थे. कई दुखों से भरा हुआ कवि के दिल का पिटारा जब टूट जाता है तो उस में से आवाज़ निकलती है और वो आवाज़ ही कविता होती है. ये थे नादिम, साधारण पर बड़े सजग. जब पिटारा फूटा तो जीर्णकाव्य परम्पराओं को नादिम ने अपनी कविता से मुंह मोड़ने पर विवश कर दिया.
ब ग्यव न आज़
मैं आज नहीं गाऊंगा
गुलों बुलबुलों के गीत
नर्गिस व सुंब्लों के गीत
मैं नहीं गाऊंगा
अब ऐसी नज़में मेरे लिए नहीं हैं
मैं आज ऐसी ग़ज़लें नहीं गाऊंगा
नादिम की कविता जब रामधारी सिंह दिनकर ने सुनी तो मेरे दादा से गुस्से में बोल बैठे ‘तुम लोगों ने हिंदी वालों से नादिम छीन कर उसे ठेठ कश्मीरी कवि बनाकर बहुत बड़ा अन्याय किया है. यदि वो हिंदी में काव्य रचना जारी रखते तो आज दिनकर से पहले नादिम को हिंदी साहित्य में उपुर्युक्त स्थान मिलता’ वो एक आग मन में लिए चलता था, जिससे वो जलाता नहीं था जगाता था. एक वासना की आग लिए नादिम की मसि से निकला हर शब्द सूरज की किरणों की तरह चमकता है.
मे छम आश पगहच,
पगाह शोलि दुनिया मुझे कल की आशा है,
कल दुनिया रोशन होगी किंतु कहते है
कल जंग छिड़ने वाली है..
नहीं हो जाए कल जंग
मेरी दुनिया रोशन होने वाली है..
मिशन कश्मीर फिल्म में दर्शया गए गीत के सुन्दर शब्द भी नादिम की ही कलम से निकले. अपनी जन्म भूमि कश्मीर पर नादिम ने जो लिखा वो आप बार बार पढना चाहेंगे
हे माँ! तुम से किस बुलबुल ने कहा था
तू विवश है बेकस है
किस ने कहा तेरे बुलबुल पराजित
वीरानियों में मुख मादे हुआ हैं
माँ तू हिमालय की अग्रजा है
तभी भरपूर अलंकारों से दीप्त है
नादिम के कुछ मशहूर गीत
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