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Updated: 01 नवम्बर, 2017 06:12 PM
अभिनव राजवंश
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  @abhinaw.rajwansh
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आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर राम मंदिर मसले का हल ढूंढने में मदद के लिए आगे आए हैं. इसके लिए वो कई पक्षकारों से संपर्क में हैं. आजतक-इंडिया टुडे से खास बातचीत में खुद श्री श्री रविशंकर ने यह जानकारी दी. उन्होंने कहा है कि वह इस मामले में मध्यस्थता के लिए तैयार हैं. लेकिन फिलहाल इस मामले में कोई पहल नहीं कर सके हैं. भारत के इतिहास के सबसे पुराने मुक़दमे में निश्चित रूप से श्री श्री की यह पहल सराहनीय कही जा सकती है. हालांकि श्री श्री रविशंकर की यह पहल क्या रंग लाएगी इसका इंतज़ार पूरे देश को होगा...

इस समय राम मंदिर मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. मामले की आखिरी सुनवाई दिसंबर 5 से शुरू करने की बात सुप्रीम कोर्ट ने कही है. सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी. भारत के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली इस बेंच में अब्दुल नज़ीर और अशोक भूषण दो अन्य न्यायधीश हैं.

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब किसी ने राम जन्भूमि विवाद को बातचीत द्वारा हल करने की पहल की हो. रविशंकर से पहले भी कई बार इस विवाद को बातचीत द्वारा सुलझाने की कोशिश की गयी थी. ये और बात है कि अबतक कोई भी पहल इस मामले को सुखद अंत तक ले जाने में असफल ही रही है. पिछले तीन दशक में लगभग 10 बार इस मुद्दे को कोर्ट से बाहर सुलझाने की कोशिश की गयी. हर बार नतीजा सिफर ही रहा.

ayodhya, babari masjid, ravishankarक्या अब बातचीत से हल होगा बाबरी मस्जिद विवाद

पहले भी होती रही है मामले को सुलझाने की पहल-

इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य न्यायधीश जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने इस मामले को बातचीत द्वारा सुलझाने को कहा था. जस्टिस खेहर ने खुद इस मामले में मध्यस्ता करने की भी पेशकश की थी. मगर इस पहल के कोई ठोस परिणाम देखने को नहीं मिले.

प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा मध्यस्थता की कोशिश-

तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने दिसंबर 1990 में इस विवाद को सुलझाने की पहल की थी. उन्होंने मामले के दोनों पक्ष विश्व हिन्दू परिषद् और बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था. चनद्रशेखर के इस पहल के बाद दोनों ने ही अपना-अपना पक्ष रखा. हालांकि इसके बाद इस मुद्दे में कुछ खास नहीं हो सका.

प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा मध्यस्थता की कोशिश-

2002 में तब की अटल सरकार ने अयोध्या सेल बनाने की घोषणा की थी. शत्रुघ्न सिन्हा को दोनों पक्षों से बातचीत करने के लिए नियुक्त किया गया. पर यह पहल सिर्फ घोषणा के आगे नहीं बढ़ सकी.

वाजपेयी सरकार ने साल 2003 में भी इस विवाद में मध्यस्थता कर रहे, कांची शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती का पूरा साथ दिया. लेकिन शंकराचार्य भी इस मसले को किसी नतीजे तक ले जाने में विफल ही रहे.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुलह की कोशिश-

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद महंत ज्ञान दास और हाशिम अंसारी ने भी इस मसले को निपटाने की कोशिश की. दोनों ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए एक फॉर्मूला दिया. उनका कहना था कि इस विवादित जमीन पर मंदिर मस्जिद दोनों के लिए जगह मुहैया कराई जाय. हालांकि यह प्रयास भी अन्य प्रयासों की ही तरह किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सका.

2016 में भी सुलह की कोशिश-

अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी, हाशिम अंसारी से मिलकर इस मुद्दे को सुलझाने के लिए आगे आये. हालांकि यह बात आगे बढ़ती उस से पहले ही हाशिम अंसारी की मौत हो गयी.

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अभिनव राजवंश अभिनव राजवंश @abhinaw.rajwansh

लेखक आज तक में पत्रकार है.

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