Part 1: जब योगी आदित्यनाथ वाली अयोध्या पहुंचे त्रेता के राम
राम भगवान है, वरना न जाने क्या कर जाते. दिवाली के दिन अपने मुहूर्त पर वे अयोध्या पहुंचे. साथ लक्ष्मण और सीता भी थे. लेकिन उनके साथ जो कुछ हुआ, उसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी.
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त्रेता के राम का कलयुग की अयोध्या में आगमन और उनके अनुभव की 9 कथाएं :
कथा-1
प्रभु श्री राम, सीता मईया, लक्ष्मण अयोध्या के बार्डर पर खड़े थे. अयोध्या को देखते ही प्रभु राम ने मन ही मन कहा, 'अति प्रिय मोह इंहा के बासी, मम धामदा पुरी सुखरासी.' खड़े- खड़े काफी वक्त गुजर गया, परन्तु कोई अयोध्यावासी उनके अगुवायी के लिए उपस्थित नहीं हुआ. प्रभु राम के मन में न जाने कितने प्रश्न नाग की भांति फन उठाने लगे. प्रश्नाकुल तो जगत जननी सीता जी भी हुईं. परन्तु वह स्थिर बनी रहीं. 'कहां गए सारे अयोध्यावासी!' प्रभु राम ने लक्ष्मण से प्रश्न नहीं किया था. वह तो स्वयं से बोले थे. परन्तु अनुज लक्ष्मण ने सुन ही लिया. लम्बे-लम्बे डग भरते हुए लक्ष्मण एक किशोर की ओर लपके जिसकी चाल को देखकर लगता था कि वह बहुत जल्दी में है. लक्ष्मण ने उसे रोकते हुए पूछा, 'आज यहां इतना सन्नाटा क्यों है?' 'टीवी पर क्रिकेट का मैच चल रहा है न!' यह कहते हुए किशोर फुर्ती से निकल गया.
योगी की अयोध्या पहुँचने के बाद का हालकथा-2
'लो आ गई अपनी नगरी!' मर्यादा पुरूषोत्तम राम बोले. 'क्या अपनी प्यारी अयोध्या नगरी आ गई!' लक्ष्मण ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा. 'आ तो गई, परन्तु दिखती नहीं!' सीता मैय्या को भी अचरज हुआ. 'आप सबको आश्चर्य क्योंकर हो रहा है!' प्रभु राम बोले. 'भईया यदि अयोध्या नगरी आ गई है, जैसा कि आप कह भी रहे हैं, तो कृपया बतायंगे कि यहां इतना अंधेरा क्यों है!' 'बिजली कटौती ...' यह आवाज नीचे पड़े शिलाखंड से आयी थी, जिस पर प्रभु राम ने अपने चरण जमाए थे. कारण बताकर उस शिलाखंड ने लक्ष्मण की जिज्ञासा शांत करने की चेष्टा की. परन्तु लक्ष्मण शांत होने के बजाए क्रोधित हो गए, उत्तेजना में बोले,‘अविश्वसनीय! प्रभु राम की नगरी अँधेरे में!’ शिलाखंड अपना मुँह टेढ़ा करके सीधे लक्ष्मण की ओर मुखातिब हुई, तब तक प्रभु राम ने अपने श्रीचरण हटा लिए थे. वह बोली, 'अयोध्या भगवान राम की नगरी है, मगर भईया कोई प्रदेश की राजधानी तो है नहीं... और न ही तो किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जैसे किसी वीआईपी का गृह जनपद या चुनाव क्षेत्र, जहां चैबीसों घण्टे अबाध विद्युत की आपूर्ति हो.' यह सुनते ही लक्ष्मण शिला की भांति जड़ हो गए.
कथा-3
अयोध्या में कुछ दूर चलने के बाद प्रभु राम सहित सीता मैय्या के पांव ठिठक गए, यद्यपि लक्ष्मण के कदमों ने अपेक्षाकृत कुछ दूरी तय कर ली थी. तीनों को यकायक किसी नेता का भाषण सुनाई दिया. जो कह रहा था, 'रामलला का मंदिर यही बनायेंगे...' तीनों चरण रज उड़ाते हुए उसी दिशा की ओर अग्रसर हुए, जिधर से आवाज आ रही थी. तभी ठोकर लगने से सीता मैय्या का संतुलन बिगड़ गया. प्रभु राम ने अविलंब उनको संभाल लिया. वे गिरने से तो बच गयीं, परन्तु पैर की मोच से न बच सकीं. 'रामलला का मंदिर यहीं बनायेंगे ...' की स्वरलहरियों ने पुनः तीनों के कानों में दस्तक दी.,'पहले ठीक-ठाक सड़क तो बनवाओ!' यहां-वहां बिखरे ढेलों में से एक को ठोकर मारते हुए लक्ष्मण बोले.
योगी की अयोध्या में लोग श्रीराम को पहचानने में असमर्थ दिखेकथा-4
कुछ जगह जलते दीये देखकर लक्ष्मण पुलकित हो उठे. बोले,'चलो, हमारे आने की खुशी में किसी ने मुंह मीठा नहीं करवाया तो न सही. मगर कुछ लोगों ने घी के दीये तो जलाए!' 'दीये तो प्रत्येक घर की देहरी पर जलने चाहिए थे. ऐसा भेदभाव क्यों!' मैय्या सीता ने पूछा. लक्ष्मण ने दीये के पास जाकर दीये को ध्यानपूर्वक देखा. दीये में घी नहीं कड़ू का तेल था. चलो मिठाई न सही! घी न सही! कड़ू का तेल ही सही! लक्ष्मण ने अपने मन को तसल्ली दी. 'परन्तु दीये तो हर घर में जलने चाहिए थे!' लक्ष्मण ने प्रभु राम से पूछा. प्रभु राम भी इसका कारण समझ नहीं पा रहे थे. तभी वहां बैठे चिलम खींचते हुए एक शहरी से लक्ष्मण जी ने इसका सबब पूछा तो वह बोला, 'हम दिया क्या जलाएं महाराज... महंगाई हमको ही स्वाहा किए जा रही है!' 'मिष्ठान,घी, कड़ू तेल के क्या दाम है?' लक्ष्मण सहसा पूछ बैठे. उस शहरी ने इन चीजों के जो दाम बताए उसे सुन कर लक्ष्मण के मुंह का स्वाद कसैला हो गया. और उन्हें अपना बदन तपता-सा लगा. लगा कि तीव्र ज्वर उनके बदन को भस्म कर देगा. इतनी जोर की तो मेघनाद की शक्ति भी न लगी थी! लक्ष्मण खड़े-खडे़ सोचते रहे.
कथा-5
चलते-चलते मैय्या सीता, अनुज लक्ष्मण के साथ प्रभु राम उस जगह आ पहुंचे थे, जो इस समय भी गुलजार था. धड़ाक! एक व्यक्ति लक्ष्मण से टकराया. उसके मुंह से शराब का भभका निकला. लक्ष्मण ने भक से मुँह फेर लिया. वह व्यक्ति लड़खड़ाते हुए नाली से गले जा मिला. लक्ष्मण तुरन्त ही नाली की छत्रछाया से उसको पृथक करने का उपक्रम करने लगे. इस दृश्य को वहाँ बैठे-खडे़-लेटे लोगों ने देखा. उनमें से एक बोला,‘सुबह को राम-राम और शाम को सौ ग्राम.’
कथा-7
इस समय प्रभु राम को अति आश्चर्य हो रहा है. यह देखकर कि प्राथमिक विद्यालय में शादी हो रही है. गुरुकुल में गृहस्थ आश्रम की आगामी व्यवस्था की जा रही है. एक छोटे से स्कू ल ने सीता स्वयंवर की यादें ताजा कर दीं. वहाँ से आगे चले. कुछ देर चलने के बाद एक सिपाही अपशब्द कहते हुए रिक्शेवाले को मारता दिखा. लक्ष्मण क्रोधित हो कर उस पर बाण चलाने ही वाले थे कि प्रभु राम ने रोक दिया. तत्पश्चात् लक्ष्मण ने बिना कुछ-सुने पुलिस वाले का हाथ पकड़ लिया. सिपाही ने पूछा,‘आप कौन हैं!’ तू-तड़ाक, अबे-तबे, एैसी-तैसी करने वाले सिपाही के बोलने का लहजा यकायक काफी नर्म हो गया और उसने शिष्टता का आचरण किया. आश्चर्य! घोर आश्चर्य! अचानक हुए इस हृदयपरिवर्तन को लक्ष्मण समझ न पाए. मगर सिपाही बखूबी समझ गया था कि हो न हो उसका हाथ पकड़ने वाला व्यक्ति सत्ता पक्ष से अवश्य जुड़ा होगा. वरना किसी की क्या मजाल...
अयोध्या की स्थिति देखकर राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी परेशान थेकथा-8
चलते-चलते मैय्या सीता को प्यास लग आयी. तीनों सरयू की तरफ बढ़ चले. घाट पर पहुँचते ही लक्ष्मण ने अँजुरी से झट मुँह में जल भर लिया. दूसरे ही पल भक्क! से उलट दिया. मैय्या सीता जो जल ग्रहण करने जा ही रही थीं कि यकायक ठहर गईं. ‘क्या हुआ लक्ष्मण! सब कुशल तो है!’ प्रभु राम गुरुगंभीर स्वर में बोले. लक्ष्मण नाक-मुँह सिकोड़ते हुए बोले,‘प्रतीत होता है भईया कि मैंने अपना हाथ किसी नाले में डाल दिया हो.’ ‘ऐसा भी तो हो सकता है कि अँधेरे में हमें दिखा न हो और हमने नाले को ही नदी समझ लिया.’ मैय्या सीता बोलीं. ‘किंचित उत्कट प्यास के चलते हमें दिशाभम्र हो गया हो!’ लक्ष्मण ने अपना मत प्रस्तुत किया. ‘संभव है! संभव है! प्रातःकाल सूरज के उजाले में हम सरयू को खोजेंगे.’ यह कहते हुए प्रभु राम की दोनों आँखों के कोर नम हो गए.
कथा-9
‘अरे उसे कोई बचाए!’ सीता मैय्या चीखीं. एक प्रसूता जिला चिकित्सालय के बाहर तड़प रही थी जिसे देखकर ही सीता मैय्या चीखीं थीं. आसपास घूमते कुत्तों को खदेड़ते हुए लक्ष्मण विद्युत गति से चिकित्सालय में दाखिल हो गए. वहाँ के वार्डबॉय को जो कि अधेड़ था, सारी स्थितियों से अवगत कराया. लक्ष्मण जी को उस समय बहुत आश्चर्य हुआ, जब यह जाना कि वह बंदा प्रसूता की स्थिति से अनभिज्ञ नहीं है. ‘अब किस बात का विलम्ब!’ लक्ष्मण बोले. ‘अरे डॉक्टर साहब हैं नहीं!’ ‘कब आएंगे!’ ‘कुछ कह नहीं सकते!’ ‘तब तक तो कोई वैकल्पिक व्यवस्था करिए!’ ‘बेड खाली नहीं है!’ ‘ऐसे तो वह मर जाएगी!’ ‘आप कौन हैं उसके’ ‘मैं...मैंऽऽऽ’ लक्ष्मण बस इतना ही बोल थे कि वार्डबॉय उन पर गहरी दृष्टि डालते हुए बोला, ‘कुछ लाए हो!’ ‘देखिए आप व्यर्थ समय नष्ट कर रहे हैं! कहीं कोई अनिष्ट हो गया तो!’ ‘नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा!’ यह कह कर वार्डबॉय इत्मीनान से आगे निकल गया.
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