Budget 1860: भारत के पहले बजट का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है
मोदी सरकार अपना अंतरिम बजट पेश करने वाली है. इससे पहले भारतीय बजट के इतिहास के बारे में कुछ बातें जान लेना भी जरूरी है. 1860 में पेश हुए उस बजट का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है.
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आखिर वो समय आ ही गया जब मोदी सरकार अपना अंतरिम बजट पेश करने वाली है. बजट-2019 मोदी सरकार को लोकसभा चुनावों से पहले जनता को लुभाने का आखिरी मौका देगा. खराब स्वास्थ्य के चलते अरुण जेटली द्वारा बजट पेश करने या न करने की अटकलों के बीच बहस इस बात पर भी है कि कहीं ये अंतरिम बजट एनडीए सरकार का अंतिम बजट न बन जाए. यानी ऐसा न हो कि मोदी सत्ता में दोबारा न लौट पाएं. खैर, इन तमाम अटकलों के बीच इस बार का अंतरिम बजट बहुत खास होने वाला है. जब Budget 2019 को लेकर दिलचस्प चर्चा छिड़ी ही है, तो भारत में बने सबसे पहले बजट का इतिहास भी कम रोचक नहीं है. अंग्रेजों के राज में यह बजट 1860 में पेश किया गया था. देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के बाद.
भारत के इतिहास में जब पहली बार बजट पेश किया गया था तो न तो वो फरवरी का कोई दिन था, न ही वो सुबह का समय था. वो दिन था 7 अप्रैल 1860. समय था शाम के 5 बजे. ये बजट पेश करने वाले थे स्कॉटिश बिजनेसमैन सर जेम्स विल्सन.
सर जेम्स विल्सन बेहतरीन अर्थशास्त्री थे.
आखिर क्यों पड़ी बजट पेश करने की जरूरत?
ब्रिटिश सरकार काफी समय से भारत में थी, लेकिन उस समय तक ब्रिटिश हुकूमत को भारत में आर्थिक सुधार करने या बजट पेश करने की जरूरत नहीं पड़ी. ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1857 में पहली बगावत हुई थी. मंगल पांडे से लेकर झांसी की रानी तक कई लोग स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे. उस समय अविभाजित भारत के कई हिस्सों से विद्रोह शुरू हुआ था और ब्रिटिश सरकार को उस विद्रोह को खत्म करने में काफी दिन लग गए थे. ऐसे हालात हो गए थे कि ब्रिटिश सरकार का खजाना सिर्फ विद्रोह दबाने में ही खाली हो रहा था. ये वो समय था जब पहली बार ब्रिटिश सरकार को बजट की जरूरत महसूस हुई. और इसीलिए 28 नवंबर 1859 को सर जेम्स विल्सन को भारत में बुलाया गया.
1860 के पहले बजट में आया था इनकम टैक्स एक्ट...
वैसे तो इस बजट में खास-तौर पर अंग्रेजी सरकार द्वारा किए जा रहे खर्च का लेखा-जोखा था और उन्हें कहां पैसे ज्यादा लगाने चाहिए ये बातें थीं, लेकिन एक सबसे बड़ी बात जिसने हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को पलट कर रख दिया वो थी इनकम टैक्स एक्ट. इससे पहले जो कर अंग्रेजी सरकार लेती थी वो किसी खास आधार पर नहीं था. पर एक निश्चित आयकर का सिस्टम बनाया सर जेम्स विल्सन ने.
विल्सन ने ही भारत को उसका पहला इनकम टैक्स एक्ट दिया था और वो इसी बजट में आया था. उनका मानना था कि क्योंकि भारत को ब्रिटिश सरकार व्यापार करने के लिए सुरक्षित साधन दे रही है और सफल व्यापार के रास्ते खोल रही है, इसलिए वो इसके बदले भारतवासियों से टैक्स वसूल सकती है.
विल्सन वैसे तो लिबरल थे और बेहतरीन अर्थशास्त्री भी, लेकिन वो ये देख पाने में असमर्थ रहे कि ब्रिटिश सरकार भारत का दमन कर रही है फिर उसी माहौल में व्यापारियों को सुरक्षित व्यापार का मौका देने की बात कर रही है.
सर जेम्स विल्सन ने भारत को पहला इनकम टैक्स एक्ट दिया ही इसलिए था ताकि ब्रिटिश सरकार 1857 में हुए नुकसान की भरपाई कर सके. समय-समय पर इसमें बदलाव होते रहे हैं, लेकिन आज के मॉडर्न इनकम टैक्स एक्ट की नींव 1860 में ही रखी गई थी.
पहले बजट की तरह कम दिलचस्प नहीं है सर जेम्स विल्सन का इतिहास...
एक जमाने में विल्सन टोपी बेचने का काम करते थे, उन्होने नील का बिजनेस भी किया. हैरानी की बात ये है कि विल्सन 'शौकिया' अर्थशास्त्री ही थे. जी हां, ब्रिटिश सरकार की तरफ से भारत के लिए नियुक्त किए गए फाइनेंस मिनिस्टर विल्सन ने अर्थशास्त्र की कोई आधिकारिक तालीम नहीं ली थी. लेकिन, वो अर्थशास्त्र के अच्छे ज्ञाता थे और उन्होंने खुद को 1837 के आर्थिक संकट के समय दीवालिया होने से बचा लिया था.
1843 में उन्होंने The Economist की शुरुआत की. वो अर्थशास्त्र और ब्रिटिश सरकार की अर्थव्यवस्था के बारे में लिखने लगे. उन्होंने अपनी संपत्ति बेचकर 1853 में चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया, ऑस्ट्रेलिया और चाइना शुरू किया. यही बैंक 1969 में स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बना. उनके इसी काम को देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मेंबर ऑफ पार्लियामेंट (इंग्लैंड) और यूके ट्रेजरी का फाइनेंस सेक्रेटरी बना दिया. और वहां अच्छा काम देखकर भारत में ब्रिटिश सरकार के आर्थिक सुधार के लिए उन्हें भेज दिया गया. अप्रैल में देश का पहला बजट पेश करने के बाद अगस्त 1860 में ही उनकी मृत्यु हो गई. उन्हें कलकत्ता में दफनाया गया है.
क्या हुआ बजट के बाद?
जहां एक ओर विल्सन के बजट ने भारत में मौजूद ब्रिटिश सरकार को एक ऐसा इकोनॉमिक टूल दिया था, जिसके साथ नई सरकार आसानी से अपने रेवेन्यू को बढ़ा सकती थी और ये कहीं न कहीं भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव रख रही थी, वहीं दूसरी ओर पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और मध्यम वर्गीय व्यापारियों के लिए नई इनकम टैक्स की पॉलिसी कमर तोड़ देने वाली थी. इनकम टैक्स एक्ट के बाद न सिर्फ कमजोर वर्ग, बल्कि जमीनदार और बड़े व्यापारी भी परेशान हो गए थे. ये कर दोहरी मार की तरह था क्योंकि अंग्रेजी सरकार कर द्वारा कमाई गई आमदनी का एक हिस्सा भारतीयों से सामान खरीदने के लिए लगा देती थी और उसी सामान की कमाई पर फिर से कर वसूल कर लेती थी.
इस पूरी प्रणाली पर जानी मानी अर्थशास्त्री उत्सा पटनायक के ने हाल ही में एक रिसर्च पेपर लिखा है जिसे कोलंबिया यूनिवर्सिटी प्रेस ने पब्लिश किया है.
कौन-कौन से बजट रहे हैं भारत के लिए खास?
1860: ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश क्राउन के लिए भारत का पहला बजट पेश किया था, जिसमें इनकम टैक्स एक्ट आया था. पेश करने वाले थे सर जेम्स विल्सन.
1947: भारतीय अर्थव्यवस्था का नवीनीकरण. 1947 के बजट में कोई नया टैक्स नहीं लागू हुआ था. ये भी अंतरिम बजट था जो 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 के लिए था. पेश करने वाले थे पहले फाइनेंस मिनिस्टर आर.के.शानमुखम चेट्टी.
1951: आजाद भारत का पहला खास बजट. इसी बजट में प्लानिंग कमीशन को रोडमैप तैयार हुआ था. इसे पेश करने वाले थे जॉन मथाई.
1968: डेमोक्रेटिक बजट. इस बजट में 'Spouse Allowance' खत्म कर दिया गया. जिसमें दोनों पति-पत्नी को इनकम टैक्स भरना होता था. साथ ही ये बजट व्यापारियों के लिए नींव साबित हुआ. पेश करने वाले थे मोरारजी देसाई.
बजट पेश करने वाले कई फाइनेंस मिनिस्टर पुराने टैक्स सिस्टम में ही बदलाव करते रहे हैं
1973: ब्लैक बजट. भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब बजट जहां फिस्कल डेफिसिट 550 करोड़ तक बढ़ गई थी. इस बजट में कोयला कंपनियों और इंश्योरेंस कंपनियों के लिए 56 करोड़ रुपए तय किए गए थे क्योंकि उस समय ये सबसे ज्यादा बढ़ने वाली इंडस्ट्री थी. पेश करने वाले थे यशवंतराव बी. चौहान.
1986: लाइसेंस राज खत्म करने वाला बजट. इस बजट में लाइसेंस राज को कम तवज्जो दी गई थी और देश के आर्थिक विकास के लिए इनडायरेक्ट टैक्स में फेरबदल किए गए थे. पेश करने वाले थे वी.पी. सिंह.
1987: गांधी बजट. इस बजट में बेहद जरूरी काम किया था उन कंपनियों को टैक्स के दायरे में लाने का जिन्हें फायदा तो बहुत होता था, लेकिन वो कानूनी तौर पर वो इससे बचने में कामयाब हो रही थीं. पेश करने वाले थे राजीव गांधी.
1991: ग्लोबल बजट. ये बजट खास तौर पर इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट पॉलिसी पर ध्यान दे रहा था और इम्पोर्ट टैक्स और एक्सपोर्ट पॉलिसी में अंतर बना कर भारत को ग्लोबल बिजनेस का मौका दिया था. पेश करने वाले थे मनमोहन सिंह.
2000: मिलेनियम बजट. इस बजट में भारत को अहम सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट हब बनाने की बात की गई थी. भारतीय IT इंडस्ट्री के लिए इसमें बहुत कुछ था. पेश करने वाले थे यशवंत सिन्हा.
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