डीजल-पेट्रोल की कीमतों का चुनावी चक्कर: ये पब्लिक है जो सब जानती है
12 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव है और 24 अप्रैल के बाद से लेकर अभी तक न तो डीजल की कीमत में कोई उतार-चढ़ाव देखा गया है, ना ही पेट्रोल की कीमत में. यूं तो इसे संयोग कहा जा रहा है, लेकिन सच क्या है, ये सबको पता है.
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डीजल-पेट्रोल की जो कीमतें लगातार बढ़ रही थीं, अब वो स्थिर हो चुकी हैं. सरकार लगातार बढ़ती कीमत की वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में महंगे होते कच्चे तेल को बताती रही. लेकिन चुनावी चक्कर का असर देखिए, कच्चा तेल अभी भी लगातार महंगा होता जा रहा है, लेकिन डीजल हो या पेट्रोल, दोनों की ही कीमतें एक स्तर पर आकर जैसे थम सी गई हैं. सरकार अक्सर ये कह देती है कि तेल की कीमतों पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है, ये तो अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से चलता है, लेकिन चुनावी मौसम आते ही तेल की कीमतें स्थिर हो जाना काफी दिलचस्प है. 12 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव है और 24 अप्रैल के बाद से लेकर अभी तक न तो डीजल की कीमत में कोई उतार-चढ़ाव देखा गया है, ना ही पेट्रोल की कीमत में. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने कहा है कि यह महज एक संयोग है कि कर्नाटक चुनाव के दौरान ही डीजल-पेट्रोल की कीमतें स्थिर हो गई हैं. खैर, ये पब्लिक है, सब जानती है.
डीजल-पेट्रोल की कीमतों का ट्रेंड ग्राफ से समझिए
मौजूदा समय में डीजल की कीमत 65.93 रुपए पर स्थिर है, जबकि पेट्रोल की कीमत 74.63 रुपए पर स्थिर है. अगर पिछले एक महीने का ग्राफ देखा जाए तो साफ दिखता है कि 24 अप्रैल से पहले तो ग्राफ में उतार-चढ़ाव था, लेकिन 24 अप्रैल से लेकर अब तक ग्राफ एकदम सीधा है. इन ग्राफ को बनाने के लिए दिल्ली की कीमतों को पैमाना लिया गया है.
पेट्रोल की मौजूदा कीमत 74.63 रुपए है, जो पिछले 18 दिनों से एक जैसी है.
डीजल की मौजूदा कीमत 65.93 रुपए है, जो 18 दिनों से स्थिर है.
रोजाना समीक्षा के फायदे अब कोई क्यों नहीं गिना रहा?
16 जून 2017 को रोजाना समीक्षा की व्यवस्था शुरू की गई थी. इससे पहले हर 15 दिनों में डीजल पेट्रोल की कीमतों की समीक्षा की जाती थी और उसी हिसाब से कभी कीमतें घटती थीं तो कभी बढ़ती थीं. इसे लागू करने के पीछे तर्क दिया गया था कि ऐसा करने से तेल कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में रोजाना बदलते दाम के हिसाब से तालमेल बैठाने में आसानी होगी, जिससे रिटेलर्स को फायदा होगा. ग्राहकों को इससे ये फायदा था कि अचानक तेल की कीमतें नहीं बढ़ेंगे, बल्कि रोजाना चंद पैसे बढ़ेंगी और घटेंगी. इससे लोगी की जेब पर पड़ने वाला बोझ अचानक नहीं पड़ेगा. यहां एक बात समझने की है कि बोझ जितना पहले पड़ता था उतना ही इस व्यवस्था के बाद भी पड़ता रहा. फर्क सिर्फ इतना है कि पहले 15 दिन में अचानक दाम रुपयों में बढ़ या घट जाया करते थे, लेकिन रोजाना समीझा के बाद ये उतार-चढ़ाव चंद पैसों में रोजाना देखने को मिलता रहा. लेकिन जिस तरह से अब दाम स्थिर हो गए है, तो लग रहा है कि रोजना समीझा की कोई जरूरत नहीं है, जबकि कच्चे तेल के दामों में रोज बदलाव हो रहा है.
पिछले करीब साढ़े तीन साल में नहीं हुआ ऐसा
आज 11 मई को डीजल-पेट्रोल की कीमतें स्थिर रहने का 18वां दिन है. रोजाना समीक्षा से पहले हर 15वें दिन डीजल-पेट्रोल की कीमतों में कुछ उतार-चढ़ाव देखने को मिलता था. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2014 से डीजल और जुलाई 2014 से पेट्रोल की कीमतों में ऐसा पैटर्न कभी नहीं देखा गया है. करीब साढ़े तीन सालों के इस समय में ऐसा कभी नहीं हुआ कि 15 दिनों में कीमतों में बदलाव न हुआ हो, लेकिन इस बार कर्नाटक चुनाव के दौरान ऐसा हुआ है. भले ही आईओसी कपंनी इसे महज एक संयोग कहे, लेकिन कच्चे तेल की कीमतें कम होने के बावजूद पहले तो कभी ऐसा संयोग नहीं हुआ. दिसंबर 2017 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी तेल की कीमतों में एक दबाव देखने को मिला था, लेकिन इतने दिनों तक दामों में स्थिरता पहली बार देखी जा रही है.
कितने बढ़ चुके हैं कच्चे तेल के दाम?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें करीब साढ़े तीन साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में ईरान के साथ परमाणु समझौता तोड़ने का ऐलान किया है, जिसकी वजह से भी कच्चे तेल की कीमतों में आग लगी है. इस एक फैसले ने कच्चे तेल के दाम करीब ढाई फीसदी बढ़ा दिए हैं. इस बढ़ोत्तरी के बाद अब कच्चे तेल की कीमतें 77.5 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुकी हैं. इससे पहले ये स्तर नवंबर 2014 में देखा गया था.
जल्द ही कंपनियां ग्राहकों को दे सकती हैं बड़ा झटका
कर्नाटक चुनाव में बस एक दिन बाकी है. चुनाव हो गया, उसके बाद नतीजों के आने का इंतजार शायद ही सरकार करे. यानी, बस एक दिन और डीजल-पेट्रोल की स्थिर कीमतों का फायदा उठा लीजिए, उसके बाद हो सकता है कि तेल कंपनियां अपने सारे नुकसान की भरपाई एक ही साथ कर दें. अगर कंपनियों ने तेल के दाम 5 रुपए तक भी बढ़ा दिए तो आखिर आपके पास अधिक पैसे चुकाने के अलावा क्या विकल्प रहेगा? ज्यादा से ज्यादा विपक्ष के लोग सरकार की निंदा कर देंगे, कुछ संगठन सड़कों पर प्रदर्शन कर देंगे और अधिकतर लोग सोशल मीडिया पर क्रांति ला देंगे. लेकिन कुछ ही दिनों बाद सब कुछ भुला दिया जाए, इसकी संभावना अधिक है.
कंपनियां मुनाफा कमाना अच्छे से जानती हैं
अगर आपको याद हो तो मोदी सरकार के सत्ता में आने के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में एक गिरावट देखी गई थी. इसकी वजह से डीजल-पेट्रोल की कीमतों में भी कुछ राहत लोगों को मिली थी. जनवरी 2016 में कच्चे तेल की कीमत अपने निम्नतम स्तर 27 डॉलर पर आ गई थी, लेकिन डीजल-पेट्रोल की कीमतों में कोई भारी गिरावट नहीं देखने को मिली थी. इतना ही नहीं, नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच पेट्रोलियम पर लगने वाले उत्पाद शुल्क को 9 बार बढ़ाया गया था, ताकि अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सके. अब जब कच्चे तेल की कीमतें उच्चतम स्तर पर हैं तो कीमतें स्थिर हो गई हैं. यानी साफ है कि कंपनियों को नुकसान हो रहा होगा. तो जनाब, ये कंपनियां अपने नुकसान की भरपाई भी करेंगी, इतना तो तय है.
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