एनपीए से नुकसान ग्राहकों को होता है ना कि बैंक को !
हाल ही में एक्सिस बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ शिखा शर्मा की बेसिक सैलरी में 7.8 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है, बावजूद इसके कि वो बैंक का एनपीए कम करने में पूरी तरह से नाकाम रही हैं.
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जो एनपीए कभी सिर्फ बैंकों के मीटिंग रूम में सुनने को मिलता है अब वह इतना डरावना हो चुका है कि उसकी बात घरों के ड्राइंग रूम से लेकर बेडरूम तक होने लगी है. ऐसा हो भी क्यों नहीं, नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे लोग बैंकों के करोड़ों रुपए लेकर विदेश भाग चुके हैं और बैंक लाख कोशिशों के बावजूद अपने पैसे वापस पाने में नाकाम हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि बैंकों को इससे कोई बड़ा नुकसान नहीं हो रहा है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि हाल ही में एक्सिस बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ शिखा शर्मा की बेसिक सैलरी में 7.8 फीसदी की बढ़ोत्तरी की है, बावजूद इसके कि वो बैंक का एनपीए कम करने में पूरी तरह से नाकाम रही हैं. इस बढ़ोत्तरी के बाद अब उनकी बेसिक सैलरी 2.91 करोड़ हो गई है.
क्या है एक्सिस बैंक की हालत?
मौजूदा समय में एक्सिस बैंक के करीब 21,000 करोड़ रुपए एनपीए में फंसे हुए हैं. मार्च 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक ने एक्सिस बैंक पर 3 करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया था. यह जुर्माना एक्सिस बैंक द्वारा एनपीए क्लासिफिकेशन के नियमों का उल्लंघन करने के लिए लगाया गया था. अगर बात सिर्फ एनपीए की करें तो 2015 में एक्सिस बैंक का एनपीए 4110 करोड़ रुपए था, जो मार्च 2017 तक बढ़कर 21,280 करोड़ रुपए हो गया.
जब 2009 में शिखा शर्मा ने मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ के तौर पर एक्सिस बैंक का कार्यभार संभाला था, तो एक्सिस बैंक के शेयरों में 90 फीसदी तक का उछाल देखा गया था. लेकिन 2015 के बाद हालात बहुत अधिक खराब हो गए. 31 मई 2018 को उनका तीन साल का तीसरा कार्यकाल समाप्त हो चुका है. बैंक ने उन्हें चौथे कार्यकाल के लिए तीन साल पद पर बने रहने के लिए कहा था, लेकिन शिखा शर्मा के अनुरोध पर इसे 7 महीने कर दिया गया. यानी अब 31 दिसंबर 2018 को शिखा शर्मा अपने पद से रिटायर हो जाएंगी. अब आप ही सोचिए, जिसके कार्यकाल में बैंक का एनपीए पांच गुना तक बढ़ गया, जो अब चंद महीनों के लिए ही बैंक की बागडोर संभाले हुए है, उसकी सैलरी में भी बैंक ने अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी कर दी है. शिखा शर्मा की बेसिक सैलरी में बढ़ोत्तरी दिखाता है कि एनपीए से बैंकों को कोई खास नुकसान नहीं होता है.
सरकारी बैंकों में एनपीए सबसे बड़ी दिक्कत
मार्च 2018 तक के आंकड़ों पर ध्यान दें तो सरकारी बैंकों का कुल 6.41 लाख करोड़ रुपए का कर्ज एनपीए में फंसा हुआ है. इसमें से 4.70 लाख करोड़ यानी करीब 73 फीसदी तो सिर्फ कॉरपोरेट घरानों का है. सबसे अधिक एनपीए तो एसबीआई का 2 लाख करोड़ से भी अधिक का है. दूसरे नंबर पर पीएनबी 55,000 करोड़ रुपए के साथ है, जबकि बैंक ऑफ इंडिया 46,000 करोड़ रुपए के साथ तीसरे स्थान पर है. इसके अलावा आईडीबीआई बैंक 43,000 करोड़ रुपए के एनपीए के साथ चौथे नंबर पर है.
एनपीए से सीधा नुकसान तो बैंक को ही होता है, लेकिन शायद ये नुकसान उनके फायदे के मुकाबले काफी कम है. अगर ऐसा नहीं होता तो लगातार एनपीए बढ़ने के बावजूद भी बैंक उस शख्स की सैलरी कैसे बढ़ा देता, जिसके कार्यकाल में एनपीए बढ़कर पांच गुना तक हो गया. खैर, बढ़ते एनपीए की वजह से ग्राहकों को सबसे अधिक नुकसान होता है, क्योंकि अपने नुकसान की भरपाई करने के लिए बैंक ग्राहकों पर तरह-तरह की बंदिशें लगा देते हैं और किसी भी नियम का उल्लंघन होने पर पेनाल्टी लगा देते हैं. मिनिमम बैलेंस से पैसे कमाना भी इसी का हिस्सा समझिए. अगर बैंक को एनपीए से घाटा ना हो तो वह बेशक ही अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज और अधिक सुविधाएं मुहैया कराएंगे.
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