आखिर मोदी-जेटली की जोड़ी ने अपना काम कर ही दिया!
लोगों को लग रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है पर सच्चाई क्या है ये किसी को पता है? भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली इकोनॉमी का अपना पद फिर से हासिल कर लिया है.
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2016 में नोटबंदी, 2017 में जीएसटी, 2018 में पेट्रोल के दाम. ये है मोदी और जेटली की जोड़ी का सालाना रिपोर्ट कार्ड जिससे पूरे भारत में और खास तौर पर विपक्ष के नेताओं में खासा गुस्सा आ गया था. 8 नंबवर के बाद मोदी के मास्टर स्ट्रोक ने एक तरफ तो काफी तारीफें बटोरीं और दूसरी तरफ भारतीय अर्थव्यव्सथा को डगमगा दिया. ये वो समय था जब भारत ने सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का टाइटल खो दिया था. इसके बाद, 2017 में जीएसटी ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी.
भले ही लाखों वादे किए गए थे कि जीएसटी के बाद महंगाई नहीं बढ़ेगी, लेकिन इसके बाद भी महंगाई बढ़ी. इसमें से एक है पेट्रोल. हालांकि, पेट्रोल जीएसटी के दायरे में नहीं है और कच्चे तेल की कीमतें इसपर बहुत असर डालती हैं, लेकिन फिर भी सरकार ने अपना घाटा पेट्रोल सब्सीडी से भरा और इससे जीएसटी लागू करने में हुए नुकसान की भरपाई हो पाई.
फिर भी अभी तक पेट्रोल और तेल प्रोडक्ट्स की कीमतें काफी बढ़ रही हैं और लोग यही मान रहे हैं कि अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चरमरा गई है पर सच्चाई क्या है ये किसी को पता है? भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाली इकोनॉमी का अपना पद फिर से हासिल कर लिया है.
GDP growth has been increasing continuously every quarter with growth of 7.7% in Q4 of 2017-18. Shows that economy is on right track & set for even higher growth in the future. This is #SahiVikas under leadership of PM Narendra Modi ji & Arun Jaitley ji: Piyush Goyal (file pic) pic.twitter.com/5SrBOTh7ZG
— ANI (@ANI) May 31, 2018
कितनी तेज़ी से आगे बढ़ी अर्थव्यवस्था?
भारतीय अर्थव्यवस्था 7.7 प्रतिशत की तेज़ी से आगे बढ़ी है. जनवरी से मार्च की तिमाही यानी वित्तीय वर्ष का आखिरी क्वार्टर (Q4) देश के लिए बहुत अच्छा रहा. पिछले साल इसी वक्त ये आंकड़ा 6.1 प्रतिशत था. जीडीपी की बात करें तो 2017-18 में ये कम हुई है 6.7% ही रह गई है जब्कि 2016-17 में ये 7.1% थी. इसके लिए गिरता हुआ रुपया एक अहम बात है.
साथ ही, 2017-18 में नोटबंदी और जीएसटी दोनों की मार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को डगमगा दिया है, लेकिन फिर भी नोटबंदी के बाद से ये इस तिमाही में अर्थव्यवस्था ने सबसे तेज़ी से तरक्की की है. आठ इंफ्रास्ट्रचर इंडस्ट्री ने 4.7 प्रतिशत की ग्रोथ हासिल की. इसमें कोयला, गैस और सिमेंट शामिल हैं. इसके अलावा, फर्टिलाइजर, स्टील आदि के सेक्टर में भी 2.6 प्रतिशत की ग्रोथ मिली.
खेती, प्रोडक्शन, और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में सबसे ज्यादा बढ़त देखने को मिली. फिलहाल जो जीडीपी के आंकड़े हैं वो काफी अच्छे हैं और कई तरह की अफवाहों और चिंताओं को खत्म करने के लिए काफी हैं. ऐसा लगता है कि जीएसटी और नोटबंदी के दानव से हम आगे बढ़ रहे हैं और साथ ही साथ विदेशी निवेश और व्यापार, रोजगार के मौके आगे बढ़ रहे हैं.
इस ग्रोथ के बाद सिर्फ व्यापार के सेक्टर में ही नहीं बल्कि अगर हम आरबीआई की पॉलिसी के हिसाब से देखें तो इस वित्तीय वर्ष में हम अच्छे पॉलिसी रेट की उम्मीद कर सकते हैं. कई विशेषज्ञ उम्मीद कर रहे हैं कि भारत में 2018-19 में 7 प्रतिशत की बढ़त की उम्मीद कर रहे हैं. अगर ये सच है तो यकीनन मोदी-जेटली की जोड़ी ने कुछ काम किए हैं.
गाली देने वाले गाली देंगे, भक्ति करने वाले भक्ति करेंगे, लेकिन जहां जरूरी है वहां तारीफ और जहां जरूरी है वहां मोदी की बुराई कर लेनी चाहिए. सरकार ने चाहें जो भी किया हो लेकिन अंतत: न ही किसी घोटाले की बात सामने आई है और न ही किसी भी अन्य देश से रिश्तों में खराबी आई है. नीतियों की बात करें तो कुछ हद तक ये कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने आप में कुछ बेहतर कर रही है.
ग्लोबल रेटिंग एजेंसी मूडी ने इस हफ्ते की शुरुआत में जीडीपी ग्रोथ को लेकर चिंता जरूर जताई क्योंकि तेल की कीमतें काफी बढ़ रही हैं, लेकिन फिर भी यहां ग्रोथ रेट 7.3 का अनुमानित रहा.
जीडीपी में ग्रोथ अच्छे मॉनसून के कारण भी हो सकती है. इससे खेती से जुड़ी इंडस्ट्री में बेहतर तरक्की होगी. हालांकि, अर्थशास्त्रियों की मानें तो तेल अभी भी भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा दुश्मन बन सकता है. 80% आयात के साथ अगर तेल के दाम कम नहीं होते तो जीडीपी की ग्रोथ में कमी आ सकती है. बढ़ते तेल के दाम उसकी मांग पर भी असर डालेंगे और ऐसा माना जाता है कि तेल के दाम 10 डॉलर बढ़ने से ग्रोथ रेट 0.2 से 0.3 प्रतिशत तक कम हो जाता है.
इससे रुपए के कमजोर होने की गुंजाइश भी जताई जा सकती है. रुपया इस साल डॉलर के मुकाबले 6 प्रतिशत गिरा है. बैंक लोन और विदेशी कर्ज भी बढ़ा है और ये सारे फैक्टर भारत की ग्रोथ को पीछे छोड़ सकते हैं. हालांकि, सिर्फ ये कहना कि ये ग्रोथ किस्मत का खेल है गलत होगा और इसके लिए यकीनन सरकार को बधाई दी जा सकती है.
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