क्यों लोन पर देना पड़ता है ज्यादा इंट्रेस्ट, कैसे बैंक तय करते हैं रेट?
आखिर कैसे बैंक किसी एक व्यक्ति को कम इंट्रेस्ट पर लोन दे सकता है और दूसरे को ज्यादा? क्यों किसी इंसान के लिए लोन लेना बहुत महंगा हो जाता है और आसानी से लोन रिजेक्ट हो जाता है, लेकिन किसी दूसरे को लोन बहुत आसानी से मिल जाता है.
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नीरव मोदी और मेहुल चौकसी कांड के बाद लगातार बैंक के लोन और उसके कर्जदारों के बारे में बात चल रही है. सैलरी पाने वाले कर्मचारियों को लगभग हर हफ्ते बैंक की तरफ से फोन आता है और कहा जाता है कि आपको प्रीअपूर्व्ड पर्सनल लोन कम इंट्रेस्ट रेट पर मिल सकता है! ये भले ही सबके साथ न होता हो, लेकिन कम से कम मेरे साथ तो ये होता ही रहता है. हर बार फोन पर यही बोला जाता है कि आपके लिए इंट्रेस्ट रेट कम हो सकता है, पर ऐसा क्यों? आखिर कैसे बैंक किसी एक व्यक्ति को कम इंट्रेस्ट पर लोन दे सकता है और दूसरे को ज्यादा?
कैसे इंट्रेस्ट रेट तय करते हैं बैंक?
बैंक अपना इंट्रेस्ट रेट बीपीएस (BPS) के हिसाब से कम करते हैं. ये तब होता है जब RBI की तरफ से रेपो रेट में कटौती की जाती है. बीपीएस इंट्रेस्ट रेट और बाकी फाइनेंस पर्सेंटेज की गणना करने वाली यूनिट होती है. इसे आम तौर पर इंट्रेस्ट रेट बदलने के वक्त इस्तेमाल किया जाता है. 100 बीपीएस का मतलब एक पर्सेंट और अगर जनरल इंट्रेस्ट रेट 15 बीपीएस कम हुआ है तो उसका मतलब ये कि 0.15 प्रतिशत कम हुआ है.
मार्जिनल कॉस्ट लेंडिंग रेट फॉर्मूला (एमसीएलआर) के तहत इंट्रेस्ट रेट तय किया जाता है. ये मिनिमम इंट्रेस्ट रेट होता है (बैंकों का) इससे कम किसी भी हालत में लोन नहीं दिया जा सकता है. इसे इंटरनल बेंचमार्क या बैंक का रेफ्रेंस रेट कहा जा सकता है.
कैसे ग्राहकों को अलग-अलग रेट पर लोन मिलता है?
भले ही बैंक एक स्पेसिफिक इंट्रेस्ट रेट तय करता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि हर लेनदार को उसी रेट पर लोन मिले. बैंक आपका सिबिल स्कोर देख सकते हैं और उस हिसाब से जो इंट्रेस्ट रेट स्कोर को मैच करता हो वो तय कर सकते हैं. अगर किसी का सिबिल स्कोर 750 या उससे ऊपर है तो उसे तय रेट पर लोन मिलेगा. अगर 850 से ऊपर है तो इंट्रेस्ट रेट में बार्गेन करना आसान होगा और इंट्रेस्ट रेट पर कुछ BPS की कमी मिल सकती है.
अगर आपका क्रेडिट स्कोर 750 से कम है तो आप बैंक की दया पर सीमित हैं और बार्गेन पावर तो बिलकुल बची ही नहीं है. क्रेडिट स्कोर अगर कम होता है तो इसे बैंक आपकी लेनदारी से जोड़ते हैं और ये माना जाता है कि लोन उसी इंट्रेस्ट रेट पर दिया जाना चाहिए जो बैंक ने तय किया है. साथ ही, अगर क्रेडिट स्कोर बहुत बुरा है तो बैंक आपका लोन रिजेक्ट भी कर सकता है.
क्रेडिट रेटिंग सही होने के फायदे...
* देनदारों के लिए...
- बेहतर इन्वेस्टमेंट डिसीजन:
क्रेडिट स्कोर के आधार पर लोन देना आसान हो जाता है. बैंक हो या कोई कंपनी कभी भी रिस्की कस्टमर को लोन नहीं देना चाहती. उन्हें इंट्रेस्ट के जरिए पैसा कमाना है और इसलिए वो सही कस्टमर पर पैसा लगाना चाहते हैं.
- सेफ्टी:
देनदारों को ये भरोसा रहता है कि उनका पैसा कहीं नहीं जाएगा और लेनदार सही समय पर पैसा चुका देगा.
* लेनदारों के लिए...
- आसान लोन:
क्रेडिट रेटिंग बेहतर होने से आसानी से लोन मिल जाएगा और कस्टमर को कोई रिस्क नहीं लगेगा. बैंक आपकी लोन एप्लिकेशन आसानी से अप्रूव कर देगा.
- कम इंट्रेस्ट रेट:
इससे लोन इंट्रेस्ट रेट में बार्गेन करने की सुविधा भी होगी.
इसके पहले कोई लोन ही न लें तो?
ऐसी आम धारणा है कि क्रेडिट स्कोर तब सबसे ज्यादा रहेगा जब आप कोई लोन लेंगे ही नहीं, न ही क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करेंगे, न ही कोई ईएमआई चल रही होगी. ये गलत है. क्रेडिट स्कोर बढ़ाने के लिए मार्केट में पैसे का लेन-देन भी जरूरी है (यहां कैश पेमेंट की बात नहीं हो रही.) जब तक बैंकों को ये पता नहीं होगा कि आप कैसे लोन की भरपाई कर सकते हैं तब तक क्रेडिट स्कोर अच्छा नहीं होगा.
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