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Updated: 05 जनवरी, 2018 03:50 PM
राहुल लाल
राहुल लाल
  @rahul.lal.3110
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पूंजीवादी बाजार अर्थव्यवस्था का मूलतत्व मांग और आपूर्ति है. इसी मांग और आपूर्ति के सिद्वांत के कारण अभी हाल ही में 9 वीं वर्षगांठ (3 जनवरी) मनाने वाले बिटकॉइन ने अब पूरी दुनिया को चौंका दिया है. इस क्रिप्टोकरेंसी या वर्चुअल मुद्रा के पीछे न तो किसी केंद्रीय बैंक का समर्थन है और न ही किसी भौतिक परिसंपत्तियों का. उसके बावजूद इसके मूल्य में 2017 में जिस प्रकार 1400% से ज्यादा वृद्धि हुई, वह इसके अभूतपूर्व आगे बढ़ने की लगातार प्रवृत्ति को तो प्रतिबिंबित करता है. 20 हजार डॉलर के ऐतिहासिक आंकड़ों को छू लेने वाले बिटकॉइन की कहानी सच में काफी रोचक है. दरअसल सभी लोग यह अनुमान या संभावना लगा रहे हैं कि बिटकॉइन के मूल्यों में आगे और वृद्धि होगी तथा वे हजारों डॉलर देकर बिटकॉइन खरीदने को तैयार हैं. ऐसे में आपू्र्ति कम और मांग अधिक होने के कारण इसके मूल्यों में वृद्धि स्वाभाविक ही है. 18-19 दिसंबर को यह 20 हजार डॉलर के ऐतिहासिक आंकड़ों की ओर गया, वहीं 22 दिसंबर को 30% से ज्यादा गिरते हुए 14-15 हजार डॉलर पर पहुंच गया. दिसंबर के मध्य में 13,000 डॉलर पर रहा. 2017 में पूरे दुनिया में गूगल पर बिटकॉइन कैसे खरीदें या बिटकॉइन से संबंधित अन्य जिज्ञासा सबसे ज्यादा सर्च किया गया.

बिटकॉइन, अर्थव्यवस्था, डॉलर, निवेश    लगातार बढ़ती कीमतों के चलते पूरा विश्व बिटकॉइन का दीवाना नजर आ रहा है

अप्रैल 2013 में इसकी कीमत गिरकर अचानक आधी हो गई थी. 2014 में भी जब बिटकॉइन के प्रमुख एक्सचेंज से 400 मिलितन डॉलर के बिटकॉइन चोरी हो गए थे, तब भी इसके मूल्यों में भारी गिरावट दर्ज की गई तथा बिटकॉइन का मूल्य पुन: आधा हो गया था. फिर 2016 में भी चीन के बिटकॉइन पर कुछ सख्ती करने से इसके मूल्यों में 40% की गिरावट दर्ज हुई थी. इस तरह बिटकॉइन अनेक बार गिरा, परंतु पुन: संभल के आगे की यात्रा पर बढ़ता रहा. नवंबर 2017 के अंत में बिटकॉइन 10 हजार डॉलर के आंकड़ें को छूकर विश्व भर में चर्चा का विषय बना, पर उसके कुछ दिनों बात तक की स्थिति यह रही कि बिटकॉइन अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ने में लगा रहा.

8 दिसंबर 2017 को बिटकॉइन 17 हजार डॉलर को पार कर गया. इस तरह बिटकॉइन की यह रोमांचक यात्रा यहीं पर नहीं रुकी. 18 दिसंबर 2017 को तो लगभग यह 20 हजार डॉलर को भी छू गया. दरअसल अप्रत्याशित मांग और सीमित आपूर्ति के बीच इसके मूल्यों में वृद्धि हुई. 22 दिसंबर 2017 को इसमें ऐतिहासिक गिरावट भी दर्ज की गई.  उस दिन यह गिरते हुए 10 हजार डॉलर पर भी पहुंच गया, लेकिन अंततः संभलते हुए 13 हजार डॉलर पर पहुंचा. फिर बिटकॉइन के बारे में पुन: वही प्रश्न शुरु की, आखिर बिटकॉइन कहां तक पहुंचेगा.

दिसंबर 2017, जहां बिटकॉइन के आंकड़ों के दृष्टि से जबरदस्त रहा, वहीं भारत में बिटकॉइन के नाम पर ठगी के भी मामले काफी बड़ी संख्या में दर्ज हुए. लोग भारी मात्रा में बिटकॉइन खरीदने के चक्कर में फर्जी वेबसाइटों के शिकार हुए या फर्जी कंपनियों के. इसके अतिरिक्त बिटकॉइन के नाम पर जल्द पैसा दुगुना करने अथवा हर माह भारी रिटर्न देने के दावें करने वालों की बहार रही. एक तरह से जब मुख्य मीडिया में बिटकॉइन पर भारी चर्चा थी, उसी का लाभ ठग ले रहे थे. इसलिए बिटकॉइन के मामले में लोगों में जागरूकता वृद्धि की सख्त आवश्यकता है. जागरूकता के कमी के कारण ही दिल्ली-एनसीआर में ठगों ने आभासी मुद्रा बिटकॉइन के पीतल के सिक्के भी सैकड़ों की संख्या में 3-10 लाख प्रति सिक्कों की दर से बेच डाले.

बिटकॉइन, अर्थव्यवस्था, डॉलर, निवेश अज लोग ज्यादा से ज्यादा तादाद में बिटकॉइन के बारे में जानना चाह रहे हैं

मैं पुन: बिटकॉइन के बढ़ते मूल्यों की ओर ध्यानाकर्षण कराना चाहूंगा. दरअसल बिटकॉइन पर किसी सरकार अथवा केंद्रीय बैंक का नियंत्रण नहीं होने के कारण यह मांग और आपूर्ति सिद्धांतों को काफी हद तक शीघ्र बिना रुकावट के ही प्रतिबिंबित करता है. बिटकॉइन माइनिंग एक जटिल प्रक्रिया है, इसलिए कम आपूर्ति एवं भारी मांग की स्थिति बनती रहती है. अभी मीडिया में चर्चा के बाद नए लोगों का लगातार जुड़ना जारी है.

3 जनवरी 2009 को बिटकॉइन जब जारी किया गया था, तब दुनिया 2008 के आर्थिक मंदी से जूझ रही थी. उस समय वैश्विक वित्तीय संस्थाओं के विफलता के प्रतिक्रिया में बिटकॉइन जैसी मुद्राओं की नींव रखी गई. एक ऐसी मुद्रा जो न तो किसी केंद्रीय बैंक से नियंत्रित हो और न ही किसी अन्य सरकारों से. इसने लोगों को बिना मध्यस्थ(बिना बैंक) ऑनलाइन ट्रांजिक्शन का विकल्प दिया. बिटकॉइन का प्रादुर्भाव पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के 2008 की विफलता से हुई, वहीं आज बिटकॉइन पुन: पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के वैश्विक वित्तीय संस्थाओं को चुनौती देते हुए ही पूंजीवाद के चरम पर विराजमान हो गया है. यह एक विरोधाभास है, परंतु सत्य है.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रेटनवुड सम्मेलन से अस्तित्व में आई संस्थाएं वल्ड बैंक और आईएमएफ सभी जगह अमेरिका का वर्चस्व कायम हुआ तथा डॉलर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रुप में सामने आई. लेकिन केवल 9 वर्षों की यात्रा में बिटकॉइन अब डॉलर को कई मोर्चों पर चुनौती देता दिख रहा है. 2010 में जब बिटकॉयन से 2 पिज्जा खरीदा गया था, तब 25 डॉलर का मूल्य चुकाने हेतु 10,000 डॉलर बिटकॉइन का भुगतान किया गया था, जबकि आज स्थिति बदल चुकी है. अब एक बिटकॉइन के लिए हजारों डॉलर का भुगतान करना पड़ रहा है. यद्यपि 700 अरब डॉलर के क्रिप्टोकरेंसी के बाजार में बिटकॉइन की हिस्सेदारी अब लगातार घटते हुए 36% तक पहुंच गई है, लेकिन बिटकॉइन का महत्व बना हुआ तथा यह संपूर्ण क्रिप्टोकरेंसी के बाजार को प्रोत्साहित भी कर रहा है. अब रोजाना 30 लाख यूजर ब्लॉकचेन तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं तथा अगले 7 वर्षों में यह संख्या बढ़कर 20 करोड़ पहुंचाने की संभावना है.

बिटकॉइन, अर्थव्यवस्था, डॉलर, निवेश    कहा जा सकता है कि आए दिन हो रही धांधलियों के चलते बिटकॉइन अर्थव्यवस्था के चलते चुनौती बनता जा रहा है

अपने प्रारंभिक दिनों में बिटकॉइन जहांकेवल काले धन, हवाला, फिरौती, ड्रग्स सिंडिकेट इत्यादि से जुड़ा रहा. वहीं अब वेनेजुएला, जिम्बावे इत्यादि देशों में यह लोगों की जबरदस्त मुद्रास्फीति से सुरक्षा कर रहा है. रूस तो अगस्त 2017 के अमेरिकी प्रतिबंधों से बिटकॉइन के द्वारा ही निपट रहा है. रूसी कंपनियां जो प्रतिबंध के पूर्व अपना लेन-देन डॉलर में कर रही थी, अब प्रतिबंध के बाद पूरा लेन देन बिटकॉइन में कर अमेरिकी प्रतिबंधों को निष्प्रभावी बना रहा है. वहीं चीन भी पर्दें के पीछे से बिटकॉइन को अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने के लिए प्रत्साहन दे रहा है. इस तरह रूस और चीन अमेरिकी डॉलर को चुनौती देने के लिए बिटकॉइन को हथियार बना चुके हैं.

अमेरिका के अतिरिक्त चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, रूस, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और वेनेजुएला में भी बिटकॉइन काफी लोकप्रिय हैं. भारत में रिजर्व बैंक अब तक तीन बार बिटकॉइन को लेकर चेतावनी दे चुका है. रिजर्व बैंक की पहली चेतावनी दिसंबर 2013में आई, फिर फरवरी 2017 और दिसंबर 2017 में. वित्त मंत्रालय ने 29 दिसंबर 2017 को नोटिफिकेशन जारी कर बिटकॉइन में निवेश को पोंजी स्कीम की तरह खतरनाक बताया. साथ ही 2 जनवरी 2018 राज्य सभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी पुनः लोगों को चेताया. उन्होंने कहा कि भारत में किसी भी एक्सचेंज को इसके लिए लाइसेंस नहीं दिया गया है तथा बिटकॉइन या अन्य क्रिप्टोकरेंसी में निवेश अपने रिस्क पर करें, सरकार कोई गारंटी नहीं लेगी.

बिटकॉइन, अर्थव्यवस्था, डॉलर, निवेश    आज हमें ये समझना होगा कि बिटकॉइन आने वाले वक़्त की जरूरत है

फिर भी देश के अधिकांश बिटकॉइन एक्सचेंजों पर लोगों की भारी भीड़ है तथा लोगों की प्रतीक्षासूची कुछ सप्ताह से लेकर महीनों तक है. स्पष्ट है कि सरकार के बार- बार चेतावनी के बावजूद बिटकॉइन के प्रति लोगों में जबरदस्त उत्साह है. भारत सरकार बिटकॉइन के निमयन की तैयारी कर रही है, इसके लिए वह एक विशेषज्ञ समिति के सिफारिशों का इंतजार कर रही है.

बिटकॉइन समर्थक वैश्विक विशेषज्ञ तो अब उत्साहित होकर "हाइपरबिटकॉइनाइजेशन" की अवधारणा दे रहे हैं. इस अवधारणा के अंतर्गत बिटकॉइन संपूर्ण वैश्विक वित्तीय संस्थाओं को अपने प्रभाव में ले लेगा. फलतः बिटकॉइन इतना कीमती और महत्वपूर्ण हो जाएगा कि दुनिया की अन्य करेंसी इस पर ही निर्भर हो जाएगी. सामान्य शब्दों में कहें तो यह डॉलर का स्थान ले लेगा. यद्यपि अभी उपरोक्त अवधारणा यथार्थ से काफी दूर है, लेकिन बिटकॉइन के कई प्रभाव तो अब सामने आने लगे हैं.

दुनियाभर में बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी की सफलता से उत्साहित होकर कई देश अपनी क्रिप्टोकरेंसी ला रहे हैं. रूस ने "क्रिप्टो रूबल" लाने की घोषणा की है, तो वेनेजुएला ने "पेट्रो डॉलर" की. भारत में भी रिजर्व बैंक "लक्ष्मी" नामक अपनी क्रिप्टोकरेंसी पर विचार कर रही है. इजरायल भी अपने क्रिप्टोकरेंसी को लाने की तैयारी कर रहा है. क्या विभिन्न देशों के समर्थित क्रिप्टोकरेंसी वैश्विक अर्थव्यवस्था में नई हलचल पैदा कर पाएंगे? यह अभी भविष्य के गर्भ में छुपा है, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि बिटकॉइन ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की सीढियों से ही इस ऊंचाई पर पहुंच कर पुनः पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के निमय-कानूनों को भरपूर चुनौती दे रहा है.

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लेखक

राहुल लाल राहुल लाल @rahul.lal.3110

लेखक अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं

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