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Updated: 04 सितम्बर, 2017 01:56 PM
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महंगाई को लेकर चिंता करने वाले लोगों को थोड़ी और चिंता कर लेनी चाहिए क्योंकि अब आपकी जिंदगी में एक और सेस आने वाला है. जी हां, सरकार की एक नई पेशकश है और सरकार का वही पुराना राग भी है. इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. ये सेस है रीजनल कनेक्टिविटी सेस (regional connectivity cess). इस सेस को भी उन लोगों से वसूला जाएगा जो ये दे सकते हैं यानि मिडिल क्लास और हाई क्लास से. होगा ये कि इस सेस के कारण अब डोमेस्टिक फ्लाइट टिकट महंगी हो जाएगी.

इसके पीछे क्या है कारण...

इसके पीछे सरकार ये कारण दे रही है कि रीजनल फ्लाइट्स के ट्रैफिक को थोड़ा बेहतर बनाया जा सके और वो डोमेस्टिक फ्लाइट्स जिनकी कीमत बहुत ज्यादा है उन्हें 2500 प्रति घंटे प्रति व्यक्ति की दर पर लाया जा सके.

सेस, एविएशन, भारत, नरेंद्र मोदी

होगा ये कि इसके कारण हर डोमेस्टिक फ्लाइट में 5000 रुपए एक्सट्रा सेस के जरिए इकट्ठा किए जाएंगे. इससे रीजनल कनेक्टिविटी फंड बनाया जाएगा. ये पैसा यात्रियों से वसूला जाएगा. इस पैसे से अन्य फ्लाइट की सुविधाएं बेहतर बनाई जा सकेंगी और कोशिश की जाएगी कि जो फ्लाइट्स ज्यादा महंगी हैं उन्हें थोड़ा सस्ता किया जा सके. मतलब इधर हो या उधर जेब तो हमारी ही कटनी है.

इसके अलावा, तेल कंपनियों ने एविएशन टर्बाइन फ्यूल (ATF) की कीमतों को भी बढ़ा दिया है. अब ये 50,020 प्रति किलोलीटर होगा जो पहले 48,110 किलोलीटर था. अब मतलब त्योहारों के सीजन से पहले हवाई यात्रा तो और महंगी हो ही जाएगी.

एविएशन मिनिस्ट्री तो हर टिकट पर 2% सरचार्ज लगाने की मांग कर रही थी, लेकिन जेटली जी ने इसे कम कर दिया. बढ़िया है.

सरकार का काम होता है कि वो सेस लगाए, उसके बारे में लोगों को बताए, लोगों के द्वारा दिए गए पैसे को किसी पायलेट प्रोजेक्ट में लगाए और उसका फायदा दोबारा लोगों तक ही पहुंचाए. भारत में सेस लगाने की प्रथा पुरानी है, लेकिन इन सेस से फायदा क्या होता है? चलिए गौर करते हैं भारत में लगाए जाने वाले कुछ सेस पर...

1. कृषि कल्याण सेस...

कृषि कल्याण सेस जो जून 2016 से लागू किया गया था और 0.5% कृषि कल्याण सेस को सूखा ग्रसित इलाकों के किसानों के लिए खर्च करने की बात कही गई थी. आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में ये 9000 करोड़ लिया गया. केंद्र सरकार ने इस पैसे को क्रॉप इंश्योरेंस, सब्सिडी आदि पर खर्च करने की बात कही.

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2016-17 के आंकड़ों के मुताबिक इस सेस की मदद से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का 27% हिस्सा (3596 करोड़ रुपए) दिया गया. इस योजना में 13,240 करोड़ रुपए खर्च होने थे. इसके अलावा, कृषि मंत्रालय के खर्च का 19% हिस्सा इसी सेस से दिया गया था. कृषि मंत्रालय का खर्च 48,072 करोड़ था. तो कुल मिलाकर सेस से इकट्ठा हुए पैसे ने इंश्योरेंस और सब्सिडी स्कीम की तो हालत ठीक कर दी और उसके साथ ही सरकार को थोड़ा सा फंड भी दे दिया कि वो बाकी जगह खर्च कर सके, इस साल लगभग 10,800 करोड़ रुपए सेस इकट्ठा हो सकता है, लेकिन फिर किसानों को इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ रही है?

किसानों को फायदा नहीं बल्कि नुकसान हुआ, फायदा तो इंश्योरेंस कंपनियों ने उठाया...

28 मार्च 2017 को कृषि मंत्री पुरुशोत्तम रुपाला ने लोकसभा में बयान दिया था कि 9000 करोड़ रुपए इंश्योरेंस कंपनियों को प्रीमियम मिला बीमा योजना के तहत इसमें से सिर्फ 1643 करोड़ ही किसानों ने दिया और बाकी सभी राज्य और केंद्र सरकारों ने कंपनियों को दिया जो सेस के पैसे से दिया गया था.

अब बात ये है कि इंश्योरेंस कंपनियों ने सिर्फ 2725 करोड़ रुपए के क्लेम में भुगतान किया और बाकी प्रॉफिट उनको रहा 6357 करोड़ रुपए का. ये भी सिर्फ एक सीजन की बात हो रही है. मार्च तक इस साल सिर्फ 639 करोड़ ही कंपनियों ने चुकाए.

अब सवाल सबसे बड़ा ये है कि हर साल कंपनियों को हजारों करोड़ मुनाफे के तौर पर देने की जगह सरकार सीधे किसानों को ही भुगतान क्यों नहीं कर देती है? ऐसा कितनी बार हुआ है कि सब्सिडी मिलने में देरी हुई हो. ये सभी सवाल सोचने पर मजबूर करते हैं कि सेस तो दे दिया, लेकिन इसका फायदा मिला भी या नहीं?

2. स्वच्छ भारत सेस...

स्वच्छ भारत सेस जो 2015-16 में लगभग 4 हजार करोड़ रुपए इकट्ठा हुआ था. 2016-17 में लगभग 8 हजार करोड़ रुपए हुआ. अब स्टेटमेंट के हिसाब से तो ये फंड घरों में टॉयलेट बनाने, सेनिट्री कॉम्प्लेक्स बनाने, कचरे को ठीक से डिस्पोज करने और लोगों को स्वच्छता को लेकर अवगत कराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. हां अब विद्या बालन और अमिताभ बच्चन जी शौचालय इस्तेमाल करने को कहते रहते हैं, लेकिन इस सेस का असर कितना हुआ है ये बात चर्चा करने लायक है.

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60% टॉयलेट बिना पानी वाले! 36% इस्तेमाल के लायक ही नहीं...

अब जरा आंकड़ों की बात कर लेते हैं. 2014 में 40 मिलियन टॉयलेट घरों में बनवाए गए. 1 मई से 21 2017 तक 4,89,710 टॉयलेट बनवाए गए. ये डेटा स्वच्छ भारत मिशन- ग्रामीण का है. इसका मतलब 25000 टॉयलेट हर दिन. इस बीच 1,93,081 गावों को पूरी तरह से खुले में शौच करने से मुक्त बताया गया, लेकिन इनमें से 53.9% का वेरिफिकेशन भी नहीं हुआ. स्वच्छ भारत मिशन का 85% हिस्सा स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के हिस्से जाता है. इसके बाद भी 2016 तक सिर्फ 36.7% ग्रामीण घरों में टॉयलेट था.

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इस मिशन के तहत जितना भी फंड ग्रामीण इलाकों को मिलता है उसमें 98% से टॉयलेट बनाए गए, लेकिन असलियत थी डुप्लिकेट एंट्री, खाली घरों, बेनामी घरों के मालिकों के लिए टॉयलेट बनाए गए. एक सर्वे के अनुसार सरकारी रिकॉर्ड्स की जगह सिर्फ एक तिहाई को ही वेरिफाई किया जा सका.

जितने भी जगह टॉयलेट बनाए गए उसमें से सिर्फ 36% ही इस्तेमाल करने लायक थे. 40% लोग जिन्होंने टॉयलेट बनवाने के लिए पैसे मांग की उन्हें पैसा नहीं मिला. गुजरात, असम, केरल के साथ 6 राज्यों और यूनियन टेरेटरी को अभी तक सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए पैसा नहीं मिला. 60% टॉयलेट जो बनाए गए उनमें पानी की कोई सुविधा नहीं है. फिर आखिर ये सेस किस काम का?

3. एजुकेशन सेस...

इस सेस के बारे में शायद आपको याद भी न हो, ये सेस इनकम टैक्स पेमेंट के दौरान दिया जाता है. एजुकेशन सेस और सेकंड्री एंड हायर एजुकेशन सेस. ये सेस इसलिए लगाया जाता है ताकि हमारे देश में शिक्षा व्यवस्था सुधारी जा सके. इसका रेट होता है आपके कुल इनकम टैक्स का 2% और सेकंड्री एंड हायर एजुकेशन सेस (SHEC) का 1%. इससे गरीबों को बेहतर शिक्षा देने के लिए है.  प्राइमरी एजुकेशन सेस 2004-05 में लागू किया गया था और SHEC 2007-08 में. इसे मिड डे मील, सर्व शिक्षा अभियान जैसी स्कीम में खर्च किया जाता है.

2012-13 में ये 30,642 करोड़ रुपए इकट्ठा किया गया था, 2013-14 में 33,902 करोड़, 2014-15 में 35,986 करोड़. इसे 1 जून 2015 से बंद कर दिया गया.

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इसके अलावा, भी कई सेस हैं जैसे लग्जरी कार पर सेस, बीड़ी-तंबाकू पर सेस और भी बहुत कुछ.

कुल सेस जो सरकार ने लिया 2016-17 में...

2016-17 में सरकार ने स्वच्छ भारत सेस, कृषि कल्याण सेस और बाकी दुनिया भर से सेस और सरचार्ज से कुल 2 लाख 35 हजार 308 करोड़ रुपए वसूले थे. इसमें से डायरेक्ट टैक्स से ही 46,939.17 करोड़ रुपए वसूले गए थे.

सरकार ने कई स्कीमों में कई सारे सेस का पैसा लगाने की बात कही. हर सेस लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाने और सुविधाएं देने के लिए लगाया गया है, लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि एक बार पैसा किसी भी मजबूत फंड में चला गया तो उसका रंग ही उड़ जाता है. वो सरकार द्वारा कई रेवेन्यु और खर्च की भरपाई करने में ही खर्च होता रहता है. ऐसा नहीं है कि उस पैसे का बिलकुल भी इस्तेमाल उस काम के लिए नहीं किया जाता जिसे कहा गया था, लेकिन इससे कितने लोगों को फायदा पहुंचा इसका आंकड़ा भी थोड़ा धूमिल ही नजर आता है.

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