नोटबंदी का असर फायदे और नुकसान के बीच में कहीं है
जहां केंद्र सरकार इस फैसले को पूरी तरह सफल बता रही है तो वहीं विपक्ष इसे पूरी तरह विफल और बेमतलब बता रहा है, लेकिन असलियत तो शायद कुछ और ही है...
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“बहनों भाइयों, देश को भ्रष्टाचार और काले धन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त कदम उठाना ज़रूरी हो गया है. आज मध्य रात्रि यानि 8 नवम्बर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपये और 1,000 रुपये के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानी ये मुद्राएँ कानूनन अमान्य होंगी. 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों के जरिये लेन देन की व्यवस्था आज मध्य रात्रि से उपलब्ध नहीं होगी.“ 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह उद्बोधन शायद आज भी हर भारतीय के जेहन में ताज़ा होगा. ताज़ा इसलिए भी क्योंकि सरकार का नोटबंदी का यह फैसला हर भारतीय को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला था.
अब इस फैसले को एक साल पूरा हो गया है. जहां केंद्र सरकार इस फैसले को पूरी तरह सफल बता रही है तो वहीं विपक्ष इसे पूरी तरह विफल और बेमतलब बता रहा है. हालाँकि, इन सबके बीच देश की आम जनता साल बीत जाने के बाद भी यह समझ पाने में नाकाम है कि नोटबंदी पर सरकार या विपक्ष किसके आकंड़ों पर भरोसा करें. वैसे जितने आकंड़े हैं हर आकंड़ा demonetisation के परिणामों कि एक अलग ही तस्वीर पेश करता नजर आता है. ऐसे में यह समझना और भी कठिन है कि आखिर पक्ष विपक्ष में किसके दावा ज्यादा तथ्यों के नजदीक है.
हालाँकि यहां यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि भले ही नोटबंदी पर पक्ष विपक्ष के अपने तर्क और तथ्य हो सकते हैं मगर नोटबंदी का प्रभाव क्या रहा यह पहले साल में पूरी तरह जान पाना संभव नहीं लगता. हां, नोटबंदी के समय लोगों के मन में कई सवाल थे, मगर साल भर बीत जाने के बाद जाने इन में से कई सवाल यथावत बने हुए हैं.
क्या black money पर रोक लगाने में सफल रही नोटबंदी?
अगर सरकार की माने तो हाँ. सरकारी आकड़ों के अनुसार अभी तक 2.24 लाख कंपनियों का नाम आधिकारिक रिकॉर्ड से हटाया गया है. ये कंपनियां दो या अधिक साल से निष्क्रिय थीं. बयान में कहा गया है कि बैंकों से मिली शुरुआती सूचना के अनुसार 35,000 कंपनियों से जुड़े 58,000 बैंक खातों में नोटबंदी के बाद 17,000 करोड़ रुपये जमा कराए गए थे, जिसे बाद में निकाल लिया गया. इसमें कहा गया है कि एक कंपनी जिसके खाते में 8 नवंबर, 2016 को कोई रकम जमा नहीं थी, उसने नोटबंदी के बाद 2,484 करोड़ रुपये जमा कराए और निकाले.
हालाँकि, तस्वीर का दूसरा पहलु यह भी है कि भले ही सरकार कंपनियों पर करवाई की बात कहती हो मगर काले धन को लेकर कोई बड़ी गिरफ़्तारी देखने को नहीं मिली है.
नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के मायने...
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वार्षिक रिपोर्ट में नोटबंदी के बाद मार्च 2017 तक की स्थिति की जानकारी देते हुए बताया कि नोटबंदी के दौरान बैन किए गए 1000 रुपये के पुराने नोटों में से करीब 99 फीसदी बैंकिंग सिस्टम में वापस लौट आए हैं. 1000 रुपये के 8.9 करोड़ नोट (1.3 फीसदी) नहीं लौटे हैं.
हालाँकि, पहले यह उम्मीद की जा रही थी कि बैन किये जा रहे नोटों का एक बड़ा हिस्सा बैंको में वापस नहीं आएगा, जो काला धन होगा. हालाँकि, RBI के आकड़ों के बाद सरकार ने कहा कि ऐसा नहीं माना जा सकता कि जो नोट्स बैंकों में जमा कर दिए गए वो सारे ही पैसे काला धन नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता. यानी जो पैसे बैंकों में आ गए उनमें से भी कुछ हिस्सा काला धन हो सकता है. अब सरकार के इन दावों में कितना दम है यह जांच के बाद ही पता चल पायेगा.
रोज़गार पर नोटबंदी का असर...
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनाॅमी (CMIE) के आकड़ों के अनुसार नोटबंदी के बाद 2017 के शुरूआती 4 महीनों में तकरीबन 15 लाख नौकरियां गयी हैं. रोजगार के मामलों में असंगठित क्षेत्र पर नोटबंदी का काफी असर पड़ा था जब नोटबंदी के बाद कुछ महीनों में असंगठित क्षेत्र में लाखों लोगों की नौकरियां जाती रही थी. हालाँकि, समय बीतने के साथ नगदी का लेन देन अब सामान्य हो गया है, ऐसे में नौकरियों पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ना लाजिमी ही है. जाने वाली नौकरियों में से कितनी फिर से वापस आयीं इसको लेकर कोई भी आकड़ें अब तक किसी भी संस्था ने जारी नहीं किये हैं.
GDP पर नोटबंदी का असर
नोटबंदी का सबसे ज्यादा प्रभाव देश के जीडीपी पर देखने को मिला. देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की पहली अप्रैल-जून की तिमाही में घटकर 5.7 प्रतिशत पर आ गई है. यह इसका तीन साल का सबसे निचला स्तर है. हालाँकि नोटबंदी लागु होने के समय ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जीडीपी गिरने की भविष्यवाणी की थी. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी का सबसे तगड़ा झटका देश की सकल घरेलू उत्पाद को ही झेलना पड़ा है.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी के एक साल बाद कुछ अच्छे तो कुछ बुरे बदलाव देखने को मिले हैं. जहाँ एक तरफ नोटबंदी के कारण देश की जीडीपी निचे चली गयी है तो वहीं नोटबंदी के बाद लोगों के लेन देन में ज्यादा पारदर्शिता आयी है. लोग डिजिटल लेन देन प्रक्रिया को भी तरजीह देते नज़र आ रहे हैं तो साथ ही इस दौरान इनकम टैक्स के दायरे में आने वाले लोगों में भी अच्छा खासा उछाल देखने को मिला है. ये सारे प्रभाव त्वरित कहे जा सकते हैं और अर्थव्यवस्था पर लम्बी अवधि में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह आने वाले कुछ सालों में ही पता चल सकता है.
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