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Updated: 08 अक्टूबर, 2017 03:17 PM
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लीजिए एक बार फिर आ गई है फेस्टिव सीजन सेल. हर बार कुछ न कुछ नया. होली, समर सीजन सेल, मॉनसून धमाका, गणेश चतुर्थी सेल, नवरात्री ऑफर, दीवाली बोनांजा, क्रिसमस और न्यू इयर... साथ ही फरवरी में एंड ऑफ सीजन सेल. हर महीने एक नई सेल और लोगों के लिए फ्री वाले ऑफर... या तो कंपनियां दान वीर करण के नक्शेकदम पर चल रही हैं या फिर सेल फर्जी है. तो कैसे पता करें कि कहीं सेल फर्जी तो नहीं...

1. लिमिटेड स्टॉक..

देखिए, सौ बात की एक बात सेल में भले ही आपके पसंद की ड्रेस का साइज खत्म हो गया हो पर वो कुछ दिन में आ जाएगा. ये आजमाया हुआ तरीका है. जेबॉन्ग पर वही ड्रेस कम कीमत में मिल जाएगी जो सेल में मिंत्रा पर महंगी मिल रही है. इसी तरह स्टॉक बाय लव और लाइमरोड जैसे साइट्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. देखिए ये सोचना कि बस अब ये स्टॉक लास्ट है, अब ये सेल अंतिम है ऐसा नहीं है. एक सेल खत्म हुई तो दूसरी शुरू हो जाएगी.

ऑनलाइन शॉपिंग, फेस्टिव सीजन, डील्स, डिस्काउंट

2. फालतू ऑफर...

एडवर्टिज्मेंट में दिखेगा कि 80% ऑफ है और असल होगा जरूरत वाली चीज पर 5%. कीमत बहुत ज्यादा बताकर उसे डिस्काउंट में दिखा दिया जाएगा. ये फ्लिपकार्ट, अमेजन, मिंत्रा, नाइका, जेबॉन्ग किसी भी साइट के साथ हो सकता है. 5 टीशर्ट खरीदने पर 1 फ्री भी सबसे घटिया क्वालिटी वाली मिलती है जिसे शायद आप पैसे देकर न खरीदते. इसलिए फालतू ऑफर के झांसे में न आएं और सिर्फ वही खरीदिए जो आपके लिए जरूरी हो. इतने में सिर्फ पेटीएम की कैशबैक सेल ही ऐसी थी जिसमें वाकई कुछ डील्स काफी अच्छी थीं.

3. कहीं कुछ छूटा तो नहीं...

अगर कोई इसलिए सेल से खरीद रहा है क्योंकि उसे ये लगता है कि कोई डील छूट जाएगी तो वो गलती कर रहा है. ऐसा कुछ भी नहीं होता है. अगर दिवाली के समय कोई ऑफर आया है तो जरूरी नहीं कि उसे इस्तेमाल ही किया जाए. न्यू इयर पर भी वैसा ही ऑफर आसानी से मिल सकता है.

4. सेविंग्स का क्या?

ये तो वही बात हो गई कि सारी पूंजी खर्च करके आप बोल रहे हैं कि पैसा सही जगह इन्वेस्ट किया है. अखबार, रेडियो, टीवी और मोबाइल एप नोटिफिकेशन में अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि जो एडवर्टिजमेंट में दिया गया है उससे कही ज्यादा कीमत खरीदते समय उस प्रोडक्ट की हो जाती है. एयरकंडीशन पर 10000 रुपए की छूट का विज्ञापन देखकर अगर कोई खरीदने की कोशिश करता है तो या तो वो छूट सिर्फ कुछ ही प्रोडक्ट्स पर रहती है या फिर डील में कोई न कोई पेंच अड़ा दिया जाता है. कार, टीवी, एसी और ऐसे ही बड़े प्रोडक्ट्स के साथ ये पैंतरा अपनाया जाता है.

ऑनलाइन शॉपिंग, फेस्टिव सीजन, डील्स, डिस्काउंट

5. डिस्काउंट का मायाजाल...

ये रिटेल और ऑनलाइन सभी स्टोर पर देखा जाता है. डिस्काउंट बहुत भारी दिखता है. Upto 50% Off* जैसी जो भी लाइन लिखी होती है उसमें * साइन का मतलब ही ये होता है कि आपको पूरी जानकारी नहीं दी गई है. या तो ये कुछ ही प्रोडक्ट्स पर डिस्काउंट होता है या फिर इस डिस्काउंट के पीछे का गणित कुछ ऐसा होता है कि जब तक आप 10000 रुपए की शॉपिंग नहीं करेंगे आपको डिस्काउंट नहीं मिलेगा. फिर क्या डील का फायदा तो नहीं मिला न.

ये सभी तरीके होते हैं किसी भी शॉपर को आकर्षित करने के लिए लेकिन असल बात तो ये है कि इनमें से किसी भी डील में फालतू में फंसने की जगह उन्हीं चीजों को खरीदें जिनकी जरूरत हो. स्ट्रेस कम करने के लिए शॉपिंग करना भी खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि स्ट्रेस के कारण शॉपिंग कई बार ज्यादा पैसे खर्च करवा देती है. अगर ऑनलाइन शॉपिंग कर रहे हैं तो Buyhatke या Compareprice जैसी साइट्स और क्रोम एक्सटेंशन का इस्तेमाल करें जिससे आपके पैसे बच सकते हैं. कारण ये है कि एक ही प्रोडक्ट की अलग अलग साइट्स पर अलग कीमत होती है.

ऐसा नहीं है कि सेल में कोई भी अच्छी डील मिलती ही नहीं है, लेकिन हर डील अच्छी हो ऐसा भी नहीं है. सीधा सा लॉजिक है जो खरीदना है वो सभी साइट्स पर चेक करके लें और कूपन कोड्स का ध्यान रखें. तभी आप एक अच्छी डील ले पाएंगे.

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