कॉफी से अच्छी तो चाय निकली, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग दोनों से एडजस्ट कर लिया!
जलवायु परिवर्तन के कारण एक ही समय में कई देशों में कॉफी का वैश्विक उत्पादन खतरे में है. इसके पीछे की वजह जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग को बताया जा रहा है. कहा ये भी जा रहा है कि आने वाले वक़्त में कॉफी आम आदमी की पहुंच से दूर और काफी महंगी हो सकती है.
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कुछ चीजें हमसे तकनीक कराती है. कुछ हमारे शौक. कॉफ़ी का मामला भी कुछ-कुछ ऐसा ही है. भले ही आप एलीट की संज्ञा दे दें लेकिन कई लोग हैं जिनका दिन ही तभी शुरू होता है जब उनके गले के नीचे कॉफी का गर्म घूंट उतरता है. ऐसे लोग अब बहुत ज्यादा दिन तक खुश नहीं रहेंगे. इनके सुख को किसी की बुरी नजर लग गयी है. कॉफी का वो प्याला जिसपर ये कभी पूरी शान से इतराते थे अब इनकी पहुंच से दूर होने वाला है. इनको अब अपना जीवन बदल लेना चाहिए. क्यों? क्योंकि आने वाले वक़्त में कॉफी बहुत महंगी होने वाली है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दुनिया भर में कॉफी का उत्पादन बेहद कम हो रहा है. और इसके पीछे की वजह भी कम हैरान करने वाली नहीं है. बताया जा रहा है कि अगर धीरे धीरे करके गर्म कॉफी का कप हमारी पहुंच से दूर हो गया है तो इसका अहम कारण जलवायु परिवर्तन है.
प्रोडक्शन न होने के चलते कॉफी का महंगा होना कॉफी लवर्स को आहत कर सकता है
दरअसल कॉफी को लेकर शोधकर्ताओं ने एक बड़ा खुलासा किया है. कहा गया है कि एक ही समय में कई देशों में फसल की विफलता के कारण कॉफी का वैश्विक उत्पादन जोखिम में है और 50 प्रतिशत तक कम हो सकता है. सारा दोष ख़राब मौसम के सिर मढ़ दिया गया है और कह दिया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण कॉफी उत्पादक क्षेत्र कीजलवायु में यदि परिवर्तन न हुए तो आने वाले वक़्त में कॉफी के शौक़ीन मुश्किल में आ जाएंगे.
पीएलओएस क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित एक पेपर में शोधकर्ताओं ने कहा है कि , "विफलताओं को स्थानिक रूप से मिश्रित जलवायु विसंगतियों द्वारा मजबूर किया जा सकता है, जो बड़े पैमाने पर जलवायु में बड़ा परिवर्तन कर रही हैं.
शोधकर्ताओं ने 12 जलवायु खतरों का आकलन किया और वैश्विक स्तर पर शीर्ष 12 कॉफी उत्पादक क्षेत्रों के लिए ये खतरे किस हद तक घातक हुए इसका भी आंकलन किया. शोधकर्ताओं ने पाया कि ये खतरे 1980 और 2020 के बीच काफी बढ़ गए हैं और खतरों की प्रकृति अत्यधिक ठंडी परिस्थितियों से अत्यधिक गर्म में बदल गई है. अध्ययन में पाया गया है कि एक स्पष्ट जलवायु परिवर्तन इसलिए भी पाया गया है क्योंकि खतरे का प्रकार अत्यधिक ठंडी स्थितियों से अत्यधिक गर्म में स्थानांतरित हो गया है.
गौरतलब है कि कॉफी की दो प्रमुख किस्मों अरेबिका और रोबस्टा के बढ़ने का इष्टतम तापमान 18 से 22 डिग्री सेल्सियस और 22 से 28 डिग्री सेल्सियस है.विशेष रूप से कॉफ़ी अरेबिका, एक संवेदनशील फसल मानी जाती है, जो जलवायु परिवर्तनशीलता और परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है.शोधकर्ताओं का मानना है कि ठंडे और गीले से गर्म और शुष्क परिस्थितियों में परिवर्तन, बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने के कारण हैं.
सोचने वाली बात ये है कि यदि कॉफ़ी का उत्पादन पूर्ण रूप से जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ जाता है. या फिर अगर कॉफी महंगी होती है तो इसका असर इस उद्योग से जुड़े किसानों और एक भरी पूरी अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा. जिससे एक बड़ा नुकसान ग्लोबल इकॉनमी को आने वाले वक़्त में दिख सकता है. ध्यान रहे यहां बात सिर्फ कॉफी की नहीं है चॉकलेट और कई दूसरी चीजें हैं जिनकी कीमतों को कॉफी प्रभावित करेगी.
बहरहाल अब जबकि शोध हमारे सामने आ गया है. तो वो लोग खुश हैं जो कॉफ़ी की अपेक्षा चाय पंसद करते थे. ऐसे लोग खतरे के निशान से नीचे हैं. कॉफी के विपरीत जिस तरह चाय ने अपने को जलवायु के साथ एडजस्ट किया है वो इस बात की पुष्टि स्वतः ही कर देता है कि चाहे कुछ हो जाए चाय की कीमतों में ज्यादा फेरबदल नहीं देखने को मिलेगा. सुकून के साथ लोग चाय पहले भी पी रहे थे आगे भी पीते रहेंगे.
खैर बात कॉफी से शुरू हुई है और जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी चीजों का जिक्र हुआ है तो हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि आज चाहे मनुष्य हो या फिर कॉफी दुनिया में जो कुछ भी गलत हो रहा है उसकी वजह इंसान है. बेहतर है कि समय रहते इंसान अपनी गलतियों को सुधर ले. कॉफी लगभग जा ही चुकी है डर ये है कि इंसान की गलतियों कहीं सदा के लिए चाय की पत्तियों का रंग न छीन लें.
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