हम भारत की आर्थिक विकास दर को हाई तब मानेंगे, जब हमें नौकरी मिलेगी!
नीति आयोग के अनुसार, इस वर्ष भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 प्रतिशत रहेगी. मगर भारत की इतनी आर्थिक विकास दर होने के बावजूद देश के लोगों के बीच 'रोजगार का संकट' जस का तस बना रहेगा.
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मुझे किस्से और कहानियां, दोनों बहुत पसंद हैं और मैं इन्हें बेहद चाव से सुनता और पढ़ता आया हूं. किस्से और कहानियां तनाव से राहत और मन को सुकून देती हैं. नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक मैंने कई किस्से और कहानियां सुनी हैं. इन कहानियों को सुनकर कुछ हद तक दुःख भी हुआ तो एक समय ऐसा भी आया जब मुझे खुशी हुई. बात आज सुबह की है, मैं इंटरनेट पर कुछ पढ़ रहा था कि अचानक एक खबर से मेरी आंखें टकराई. खबर थोड़ी इंटरेस्टिंग थी तो उसे खोल लिया और उस खबर को देखते ही मेरी आंखें पथरा सी गयीं.
खबर के जरिये मुझे पता चला कि, नीति आयोग के अनुसार, इस वर्ष भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 प्रतिशत रहेगी. कागजों पर बताई गयी ये एक बहुत अच्छी बात है. मुझे लगता है कि इसकी तारीफ भी कागजों में, बिल्कुल साफ हैंड राइटिंग के जरिये होनी चाहिए. मगर इसके बाद नीति आयोग ने जो बताया वो हैरत में डालने वाला है. नीति आयोग के अनुसार, भारत की इतनी आर्थिक विकास दर होने के बावजूद देश के लोगों के बीच 'रोजगार का संकट' जस का तस बना रहेगा.
जी हां बिल्कुल सही सुना आपने, हमारे पास रोजगार नहीं है. कहा जा सकता है कि, वर्तमान समय में विकास फाइलों में जड़े कागजों में तो हो रहा है मगर हकीकत में वो एक फसाना है, और जिस फ़साने के चलते हमारे युवा बेरोजगार रहेंगे. कई सारी रिसर्च में ये बात निकल कर सामने आई है कि आज हिंदुस्तान में, छोटे लेवल पर लोगों के लिए रोजगार की कमी है.
नीति आयोग के अनुसार इस वर्ष भारत की आर्थिक विकास दर 7.5 प्रतिशत होगी
अलग-अलग संस्थानों द्वारा हुई रिसर्च पर यकीन किया जाए तो मिलता है कि बड़े लेवल पर फिर भी ठीक ठाक नौकरियां हैं, मगर वहां तक पहुंचने में हमारे युवा नाकाम हैं. नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि, हमारे देश के युवा पढ़े लिखे नहीं हैं या वो पढाई किताबों से दूरी बनाए हुए हैं बस बात इतनी है कि वो उतने स्किल्ड और 'टेक सेवी' नहीं हैं जितना कि कम्पनियां उन्हें चाहती हैं.
बात अगर केवल आईटी इंडस्ट्री की हो तो, हाल फ़िलहाल भारतीय इंजीनियरों के भविष्य पर जबरदस्त संकट के बादल गहरा चुके हैं. इस साल तकरीबन 56,000 सॉफ्टवेर इंजीनियरों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है. नासकॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आने वाले दिनों में स्थिति बद से बदतर होने जा रही है, जहां आने वाले तीन सालों में प्रति वर्ष 2 लाख सॉफ्टवेर इंजीनियरों को नौकरी से निकाला जाएगा.
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि नयी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर पाने में असमर्थ हैं. न सिर्फ आईटी इंडस्ट्री बल्कि फार्मा, हेल्थ, हॉस्पिटैलिटी, मीडिया, बैंकिंग समेत लगभग सभी क्षेत्रों में यही हाल है. भारतीय युवाओं पर छाए नौकरी के इस संकट के कारणों पर नजर डालें तो मिलता है कि न सिर्फ नई टेक्नोलॉजी को अडॉप्ट करने में हम भारतियों को दिक्कत होती है बल्कि जिस तरह और जिन तकनीकों का इस्तेमाल करके हमारी साक्षरता दर को बढाया जा रहा है वो भी एक अहम वजह है. इस सन्दर्भ में अगर हम विदेश की शिक्षा नीतियों से अपनी तुलना करें तो सामने आता है कि आज भी हमें थ्योरी पर ज्यादा बल देने को कहा जाता है. जबकि विदेशों में शिक्षा का पूरा दारोमदार प्रैक्टिकल पर दिया जाता है. कह सकते हैं कि दुनिया से पिछड़ने की हमारी एक प्रमुख वजह परंपरागत क्लास रूम ट्रेनिंग है.
बहरहाल, सरकार का ये दावा कि भारत की आर्थिक विकास दर तो बढ़ रही है मगर युवाओं के लिए रोज़गार नहीं है किसी को भी हैरत में डाल सकता है. ऐसा इसलिए कि आखिर जब इस देश के लोगों को उनका मूलभूत हक यानी नौकरी न मिल पा रही है तो फिर ये दावे हो कैसे रहे हैं. क्या सरकार अम्बानी, अडाणी, टाटा, बिड़ला और मित्तल की ग्रोथ को देश के विकास और अर्थव्यवस्था की ग्रोथ मान रही है. क्या सरकार या उसके आयोग को ये महसूस हो चुका है कि देश तब ही विकास करेगा जब उसके बड़े व्यापारी दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करेंगे.
अंत में इतना ही कि, वर्तमान समय में सरकार और उसके अलग-अलग आयोग सिर्फ कागजी दावे करते हुए इस देश की जनता के बीच अपना मान बढ़ाने पर लगे हैं. जबकि हकीकत ये है कि ये कागजी दावे इस देश की आम जनता को ठगने के अलावा और कोई काम करते नजर नहीं आ रहे हैं. अगर सरकार या उसका आयोग ये मान रहा है कि छोटे स्तर पर नौकरियों की कमी है तो उसे अपनी तारीफ बताने के बजाए इस दिशा में गंभीर हो जाना चाहिए और इसपर काम करना चाहिए. यदि सरकार ये कर ले जाती है तो बहुत अच्छी बात है अन्यथा यही माना जाएगा कि इस तरह के लुभावने आंकड़े दिखाकर सरकार और कुछ नहीं बस अपनी कमियों पर पर्दा डाल रही है.
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