भारत का कर्जा डकारकर माल्या चले परदेस
डियाजियो ने भले 500 करोड़ रुपये का और भुगतान कर यूनाइटेड ब्रेवरीज को विजय माल्या से मुक्त कर लिया है. लेकिन इस कंपनी की गारंटी पर माल्या ने जिन 7000 करोड़ रुपये का कर्ज सरकारी बैंकों से लिया है उसका क्या होगा?
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एक वादे ‘न खाउंगा, न खाने दूंगा’ ने उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया. लेकिन अब इसी न खाने और न खाने देने वाली सरकार को धता कर सरकारी बैंकों का करोड़ों डकार चुके शराब कारोबारी विजय माल्या देश छोड़कर इंग्लैंड भागने की तैयारी कर ली हैं.
माल्या पर अपनी कंपनी यूनाइटेड ब्रेवरीज को दुनिया की सबसे बड़े शराब कंपनी डियाजियो को बेचने के बाद आरोप लगा था कि उन्होंने 7000 करोड़ रुपये से अधिक की हेराफेरी की है. यह आरोप डियाजियो ने कंपनी के फाइनेंस की जांच के बाद लगाया जिसके बाद देश के सरकारी बैंकों को एहसास हुआ कि माल्या की इस हेराफेरी का असली नुकसान दरअसल उन्हें हुआ है. गौरतलब है कि माल्या ने अपनी दूसरी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस के लिए यूनाइटेड ब्रेवरीज की गारंटी पर कई बैंकों से पैसे उठाए थे. इस बात को छिपाते हुए माल्या ने डियाजियो के हाथ यूनाइटेड ब्रेवरीज को बेच दिया.
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इतनी बड़ी रकम की हेराफेरी के बाद डियाजियो ने विजय माल्या को यूनाइटेड ब्रेवरीज बोर्ड के चेयरमैन पद को छोड़ने के लिए दबाव बनाया. एक साल से ज्यादा लंबे समय तक चले इस विवाद के बाद अब विजय माल्या ने घोषणा कर दी है कि वह चेयरमैन पद का त्याग कर रहे हैं. इसके लिए भी उन्होंने डियाजियो से 500 करोड़ रुपये की डील कर ली है और घोषणा की है कि यह रकम उनके बच्चों के काम आएगी जो इंग्लैंड में रह रहे हैं. इसके साथ ही माल्या ने यह भी घोषित कर दिया है कि 60 साल की उम्र के पड़ाव पर वह अपनी बाकी जिंदगी इग्लैंड में बच्चों के साथ रहकर बिताने जा रहे हैं. गौरतलब है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नैशनल बैंक और यूनाइटेड बैंक जैसे सरकारी बैंक और अन्य बैंको से लिए गए लोन विजय माल्या की कंपनी के नाम से लिया गया है. लिहाजा, जानकार मान रहे हैं कि ऐसे में उन्हें देश छोड़ने से रोका नहीं जा सकता.
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अब सवाल यह पैदा होता है कि डियाजियो ने भले 500 करोड़ रुपये का और भुगतान कर यूनाइटेड ब्रेवरीज को विजय माल्या से मुक्त कर लिया है. लेकिन इस कंपनी की गारंटी पर माल्या ने जिन 7000 करोड़ रुपये का कर्ज सरकारी बैंकों से लिया है उसका क्या होगा. क्या इस कर्ज की रकम को केन्द्र सरकार वहन कर लेगी और एक बार के लिए प्रधानमंत्री मोदी के किए चुनावी वादों को फिर से जुमला करार दिया जाएगा.
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