3 कारों का क्रेज साबित कर रहा है कि ऑटोमोबाइल सेक्टर की मंदी का कारण इकोनॉमी नहीं
हाल के दिनों में MG Hector, Kia Seltos और Hyundai Venue जैसी गाड़ियों की जिस तरह से बुकिंग हो रही है और लंबी-लंबी वेटिंग है, ये तर्क गले नहीं उतरता कि लोगों के पास पैसों की कमी है. इसकी वजह कुछ और ही है.
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ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी है, अर्थव्यवस्था में मंदी है, लोग गाड़ियां नहीं खरीद रहे, कंपनियों की गाड़ियां नहीं बिक रहीं, और न जाने क्या क्या. ये सारी बातें आए दिन सुनने को मिल रही हैं. बेशक ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी है, लेकिन इसकी वजह क्या है? अधिकतर लोग इसका यही जवाब देंगे कि लोगों के पास पैसे कम हैं या उन्हें गाड़ियां महंगी लग रही हैं. कई ऑटोमोबाइल कंपनियां तो सरकार से गुहार भी लगा चुकी हैं कि जीएसटी में कटौती करनी चाहिए, जिससे लोग गाड़ियां खरीदें और ऑटोमोबाइल सेक्टर की स्थिति सुधरे. लेकिन क्या वाकई लोगों के पास पैसा नहीं है? क्या गाड़ियों की ब्रिकी में आई कटौती की वजह उनकी महंगी कीमत है?
हाल के दिनों में MG Hector, Kia Seltos और Hyundai Venue जैसी गाड़ियों की जिस तरह से बुकिंग हो रही है और लंबी-लंबी वेटिंग है, ये तर्क गले नहीं उतरता. आपको बता दें कि ये गाड़ियां सस्ती नहीं है, बल्कि 10 लाख और उससे अधिक के बजट वाली हैं. अब अगर लोगों के पास पैसे कम होते, तो इतनी महंगी गाड़ियां वो कैसे खरीदते? और यहां बात सिर्फ खरीदने की नहीं, बल्कि वेटिंग लाइन में लगकर खरीदने की है. यानी एक बात तो तय है कि इन गाड़ियों ने लोगों को इंप्रेस किया है. इन गाड़ियों की धुआंधार बुकिंग को ऑटोमोबाइल कंपनियों को एक केस स्टडी की तरह देखना चाहिए.
हेक्टर जैसी महंगी गाड़ियों पर 6-7 महीनों की वेटिंग चल रही है.
लंबा वेटिंग पीरियड
MG Hector पर 7-8 महीनों की वेटिंग है. Kia Seltos की लॉन्चिंग से पहले ही करीब 25 हजार गाड़ियों की बुकिंग हो चुकी है. वहीं Hyundai Venue की 50 हजार गाड़ियों की बुकिंग सिर्फ दो महीने में हो गई. ध्यान देने की बात ये है कि हेक्टर करीब 12.30-17 लाख रुपए है. Kia Seltos की कीमत भी करीब 11-17 लाख के बीच होने की संभावना है. वहीं Hyundai Venue की कीमत 8-12 लाख रुपए है.
ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी की 3 वजहें
पहली नजर में भले ही ऑटोमोबाइल कंपनियों को ये लग रहा है कि गाड़ियों की कीमत या फिर लोगों के पास पैसों की कमी के चलते उनकी गाड़ियां नहीं बिक रही हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. ऐसा होता तो हेक्टर जैसी महंगी गाड़ी के लिए वेटिंग पीरियड नहीं होता. दरअसल, ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी की कुछ खास वजहें हैं-
1- इनोवेशन की कमी
ऑटोमोबाइल कंपनियां एक पुराने ढर्रे पर चल रही हैं. गाड़ी में वही पुराने घिसे-पिटे फीचर्स. ज्यादा से ज्यादा डिजाइन में कहीं कुछ टेढ़ा बना दिया तो कहीं पर कुछ सीधा कर दिया. मतलब ये कि ऑटोमोबाइल कंपनियां मामूली बदलाव के साथ नई गाड़ियां लॉन्च कर रही हैं, जो लोगों को पसंद नहीं आ रहीं. लोग इनोवेशन चाहते हैं. इसका जीता-जागता सबूत है MG Hector खरीदने का लिए वेटिंग पीरियड. ये दिखाता है कि लोग गाड़ियां लेने के लिए तो तैयार हैं, लेकिन उन्हें एक अच्छा ऑफर चाहिए. अच्छे फीचर्स वाला. अच्छे डिजाइन वाला.
2- बीएस-6 नियम भी हैं वजह
सरकार की ओर से सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों को कहा जा चुका है कि अगले साल से सिर्फ बीएस-6 इंजन वाली गाड़ियां ही बिकेंगी. ऐसे में एक तो ऑटोमोबाइल कंपनियों ने पुराने इंजन वाली गाड़ियां बनाना कम कर दिया है और पुराना स्टॉक निकालना चाह रही हैं. दूसरा ये कि कुछ कंपनियां जो गाड़ियां बना रही हैं, उनमें बीएस-4 इंजन ही लगा रही हैं. वहीं पब्लिक ये सोच रही है कि जब अगले साल से बीएस-6 इंजन वाली गाड़ियां आ रही हैं, तो क्यों ना कि थोड़ा रुक कर गाड़ी ले ली जाए. वैसे भी, मोदी सरकार के सख्त फैसलों के बारे में हर कोई जानता है. डर ये है कि कहीं अचानक पुराने इंजन वाली गाड़ियों को लेकर कोई सख्त नियम आ गया तो क्या होगा.
3- इलेक्ट्रिक व्हीकल का भी है इंतजार
बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इस इंतजार में हैं कि मोदी सरकार इलेक्ट्रिक व्हीकल को बढ़ावा देने के लिए कोई ढांचा तैयार करे, तो इलेक्ट्रिक व्हीकल की ओर मुड़ा जा सकता है. अभी इलेक्ट्रिक व्हीकल लेने में कतराने की बड़ी वजह है चार्जिंग प्वाइंट्स की कमी. पेट्रोल पंप तो पूरे देश में हर जगह मिल जाएंगे, लेकिन इलेक्ट्रिक व्हीकल के लिए चार्जिंग प्वाइंट्स नहीं मिलेंगे. साथ ही, अभी इलेक्ट्रिक व्हीकल के विकल्प भी काफी कम हैं और पब्लिक कुछ वैरायटी चाहती है.
ऑटोमोबाइल सेक्टर में स्लोडाउन की वजह भले ही कंपनियां सरकार की पॉलिसीज़ को मान रही हैं, लेकिन ये भी सच है कि वह खुद इससे निपटने के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं कर रही हैं. अब इलेक्ट्रिक व्हीकल को ही ले लीजिए. महिंद्रा ने इलेक्ट्रिक व्हीकल का रुख कर लिया है, लेकिन टीवीएस और बजाज सरकार से मुंह फुलाए बैठे हैं, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है इस सेक्टर में काम करने वालों को. फेडरेशन ऑफ ऑटमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन के अनुसार ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी की वजह से पिछले तीन महीनों में करीब 2 लाख कर्मचारियों की छंटनी की जा चुकी है.
हालात, इतने खराब हो गए हैं कि कई ऑटोमोबाइल कंपनियों ने कुछ दिनों के लिए प्रोडक्शन पर ब्रेक तक लगा दिया. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने 8 जून से 5-13 दिन तक प्रोडक्शन पर ब्रेक लगाया. बाजार की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी मारुति सुजुकी ने 23 जून से 30 जून तक प्रोडक्शन बंद किया. कंपनी ने अपना गुरुग्राम और मानेसर का प्लांट भी पिछले महीने एक पूरे दिन के लिए बंद किया था. बेशक सरकार को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए, लेकिन इसे भी मोदी सरकार का सख्त कदम ही समझना चाहिए. सरकार बीएस-6 इंजन वाली गाड़ियों और इलेक्ट्रिक व्हीकल का बाजार बनाने की तैयारी में है. हालांकि, एक बात ऑटोमोबाइल कंपनियों को समझनी चाहिए कि अगर वह अच्छे ऑफर और फीचर्स देंगे, तो गाड़ी महंगी कीमतों के बावजूद उनकी बंपर बिक्री होगी.
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