MH-60R हेलीकॉप्टर: अमेरिका का ये कॉप्टर भारतीय नेवी के लिए क्यों है जरूरी?
सालों से नेवी अपने लिए बेहतर हेलिकॉप्टर की मांग कर रही है. फिलहाल ब्रिटिश हेलिकॉप्टर सी-किंग का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन इनकी संख्या अब 10 से भी कम बची है और एक समय पर नेवी को अपने जंगी जहाज बिना हेलिकॉप्टर के भी उतारने पड़े थे.
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जहां एक ओर राफेल डील ने मोदी सरकार को घेरे हुआ है वहीं दूसरी ओर अब एक और रक्षा मंत्रालय की डील होने वाली है. ये डील फ्रांस से नहीं बल्कि अमेरिका से होने वाली है और बात है भारतीय नेवी के लिए MH-60R हेलीकॉप्टर खरीदने की.
भारत में सरकार चाहें जो भी हो सेना के लिए हथियार खरीदने के मामले में उसे विवाद झेलना पड़ता ही है. इसी कड़ी में नेवी के हैलिकॉप्टर की बात भी कर लेते हैं जिसके लिए 46000 करोड़ का एक प्रोजेक्ट सरकार ने पास कर दिया है. हालांकि, इसके लिए अभी कोई आधिकारिक कॉन्ट्रैक्ट साइन नहीं हुआ है, लेकिन खबर तो यही है कि नेवी के लिए नए हैलिकॉप्टर आने वाले हैं.
दरअसल, मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस ने दो अलग-अलग प्रोजेक्ट में नेवी के लिए दो अलग तरह के हेलिकॉप्टर मंगवाने के मामले में हां कर दी है. इसमें से एक हेलिकॉप्टर वो होगा जो समुद्र में सबमरीन को खोज निकालने में मदद करेगा. डिफेंस अधिग्रहण काउंसिल (DAC) की मीटिंग में निर्मला सीतारमन ने 46000 करोड़ के प्रोजेक्ट के प्रस्ताव पर मंजूरी दे दी है.
नेवी को सालों से हेलिकॉप्टरों की जरूरत रही है
DAC ने समुद्री सीमाओं की सुरक्षा के लिए 24 एंटी-सबमरीन मल्टी रोल हेलिकॉप्टरों के खरीदने पर मंजूरी दे दी है. ये हेलीकॉप्टर जंगी जहाज़ों के लिए एक अहम उपकरण साबित होंगी. इस डील में अमेरिकी ग्लोबल एरोस्पेस सुरक्षा कंपनी लॉकहीड मार्टिन सरकार को ये हेलिकॉप्टर मुहैया करवाएगी.
क्यों ये हेलिकॉप्टर बन सकते हैं नेवी का अहम हिस्सा?
चीनी सबमरीन लगातार हिंद महासागर के गोते लगाती रहती है. मौजूदा समय में नेवी Sea King Mk42B और Kamov-28 हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल करती है. ये दोनों ही हेलिकॉप्टर 1980 के दशक के डिजाइन हैं और इन्हें ही अब बेहतर तरह से अपग्रेड किया जा रहा है. ऐसे करीब 20 हेलिकॉप्टर हैं नेवी के पास और इनके ही थोड़े अलग स्वरूप आर्मी और एयरफोर्स इस्तेमाल कर रही हैं.
समुद्र में जो हेलिकॉप्टर इस्तेमाल होते हैं उनकी संरचना थोड़ी अलग होती है. उन्हें ऐसे पेंट की जरूरत होती है जो समुद्री पानी को सह सके और जिसका राडार सिस्टम बहुत अलग हो. और नए हेलिकॉप्टर इस सभी कामों में दक्ष हैं. अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस ने अपनी लेटेस्ट रिपोर्ट “Military and Security Developments Involving the People’s Republic of China 2017” में कहा था कि ये सबमरीन पेट्रोलिंग हेलिकॉप्टर चीन की सुरक्षा भी कर रहे हैं, संवाद के लिए भी जिम्मेदार हैं और हिंद महासागर में चीन की ताकत भी बढ़ा रहे हैं. अगर चीन के पास भी यही हेलिकॉप्टर है तो यकीनन ये भारतीय नौसेना के लिए भी जरूरत बन रहा है.
साथ ही, सालों से नेवी अपने लिए बेहतर हेलिकॉप्टर की मांग कर रही है. फिलहाल ब्रिटिश हेलिकॉप्टर सी-किंग का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन इनकी संख्या अब 10 से भी कम बची है और एक समय पर नेवी को अपने जंगी जहाज बिना हेलिकॉप्टर के भी उतारने पड़े थे. यही कारण है कि नेवी के लिए ये बहुत जरूरी संसाधन बन गए हैं.
DAC ने अन्य प्रोजेक्ट पर भी अपनी स्वीकृति दे दी है. अन्य प्रस्ताव 24,879 करोड़ के हैं. इसमें पहला 150 स्वदेशी डिजाइन और विकसित 155 मिमी उन्नत टॉइड आर्टिलरी गन सिस्टम(ATAGS) भारतीय सेना के लिए खरीदने की बात कही गई है. इन सिस्टम को DRDO (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा विकसित और डिजाइन किया जाएगा और इसे प्राइवेट कंपनियों टाटा और भारत फोर्ज द्वारा बनाया जाएगा. इस प्रोजेक्ट की कीमत 3,364 करोड़ रुपए है. 155 मिमी/52 कैलिबर की ये बंदूके 40 किलोमीटर दूर का टार्गेट भी मार गिरा सकती हैं.
इसके अलावा, दूसरा प्रस्ताव 111 नौसेना के उपयोगी हेलिकॉप्टरों का है. जिनकी कीमत 21000 करोड़ होगी. ये सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम के लिए एक नई पहल होगी. हालांकि, इस प्रोग्राम को पूरा होने में अभी कई साल लग जाएंगे.
कई एविएशन कंपनियां जैसे एयरबस, कामोव एंड बेल आदि इन हेलिकॉप्टरों को बनाने का प्रस्ताव दे चुकी हैं. इनमें राफेल डील वाली हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड भी शामिल है. नेवी उस हेलिकॉप्टर को चुनेगी जो उसे पसंद आएगा और उसकी जरूरत के हिसाब से होगा. ये कड़े चुनाव प्रोसेस के बाद होगा. ये हेलिकॉप्टर भारत में ही बनाए जाएंगे.
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