'तिरंगा' बनाने वाले पिंगली ने शायद ही सोचा हो, देश ऐसे भी बंटेगा?
देश के लिए पिंगली वेंकैया के योगदान को आज शायद ही वो लोग समझ पाएं जो भाषा से लेकर झंडे तक हर उस मुद्दे को लेकर लड़ रहे हैं जिससे देश को नुकसान होता है.
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पूरा देश एक अजीब सी स्थिति से गुजर रहा है. क्षेत्रवाद अपने चरम पर है. महाराष्ट्र में मराठियों के अलावा सबके बुरे हाल हैं. कश्मीर में चल रहा संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा. कर्नाटक के लोग तमिलनाडु से नफरत करते हैं. तमिलनाडु के लोगों को कर्नाटक के लोग फूटी आंख नहीं भाते. असम की परेशानी बिहार और बंगाल के लोग हैं. बुंदेलखंड के लोग बाकी के यूपी से परेशान हैं. क्या दिल्ली- हरियाणा, क्या केरल. क्षेत्रवाद की समस्या हर जगह है. सबको बस अपने-अपने झंडे की चाहत हैं देश भले ही पीछे होता रहे मगर सबके पास अपना सेट एजेंडा है.
चूंकि बात झंडे की आ गई है तो हमें पिंगली वेंकैया को जान लेना चाहिए. सवाल आएगा कि कौन पिंगली वेंकैया और इन्हें हमें क्यों जानना चाहिए? तो बता दें पिंगली वेंकैया वो हैं जिनके कारण आज हम देश का झंडा देख रहे हैं. जिनका जन्मदिन है. पिंगली देश का राष्ट्रध्वज देने वाले एक महान स्वतंत्रता सेनानी व कृषि वैज्ञानिक थे, जिनका जन्म आज ही के दिन 2 अगस्त 1876 में आंध्र प्रदेश में हुआ था.
देश का झंडा बनाने वाले पिंगली वेंकैया के लिए झंडा बनाना बिल्कुल भी आसान नहीं था
सवाल ये है कि कभी क्षेत्रवाद पर तो कभी भाषा, जाति, रंग, संस्कृति और अलग झंडे के लिए लड़ते भिड़ते लोगों को देखकर आज पिंगली वेंकैया की आत्मा पर क्या बीत रही होगी? हां वो पिंगली जो दक्षिण अफ्रीका में थे और जिन्होंने महात्मा गांधी से अनुरोध किया था कि उनके देश का भी एक झंडा हो जो देश की संप्रभुता को दर्शाए.
बात आजादी से बहुत पहले की है. तब पिंगली जवान थे और ब्रिटिश सेना में नौकरी करते थे. अंग्रेजो ने उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेजा जहां उन्होंने एंग्लो-बोअर युद्ध में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. आदमी जब अपने गांव शहर या वतन से दूर होता है तो उसे अपने 'घर' की याद ज्यादा आती है. पिंगली के साथ भी यही हुआ उस समय तक लगभग सभी देशों के झंडे थे सिवाए भारत के. पिंगली के मन में विचार आया कि क्यों न उनके भी देश का एक झंडा हो?
महात्मा गांधी उस वक़्त दक्षिण अफ्रीका में ही थे और एक लोकप्रिय नाम थे. पिंगली ने महात्मा गांधी से मुलाकात की और उनसे अपने देश का एक अलग राष्ट्रध्वज होने की बात कही. बात गंभीर और अच्छी थी. गांधी जी को पसंद आई. गांधी जी ने पिंगली से देश का झंडा तैयार करने के लिए कहा.
अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए पिंगली महात्मा गांधी से मिले और उन्हें अपनी बात सुनाई
महात्मा गांधी से मुलाकात और उनके विचार जानकार पिंगली बहुत प्रभावित हुए और अंग्रेजों की नौकरी छोड़ भारत लौट आए. भारत आने के बाद पिंगली ने झंडा डिजाइन करने की दिशा में काम करना शुरू किया. पिंगली वेंकैया ने लगभग 5 सालों के गहन अध्ययन के बाद तिरंगे का डिजाइन तैयार किया था. असल में पिंगली एक ऐसा झंडा बनाना चाहते थे जो पूरे राष्ट्र को एक सूत्र पर बांधे रखे. जिसमें उनका सहयोग एस.बी.बोमान और उमर सोमानी ने दिया और उन्होंने मिलकर नेशनल फ्लैग मिशन का गठन किया.
झंडे की डिजाइन को जब उन्होंने गांधीजी को दिखाया तो उन्होंने राय दी कि झंडे के बीच में अशोक चक्र होना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि अशोक चक्र को राष्ट्र की एकता का प्रतीक माना जाता है. झंडे को डिज़ाइन करते वक़्त पिंगली के पास चैलेन्ज कम नहीं थे. लाजमी है कि उन्होंने भी भांति-भांति के झंडे बनाए होंगे. कुछ झंडों में उन्होंने पट्टियां को सीधा खड़ा किया होगा. कुछ में उन्होंने पट्टियों को सपाट बनाया होगा. बताया ये भी जाता है कि पिंगली वेंकैया ने पहले हरे और लाल रंग के प्रयोग से झंडा तैयार किया था. मगर गांधीजी को इसमें संपूर्ण राष्ट्र की एकता की झलक नहीं दिखाई दी और फिर झंडे में रंग को लेकर काफी विचार-विमर्श शुरू हुए.
कहना गलत नहीं है देश के झंडे को लेकर पिंगली ने भी शुरुआत में खूब पापड़ बेले
1931 में कराची कांग्रेस कमिटी की बैठक में पिंगली ने एक ऐसा झंडा पेश किया जिसमें बीच में अशोक चक्र के साथ केसरिया, सफेद और हरे रंग का इस्तेमाल किया गया. पिंगली द्वारा बनाए गए इस झंडे को वहां मौजूद लोगों से आधिकारिक तौर पर हरी झंडी मिल गई. बाद में पिंगली का बनाया ये झंडा 'स्वराज्य ध्वज' के रूप में काफी लोकप्रिय भी हुआ. आपको बताते चलें कि इसी झंडे को साथ लेकर कई आंदोलन लड़े गए और आखिरकार 1947 में अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया.
स्वतंत्रता के बाद जब राष्ट्रध्वज पर मुहर लगने को लेकर चर्चा शुरू हुई तो डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया. तीन हफ्ते बाद 14 अगस्त को उनके द्वारा इंडियन नेशनल कांग्रेस के झंडे को ही नेशनल फ्लैग के रूप पर मान्यता देने की सिफारिश पेश हुई. जिसे सबने मान लिया और 15 अगस्त 1947 से तिरंगा भारत की पहचान बन गया.
राजनीती और कांग्रेस से इतर अगर इन बातों को रखकर देखें तो मिलता है कि वाकई पिंगली देश, उसकी अखंडता, उसकी एकता और उसके ध्वज के लिए गंभीर थे. उन्होंने अच्छे वेतन और रुतबे वाली नौकरी छोड़कर देश सेवा की और देश के लिए झंडा तैयार किया. आज जिस तरफ के देश के हालात हैं. हमारे लिए ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि देश के लिए पिंगली वेंकैया के योगदान को वो लोग शायद ही समझ पाएं जो वर्तमान में अपने एजेंडे से देश तोड़ने और उसे नुकसान पहुंचाने का काम कर रहे हैं.
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