अब पसंद आने लगे हैं क्रेजी आजादी के साइड इफेक्ट
अब स्वतंत्रता दिवस कैलेण्डर में दर्ज एक छुट्टी बन के रह गया है, जिसे हम मना लेते हैं. लेकिन क्या आजादी के यही मायनें हैं ? क्या आजादी और देशभक्ति केवल और केवल एक दिन की मोहताज है ? तो शायद इसका जवाब ना हो.
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कॉलेज के जमाने में कलरफुल और अब नौकरी के बाद, ब्लैक एंड वाइट सी मेरी ज़िन्दगी में कुछ खास काम नहीं हैं. अब मैं सोकर उठता हूं, तैयार होता हूं और दफ्तर आ जाता हूं. दफ्तर में, निर्धारित समय के बाद उठता हूं और वापस घर चला जाता हूं. यूं इस तरफ आना और जाना, अब मेरे लिए एक क्रम जैसा है. बात आज सुबह की है.
आज सुबह ऑफिस आते वक़्त, मैंने सिग्नल पर कटी-फटी टी-शर्ट मटमैला पैजाना पहने, आंखों में नींद और बिखरे बाल लिए हुए, एक 5–6 साल के मासूम बच्चे को हाथों में तिरंगे का बंडल लिए महंगी वाली 'कारों के पीछे' भागते देखा. वो बच्चा शायद किसी बड़ी गाड़ी वाले को तिरंगा बेचने जा रहा था. बड़ी गाड़ी वाला अनुभव में उस छोटे से बच्चे से कहीं ज्यादा था. उसने भी पूरा मोल भाव किया मामला पट गया. अब बड़ी गाड़ी वाले के डैशबोर्ड पर तिरंगा और उस बच्चे के हाथ में चंद नोट थे.
आजादी का दिन अब बस हमारे लिए झंडे खरीदने का एक दिन है
इस मोल भाव के बीच ये समझने में बिल्कुल भी देर न लगी कि 'अच्छा हां, कल तो पंद्रह अगस्त है. फाइनली पंद्रह अगस्त आ गया. 15 अगस्त यानी हमारा स्वतंत्रता दिवस. वो दिन जिस दिन अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई भारत माता आजाद हुई थी.
खैर, हो सकता है इस लेख में लिखी कुछ बातें आपको कड़वी और खट्टी लगें तो उनके लिए माफी और आप लोगों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक मंगल कामनाएं. ये आज़ादी आपको और मुझे घुट घुट कर जीने के लिए मुबारक हो. भगवान करे, यूं ही देश के हिन्दू भाई मुस्लिम बिरादरी को सोशल मीडिया पर गरियाते रहें. मुस्लिम भाई भी वहीं उसी सोशल मीडिया पर हिन्दू भाइयों को कोसते रहें. महंगाई इतनी बढ़ जाये कि महंगाई को भी शर्म महसूस हो महंगाई कहलाये जाने पर, खुदा करे कि हम पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, टमाटर, प्याज़ जैसी चीज़ें सिर्फ किसी सरकारी संग्रहालय में टिकट लेकर देखें. देश में होने वाले रेप और छेड़ छाड़ की घटनाएं दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करें, करप्शन बिलकुल डॉलर और पाउंड के रेट की तरह बढे.
मुझे पूरा यकीन है, ऊपर लिखी बातों से आप बिल्कुल भी सहमत तो न होंगे. मगर फिर भी, यही आज के हमारे समाज की सच्चाई है. शायद आपको मेरी बातें कड़वी लगें. आप में से कोई मुझे फ्रस्ट्रेटेड और नफरत की राजनीति करने वाला लेखक कहके नकारने का प्रयास करे. मुझे एक ऐसा लेखक माने जिसके चारों ओर इस समय केवल और केवल नेगेटिव एनर्जी का वास है. इन सब बातों को पढ़ने के बाद हो सकता है कि आप लोग मुझे क्रिटिसाइज करते हुए मेरी राइटिंग स्किल को देश के लिए एक बड़ा खतरा मान लें. उसे नेशनल डिजास्टर का दर्जा दे दें. मित्रों मुझे आपकी बातों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, आपकी गालियों कि मुझे फोई परवाह नहीं है – हां हां इस 15 अगस्त मैं क्रेज़ी हूं.
वहीं दूसरी तरफ ऐसा भी हो सकता है कि इन बातों को जानने के बाद समाज का एक वर्ग कुछ सोंचने पर मजबूर हो जाए और मुद्दों पर अपनी सहमती दर्ज करे. वैसे भी हम आम आदमी है, आम आदमी सिर्फ सोच सकता है, सोशल मीडिया के अलग-अलग टूल्स का इस्तेमाल करके अपनी भड़ास को, अपने फ्रस्ट्रेशन को ट्विटर पर ट्वीट से, फेसबुक पर पोस्ट से या अपने ब्लॉग पर पोस्ट करके निकाल सकता है.
कल यानी पंद्रह अगस्त को हमारा देश अपना 71 वां इंडिपेंडेंस-डे यानी स्वतंत्रता दिवस मनाने वाला है. स्वतंत्रता दिवस, अब तो मुझे बड़ा अजीब लगने लग गया है ये शब्द. कभी-कभी जब मैं ज्यादा उकता जाता हूं तो पूछता हूं अपने आप से क्या मैं सच में स्वतंत्र या आजाद हूं.
एक नागरिक के तौर पर आअज हम ये भूल चुके हैं कि आजादी के असल मायने क्या हैं
स्वतंत्र या आजाद का मतलब समझते हैं आप? नहीं, चलिए अपने अल्प ज्ञान से आपको बताने का प्रयास करता हूँ. आजाद का मतलब होता है 'वो जिसके पास कोई बंदिशें न हों, अपनी बात कहने के लिए जिसे किसी सहारे की जरूरत न हो.' कुल मिला के कहा जाये तो उसे आजाद कहना मुनासिब है जिसके पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो, अपनी बात कहने की पूरी स्वतंत्रता हो.
अब आप ही बताइए इनमें से कौन कौन से गुण हैं आपके पास. मैं ये सवाल महज इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि असल में मैं ये जानना चाहता हूं कि मेरे ऐसे कितने भाई हैं जो ये मानते हैं कि आज 'हम वाकई आजाद हैं'. इनकी संख्या शायद उतनी ही हो जितना कि दाल में नमक. मैं सब की नहीं जानता, अपनी ही बताता हूं. मैं एक प्राइवेट मीडिया कम्पनी में काम करने वाला छोटा सा मुलाजिम हूं. मेरे लिए आजादी के मायने जरा डिफरेंट है. मेरा मानना है कि, जब आपको अपना काम करने की पूरी स्वतंत्रता हो तो आप स्वतंत्र हैं. जब आप अपनी बात किसी को समझा सकते हों और उसकी कही बातों को समझ सकते हों तो समझो आप स्वतंत्र हैं.
जब आपको आपकी की हुई मेहनत का सही फल मिले तो समझो आप स्वतंत्र हैं. जब सैलरी पहली तारीख को आए तो समझो आप स्वतंत्र हैं. सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात जब आप किसी भी गलत बात की किसी भी नाइंसाफी की खुल के 'कड़े शब्दों में निंदा कर सकें' तो समझो आप स्वतंत्र हैं. खुल के जीने और मस्त रहने का नाम ही स्वतंत्रता है. स्वतंत्र आप तब हैं, जब आपका मन साफ होगा, स्वतंत्र आप तब हैं, जब आपके अन्दर निष्काम और निस्वार्थ सेवा भाव जन्म लेगा. स्वतंत्र आप तब हैं जब आप अपने हक़ की लड़ाई बिना किसी सहारे के लड़ सकें.
काश एक भारतवासी होने के नाते हम अपनी आजादी की असली कीमत समाज सकें
हम में से ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके अनुसार स्वतंत्रता दिवस वो दिन है जो हमारे घरों के कैलेण्डर में 15 अगस्त की छुट्टी के तौर पर अंकित होता है. ये वो दिन है जब एक दिन कि सरकारी छुट्टी होती है. जब स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों को दिन भर की कड़ी मशक्कत के बाद 'डे' के 'मिड' में फ्री में 4 लड्डू 2 केले, जलेबी जैसी चीजें दी जाती हैं. ये वो दिन हैं जब दिल्ली में हमारे प्रधान मंत्री लाल किले पर देश का झंडा फहरा कर ये बताएंगे कि उन्होंने और उनकी सरकार ने कौन कौन से झंडे, देश के विकास की दिशा में गाढ़े.
छोड़िये, ये सब बड़े लेवल की बातें हैं. इनसे हमें कोई खास मतलब नहीं होना चाहिए बल्कि हमें इस बात पर ज्यादा फोकस करना चाहिए कि कल का दिन हमें कैसे और किस तरह एन्जॉय करना है. हममें कई ऐसे होंगे जिनके कल को लेकर, कई सारे प्लान होंगे. जैसे दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाना, गर्ल फ्रेंड के साथ किसी मॉल के फ़ूड कोर्ट में डेट करना, रूम पार्टनर के साथ क्रिकेट मैच देखते हुए दारू पीना, कामकाजी महिलाओं ने कल का ये दिन घर की साफ सफाई और कपड़ों को डेडीकेट किया होगा. कल यानी पंद्रह अगस्त को ये घर की साफ सफाई करेंगी, कपड़े साफ करेंगी मोहल्ले में छोटा मोटा गेट-टुगेदर करेंगी.
दोस्तों याद रखिये आप इस दुनिया में तभी तक रह सकते हैं जब आप अपने इतिहास को याद रखें, उसे जाने, उसे समझें. याद रखिये, स्वतंत्रता दिवस वो दिन नहीं है. जब आप नयी जींस पहनकर, बिग बाजार या पेंटालून से नया कुर्ता खरीदने के बाद उसे पहनकर सेट मैक्स, दूरदर्शन, या स्टार प्लस पर कोई पेट्रियॉटिक फिल्म देखें. ये दिन क्रिकेट खेलने का नहीं है. कृप्या अपने दिमाग से ये बात निकाल दीजिये कि आजादी एक दिन की होती है. बहुत हो गयी एक दिन की आज़ादी. अब बस भी कीजिये.
शायद आप न मानें मगर सच में बहुत ढीठ और बेगैरत हैं हम लोग. कितनी आसानी से हम दूसरे लोगों कि 'कड़े शब्दों में निंदा' कर लेते हैं. मगर बात जब अपनी हो, अपने परिवार की हो तो हम और हमारा मन मौन हो उठता है. ये कहना बिल्कुल भी अतिश्योक्ति न होगा कि कितनी आसानी से हमने क्रांति और देश भक्ति के आयाम बदल दिए हैं. कितनी आसानी से हमने भगत सिंह आज़ाद, अशफाक उल्लाह खान और बिस्मिल के सपनों को ग्लैमर की आड़ में बिखेर कर रख दिया.
अब बंद भी कीजिये ट्विटर और फेसबुक पर इंकलाब जिंदाबाद, जय हिन्द और वंदे मातरम का राग अलापना. उठिए और ग्राउंड जीरो पर आकर कुछ काम करिए. कुछ ऐसा जिससे आपको नहीं बल्कि आपके देश को फायदा मिले. याद रखिये ये कुर्बानी कोई बच्चों का खले नहीं है. इसके लिए, बहुत खून बहा है, बहुतों की जानें गयी हैं. अच्छा चलता हूं. याद रखियेगा 'बड़ी मुश्किलों की आज़ादी है' इसका मान रखिये, इसे यूं ही न जाने दीजिये.
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