'अंतरिक्ष से भारत की असमानता' का अध्ययन ही असमान है
रिसर्च के अनुसार इन दोनों अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यहां कम रौशनी है क्योंकि यहां कम आर्थिक गतिविधियां की जाती हैं. साथ ही, अंतरिक्ष से जो रौशनी दिख रही हैं वो इसका नतीजा है कि इन राज्यों के बीच असमानताएं बढ़ रही हैं.
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क्या अंतरिक्ष से खींची गई फोटो से भारत में व्याप्त असमानता का नापा जा सकता है? क्या रात की रौशनी आर्थिक गतिविधियों का सूचक है?
भारत के दो अर्थशास्त्रियों ने यही आधार लेकर एक रिसर्च रिपोर्ट तैयार की है, जो देश में विदेश में काफी चर्चित हो रही है. ये अर्थशास्त्री हैं प्रवीण चक्रवर्ती (जो कांग्रेस पार्टी की डेटा एनालिटिक्स सेल के चेयरमैन भी हैं) और उनके सहयोगी विवेक देहेजिया जो कि कनाडा की ओटावा यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र और फिलोसफी के असोसिएट प्रोफेसर हैं. उन्होंने रिपोर्ट के लिए अमेरिकी एयर फोर्स डिफेंस सेटेलाइट की एक खास तस्वीर को आधार बनाया है. यह उपग्रह दिन में पृथ्वी के 14 चक्कर लगाता है. और पृथ्वी की लाइट यानी रौशनी की तस्वीरें लेता है.
रिसर्च की खास बातें:
- इस डेटा के आधार पर 12 राज्यों के आंकड़े देखने का दावा किया गया. 640 में से 387 जिलों की जांच की गई. कहा गया कि ये भारत की 85% जनसंख्या का घर हैं और यहीं से देश की 80% जीडीपी आती है. इसी के साथ, इन राज्यों को देखा जाए तो पूरे भारत में कई तरह की असमानताएं हैं. खास तौर पर आर्थिक असमानताएं.
ये वो फोटो है जिसे असमानता का पैमाना माना गया है
- रिसर्च के अनुसार इन दोनों अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जहां कम रौशनी है, उसका मतलब है कि वहां आर्थिक गतिविधियां भी कम हैं. साथ ही, अंतरिक्ष से जो रौशनी दिख रही हैं वो इसका नतीजा है कि इन राज्यों के बीच असमानताएं बढ़ रही हैं.
- 12 राज्यों की 380 तहसीलों के मुकाबले बेंगलुरु और मुंबई में पांच गुना ज्यादा रौशनी है. साथ ही देश की 90% तहसीलें बाकी 10% की तुलना में तीन गुना कम रौशन हैं. और ये आंकड़ा 1992 से लेकर 2013 तक साल दर साल खराब होता चला गया है.
- इस स्टडी में ये बात भी सामने लाई गई कि 1991 के पहले ये असमानता कम थी और उसके बाद लगातार बढ़ती गई. देश के तीन अमीर राज्यों (तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र) में एक आम व्यक्ति तीन सबसे गरीब राज्यों (यूपी, बिहार और मध्यप्रदेश) की तुलना में तीन गुना ज्यादा अमीर है. डॉक्टर विवेक कहना है कि गरीब उतनी तेज़ी से तरक्की नहीं कर रहे जितनी तेज़ी से अमीर कर रहे हैं. और कम विकसित राज्यों में लोग निचले स्तर का जीवन जी रहे हैं. यानी भारत में काफी असमानता है.
- दोनों अर्थशास्त्री इस असमानता का कोई ठोस कारण तो नहीं निकल पाए. लेकिन ये असमानता उन्हें भारत जैसे देश में विवाद का आसान कारण बनती नजर आ रही है.
रिपोर्ट का बुनियादी आधार ही कमजोर है:
अमेरिकी बैंक ने इलेक्ट्रिसिटी को आर्थिक गतिविधियों का पैमाना माना है. रोशनी को नहीं. कई बार अर्थशास्त्रियों ने रात की रौशनी की तस्वीरें खींची है लेकिन सिर्फ शहरीकरण का अध्ययन करने के लिए. शहरों और उसकी आबादी का बढ़ता दायरा नापने के लिए. लेकिन इससे ये कतई नहीं आंका जा सकता है जहां रात में ज्यादा कम रोशनी है, वह असमानता झेल रहा है. आइए, इसे विस्तार से समझते हैं :
1. 2016 के बजाए 2012 की तस्वीर का अध्ययन कर डाला :
दोनों अर्थशास्त्रियों ने 2012 की नासा की तस्वीर को आधार बनाकर रिसर्च किया. 2016 में नासा ने ये तस्वीर पोस्ट की थी जिसमें राज्यों को और उजला दिखाया गया था. यहां 2012 की तस्वीर और 2016 की तस्वीर में फर्क साफ तौर पर देखा जा सकता है. यूपी, बिहार समेत कई राज्यों में रोशनी का अनुपात इन चार सालों में काफी बढ़ा है. ऐसे में यदि रोशनी को ही पैमाना मानें, फिर तो ये असमानता दूर हुई है !
2. जहां रौशनी कम है वहां असमानता नहीं, जंगल और रेगिस्तान है...
जहां कम रौशनी की बात कही जा रही है वो इलाके हैं, जहां रेगिस्तान और जंगल मौजूद हैं. यहां आर्थिक तो छोडि़ए, इंसानों की कोई गतिविधि ऐसी नहीं है जो रोशनी ला सके. अगर थार रेगिस्तान की ही बात करें तो क्या लगता है आपको वहां कितनी जगह लोग रहते होंगे? उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के जंगलों से कितनी रोशनी बाहर आनी चाहिए?
जिन जगहों पर कम रौशनी है वो जगह रहने के हिसाब से उतनी अनुकूल नहीं है
3. शहर की रोशनी का मतलब सिर्फ आर्थिक गतिविधि नहीं :
अब मुद्दे पर आते हैं. बिजली खपत से तो आर्थिक गतिविधि का अंदाजा लगाया जा सकता है, लेकिन रोशनी से कैसे? शहरों में आबादी का घनत्व गांवों की तुलना में ज्यादा होता है. ऐसे में घर, सड़क और वाहनों की रोशनी आसपास के बाकी ग्रामीण इलाकों की तुलना में ज्यादा होगी. यदि घोर आर्थिक मंदी का भी दौर आ जाएगा, तो भी शहर और गांव की रोशनी में ये फर्क बरकरार ही रहेगा.
4. ग्रामीण और शहरी आर्थिक गतिविधि का फर्क:
भारत जैसे देश में शहर और गांवों की आर्थिक गतिविधियों में कुछ बुनियादी फर्क है. गांवों के हाट-बाजार हमेशा से दिन में ही लगते रहे हैं. खेती समेत कई तरह की सौदेबाजी अकसर दिन में ही हो जाया करती है. जबकि शहरों में एक बड़ी नौकरीपेशा आबादी शाम को या रात को खरीददारी या अन्य जरूरत के लिए बाहर निकलती है. ऐसे में बाजार और शॉपिंग मॉल का रात में जगमगाना दूर से देखा जा सकता है. जबकि शहर में आकर खरीदारी करने वाला ग्रामीण व्यक्ति अपना दिन का काम निपटाकर शाम तक घर लौट जाता है.
5. 1991 से पहले और बाद की तुलना ही असमान है :
रिपोर्ट में कहा गया है कि 1991 से पहले भारत में ज्यादा असमानता नहीं थी. लेकिन इस निष्कर्ष में आंशिक सच्चाई है. जैसा कि सभी जानते हैं कि 1991 के बाद से ही भारत ने उदारीकरण की नीति को अपनाया. कई तरह के अवसर आए. मैन्यूफैक्चरिंग के अलावा सर्विस सेक्टर का दायरा बढ़ा. जिसके चलते शहरीकरण तेज हुआ. उसके पहले सोशलिस्ट अर्थव्यवस्था में पढ़ाई और स्वास्थ्य सुविधाओं के अलावा शहरों में रहने का खास इंसेंटिव नहीं था. ऐसे में 1991 के बाद से बढ़े शहरीकरण को असमानता बढ़ाने वाले कारण के रूप में देखना भी गलत होगा. बावजूद इसके कि बढ़ते शहरीकरण में एक बड़ी तादाद ऐसे लोगों की भी शामिल हो गई, जो अवसर की तलाश में शहर में तो आए, लेकिन उन्हें पर्याप्त अवसर मिले नहीं.
पॉलिटिकल चूक : कांग्रेस से जुड़े अर्थशास्त्री ने कांग्रेस की ही पोल खोल दी
कांग्रेस की डेटा एनालिटिक्स सेल के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती के इस रिसर्च में सहयोगी रहे विवेक दहेजिया का ये ट्वीट कांग्रेस के लिए ही परेशानी पेश करने वाला है. इस ट्वीट के साथ बताया गया है कि किस तरह भारत के तीन सबसे गरीब राज्य तीन सबसे अमीर राज्यों की तुलना में तीन गुना पिछड़े हुए हैं. इस '3-3-3' वाले गंभीर संयोग को समझाने के लिए उन्होंने सन् 2014 तक का ही डेटा लिया है. जो बताता है कि इन राज्यों के बीच सबसे ज्यादा असमानता कांग्रेस के दौर में ही आई.
For those interested in the research that @pravchak & I are doing on spatial inequality in India, our headline finding is "3-3-3" -- the three richest large states have three times the per capita GDP of the three poorest large states -- an outlier amongst large federal zones. pic.twitter.com/hXl9y8BpC8
— Vivek Dehejia (@vdehejia) May 28, 2018
बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई. कांग्रेस की पोल खोलने वाले इस ट्वीट को शशि थरूर ने 'फेसिनेटिंग' कहते हुए ट्वीट किया है. जी हां, इस रिसर्च की तारीफ खुद शशि थरूर ने की है. इस ट्वीट में ही कमेंट्स में लोगों ने अपनी राय दी...
Has less to do with economic activity and got more to do with the concentration of the light sources in major urban centres, owing to very high population density there.Would love to see a similar picture for the USA.
— KBS Sidhu (@kbssidhu1961) May 27, 2018
Well ... That's a report based on a 2012 image. This tells us about UPA and not Modi. But why let the facts come in the way of propaganda.
— Bajrangi चित्रकार ???? (@mickysood) May 27, 2018
What a rubbish article based on wrong parameter.. why economic activity has to happen night only ?
— Butter (@buttervag) May 27, 2018
...ताे अमेरिका में तो गृहयुद्ध छिड़ जाना चाहिए:
प्रवीण चक्रवर्ती और विवेक दहेजिया ने जोर देकर कहा है कि अंतरिक्ष से दिखाई दे रही रोशनी का पैटर्न भारत में बढ़ती असमानता को बता रहा है, जो बड़े विवाद का कारण बन सकता है. अब एक नजर नीचे दी गई तस्वीर को देख लीजिए. ये 2016 की ही फोटो है. आप साफ-साफ देख सकते हैं कि अमेरिका की रोशनी ने इस देश को दो हिस्सों में बांट दिया है. जहां पूर्वी भाग रोशन है, तो वही पश्चिमी भाग (समुद्री किनारे) को छोड़कर अंधेरे में डूबा है. क्या ये तस्वीर अमेरिका में असमानता को दिखा रही है?
अमेरिका की ऐसी ही सैटेलाइट इमेज
यदि रिसर्च करने वाले दोनों अर्थशास्त्रियों की तर्कों को आधार मानें तो 'हां'. लेकिन ये पूरा सच नहीं है. अमेरिका के पश्चिमी भाग में एक बड़ा इलाका रेगिस्तानी या पथरीला है. एक बड़ा इलाका निर्जन है. अंतरिक्ष से भले ये अंधेरे में डूबा लगे, लेकिन इसका आर्थिक गतिविधि से कोई लेना-देना नहीं है. अमेरिका के समुद्र तटीय इलाके दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह घने बसे हैं. और जाहिर है, वहां रोशनी भी ज्यादा है.
कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि यदि अंतरिक्ष से दिखाई देने वाली रोशनी को ही पैमाना बनाया जाए, तो दुनिया का हर देश घोर आर्थिक असमानता से ग्रस्त नजर आएगा. एक बार, जरा रूस और चीन को भी देखिए. जो इकोनॉमी के लिहाज से भारत के ऊपर हैं.
पुनश्च : ये बात बिलकुल सच है कि भारत में असमानता है. और इसे जानने समझने के लिए किसी अर्थशास्त्री की जरूरत भी नहीं है. इस असमानता का दायरा रोशनी से परे जाकर है. वह शहर और गांव से कहीं आगे जाकर है. शहर हो या गांव, दो असमान समूह, दोनों जगह मिल जाएंगे. और इस असमानता को कोई भी सैटेलाइट पकड़ नहीं सकता.
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