अंतरिक्ष में हमारे 100 सैटेलाइट तो बाकी देशों के कितने?
अंतरिक्ष में जितने भी सैटेलाइट हैं वो 4 इंच के क्यूब से लेकर 6 टन की स्कूल बस जैसे किसी भी आकार में हो सकते हैं. उनका वजन भी कई टन से लेकर चंद किलो तक कुछ भी हो सकता है. क्या अंदाजा लगाया जा सकता है कि असल में कितने सैटेलाइट होंगे?
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भारतीय स्पेस स्टेशन इसरो ने अपना 100 वां सैटेलाइट अंतरिक्ष में लॉन्च कर दिया है. इसरो ने पीएसएलवी के जरिए एक साथ 31 उपग्रह को लॉन्च किया. भेजे गए कुल 31 उपग्रहों (सैटेलाइट) में से तीन भारतीय हैं और 28 छह देशों से हैं: कनाडा, फिनलैंड, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन और अमेरिका. पृथ्वी अवलोकन के लिए 710 किलोग्राम का काटरेसेट-2 सीरीज मिशन का प्राथमिक उपग्रह है. इसके साथ सह यात्री उपग्रह भी है जिसमें 100 किलोग्राम का माइक्रो और 10 किलोग्राम का नैनो उपग्रह भी शामिल हैं. अकेले भारत ने अगर इतने सैटेलाइट लॉन्च कर दिए हैं तो क्या कभी सोचा है कि असल में कितने सैटेलाइट होंगे?
कब लॉन्च हुआ था दुनिया का पहला सैटेलाइट...
रशिया ने अपना पहला सैटेलाइट स्पत्निक 1, 1957 में लॉन्च किया था. तब से लेकर अब तक अलग-अलग देशों के हज़ारों सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे जा चुके हैं. सबसे पुराना सैटेलाइट अभी भी ऑर्बिट में है. हालांकि, अब ये काम नहीं करता. अंतरिक्ष में जितने भी सैटेलाइट हैं वो 4 इंच के क्यूब से लेकर 6 टन की स्कूल बस जैसे किसी भी आकार में हो सकते हैं. उनका वजन भी कई टन से लेकर चंद किलो तक कुछ भी हो सकता है.
एक रियल टाइम 360 डिग्री फोटो के मुताबिक पृथ्वि के इर्द गिर्द कुछ इस तरह से सैटेलाइट घूमते हैं. इस फोटो में सभी के नाम भी दिए गए थे.
लगभग कितने सैटेलाइट हैं अंतरिक्ष में?
pixalytics की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 तक 4,635 ऑब्जेक्ट पृथ्वी के चक्कर काट रहे हैं. ये सभी मानव निर्मित हैं. ये रिपोर्ट यूनाइटेड नेशन ऑफिस फॉर आउटर स्पेस अफेयर्स (UNOOSA) द्वारा बनाए गए एक इंडेक्स के आधार पर बनाई गई है. ये इंडेक्स एक तरह से इस बात का लेखा जोखा है कि कितने ऑब्जेक्ट अभी तक अंतरिक्ष पर भेजे गए हैं. 2016 की तुलना में 2017 में 8.91% ऑब्जेक्ट अंतरिक्ष में बढ़े हैं. इनमें से 1100 (मोटे तौर पर ये आंकड़े 1100-1300 के बीच हैं) सैटेलाइट काम कर रहे हैं और बाकी पुराने हो गए हैं जो सिर्फ अंतरिक्ष में घूम रहे हैं.
कौन का सैटेलाइट कहां है?
ये निर्भर करता है उनके इस्तेमाल पर. जैसे कम्युनिकेशन सैटेलाइट के सिग्नल भेजने की एक तय जगह है. वो इक्वेटर से 22000 मील ऊपर से सिग्नल भेजते हैं. जीपीएस सैटेलाइट पृथ्वी के ज्यादा नजदीक होते हैं और ये 12400 मील ऊपर हैं. और जिन सैटेलाइट्स को थोड़ा और नजदीक होने की जरूरत है वो और पास होते हैं. अगर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की ही बात करें तो ये सिर्फ 260 मील ऊपर है. कुछ सैटेलाइट एक निश्चित जगह पर होते हैं और कुछ को हमेशा सफर करते रहना पड़ता है.
सैटेलाइट ही नहीं बाकी कचरा भी है स्पेस में...
इसी मामले में नैशनल जियोग्राफिक की नॉन डेटेड रिपोर्ट कहती है कि पृथ्वी से लगभग 8000 मानव निर्मित ऑब्जेक्ट अंतरिक्ष में हैं. इसमें 1 इंच के प्लास्टिक के टुकड़े से लेकर बड़े-बड़े सैटेलाइट तक बहुत कुछ शामिल हैं. अमेरिकी सर्वेलेंस नेटवर्क ने करीब 13000 ऐसे टुकड़े अंतरिक्ष में देखें हैं जिनमें से 8000 मानव निर्मित हैं. इसमें सब कुछ शामिल है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से लेकर स्पेस टेलिस्कोप जो सैटेलाइट में शामिल हैं. कुछ ऐसे ऑब्जेक्ट भी होंगे जिनका पता नहीं चला है जैसे प्लास्टिक के कण, पेंट आदि सब. एक अनुमानित आंकड़े के मुताबिक 76000 टन कचरा स्पेस में मौजूद है.
अगर सभी डिब्री या ऐसी चीजें देखी जाएं जो अंतरिक्ष में भेजी गई हैं तो इसमें बहुत कुछ शामिल होगा. एक पेंसिल को भी अगर अंतरिक्ष में छीला गया है तो उसका कचरा अंतरिक्ष में घूमता रहेगा. एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक अगर इन सभी चीजों को मिला लिया जाएगा तो अंतरिक्ष पर लगभग 5 लाख ऐसे ऑब्जेक्ट मौजूद होंगे. ये 0.11 सेंटिमीटर से लेकर कई मीटर तक बड़े हो सकते हैं. नासा के ऑर्बिटल डिब्री प्रोग्राम ऑफिस के मुताबिक तो लगभग 21000 बड़े ऑब्जेक्ट जो 10 सेंटिमीटर से भी बड़े हैं इस समय पृथ्वी के चक्कर काट रहे हैं. अगर एक भी ऑब्जेक्ट गिरता है तो ये सोचिए कि जिस जगह ये गिरेगा वहां कितना विनाश हो सकता है.
क्यों बढ़ रहा है ये...
ये कचरा बढ़ रहा है छोटे सैटेलाइट और क्यूबसैट्स के कारण. क्यूबसैट एक खास तरह का स्पेस क्राफ्ट होता है. ये मिनिएचर सैटेलाइट 10*10*10 सेंटिमीटर तक छोटा होता है और इसका 1.333 किलो प्रति यूनिट जितना कम वजन होता है. ज्यादातर ये कमर्शियल ही होते हैं.
नई तकनीक के कारण स्पेस मिशन की कीमत काफी कम हो गई है. ऐसे में प्राइवेट कंपनियां और कमर्शियल प्रोजेक्ट के लिए स्पेस सैटेलाइट मिशन शुरू किए जाने लगे हैं. ऐसे ही 1300 सैटेलाइट अगले तीन साल में और लॉन्च किए जा सकते हैं. पिछले 60 सालों में स्पेस का कचरा बहुत बढ़ा है...
क्यों है ये चिंताजनक बात...
इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन को कई बार अपनी जगह से हटना पड़ता है ताकि उसकी टक्कर ऐसी किसी डिब्री से न हो जाए. जरा सोचिए कि 29000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अगर कोई चीज किसी अन्य चीज से टकराए तो नतीजा कितना भीषण होगा. स्पेस का कचरा न सिर्फ स्पेस स्टेशन बल्कि आने वाले समय में काम करने वाले सैटेलाइट, अंतरिक्ष यात्री और स्पेसक्राफ्ट सभी के लिए खतरनाक साबित होगा. अगर किसी एक स्पेसक्राफ्ट का एक नट भी अंतरिक्ष में गिरा है तो वो 29000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से घूम रहा है. एक टक्कर न सिर्फ अंतरिक्ष में एक बड़ा धमाका करेगी बल्कि और भी ज्यादा डिब्री और ऑब्जेक्ट पैदा कर देगी जो किसी एक सैटेलाइट से टूटकर गिरेंगे.
साफ करने का मिशन...
इस तरह का सिर्फ एक ही मिशन अभी तक ज्ञात हुआ है. यूनिवर्सिटी ऑफ सरी (Surrey UK) ने ऐसा एक मिशन लॉन्च करने की कोशिश की है. एक स्पेस क्राफ्ट जो लगभग एक वॉशिंग मशीन के साइज का है वो सरी सैटेलाइट टेक्नोलॉजी लिमिटेड द्वारा बनाना शुरू कर दिया गया है. RemoveDebris नाम के इस मिशन से जुड़े हुए डॉक्टर जेसन फोरशॉ का कहना है कि ये अपने आप में पहला एक मिशन है. ऐसी कई नई तकनीक है जो अभी तक स्पेस में इस्तेमाल नहीं की गई है.
वो स्पेसक्राफ्ट जो सरी में बनाया जा रहा है.
ये स्पेसक्राफ्ट पहले इंटरनेशन स्पेस स्टेशन जाएगा उसके बाद अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा इसे अनपैक किया जाएगा और अपने मिशन के लिए तैयार किया जाएगा. RemoveDebris अपनी तरह से स्पेस से कचरा हटाएगा. एक खास तरह का नेट इस्तेमाल किया जाएगा जो ऐसी डिब्री को स्पेस से इकट्ठा करेगा. ये एक भाले जैसी चीज टार्गेट पर फेंकेगा और ये तय करेगा कि क्या बिना वजन वाले वातावरण में ये काम कर सकता है. ये और भी कई तरह से कचरा हटाने की कोशिश करेगा. ये मिशन सिर्फ टेस्टिंग मिशन है और अगर ये सफल रहा तो इसकी तरह ही अलग-अलग मिशन लॉन्च किए जाएंगे जो अंतरिक्ष को साफ करेंगे. सिर्फ इस टेस्टिंग मिशन की कीमत 15 मिलियन पाउंड के लगभग होगी.
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