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Updated: 11 दिसम्बर, 2015 07:28 PM
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बहुत पहले की बात है. तब राजीव गांधी प्रधानमंत्री हुआ करते थे. सरकारी योजनाओं को लेकर उन्होंने तब एक बात कही थी - केंद्र से भेजे गए एक रुपये में से 10 पैसा ही जनता तक पहुंचता है. बात वर्षों पुरानी भले ही है, लेकिन आज भी जनता तक सरकारी पैसों की पहुंच वैसी ही हैं या शायद और भी बदतर! कैसे? वो इसलिए क्योंकि डीडीए आवास योजना-2014 के तहत जिन 25000 घरों का आवंटन लॉटरी के आधार पर किया गया था, उनमें से एक-तिहाई (लगभग 8500) घर मालिकों ने अपने-अपने घर लौटा दिए हैं.

ध्यान दीजिए - घर लौटा दिए हैं, बेचे नहीं हैं. देश की राजधानी में जिन भाग्यशाली लॉटरी विजेताओं को घर मिले थे, उनमें से एक तिहाई ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को घर लौटा दिए हैं. दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट और इसके बढ़ते भाव का क्या हाल है, यह किसी से छिपा नहीं है. अनियोजित कॉलोनियों में भी 2 कमरों के फ्लैट की कीमत यहां 40 लाख के आस-पास होती है. ऐसे में जिनके अपने घर हो गए हैं, उन्हें इसे बेचने के बजाय लौटाने की नौबत आ जाए तो कहीं न कहीं, कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है.  

डीडीए जब अपनी आवासीय योजना लेकर आती है, तो इसके लिए आवेदन करने वालों की लंबी लाइन स्पेशल खबर के रूप में अखबारों या न्यूज चैनलों पर चलती है. इतनी मारामारी के कुछ महीनों बाद एक और न्यूज आती है - इतने लोगों की लगी लॉटरी, दिल्ली में होगा अपना आशियाना. लेकिन इस 'भाग्यशाली' समाचार पर तब प्रश्नचिह्न लग जाता है जब राज्यसभा में शहरी विकास राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो खुद बताते हैं कि कहीं लोकेशन की दिक्कत, तो कहीं आवंटित फ्लैटों के कुल क्षेत्रफल या निर्मित क्षेत्र के कारण लोग इन्हें लौटाने लगे हैं.

2014 में केंद्र और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी. जनता अधिकारी या सरकार को पकड़ सकती है, पार्टियों को नहीं. इसलिए जो हो चुका, सो हो चुका. लेकिन अभी केंद्र में 'अच्छे दिन आएंगे' वाली सरकार है, जबकि राज्य में 'आम आदमी' की सरकार. ऐसे में क्या यह सवाल नहीं बनता कि डीडीए की अगली आवास योजना आम आदमी के लिए अच्छे दिन लाएगी या फिर से राजीव गांधी के जुमले के चरितार्थ होने के कारण लोगों को अपने घरों को लौटाने जैसा 'साहसिक' कदम उठाना होगा?

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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