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Updated: 24 अगस्त, 2016 04:02 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
  @alok.ranjan.92754
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इस साल प्याज का भरपूर उत्पादन हुआ है. भारत के प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान आज अपने बंपर उत्पादन को मिटटी के भाव बेचने को मजबूर है. हाल के वर्षो में देखे तो यही प्याज लोगो को रुला रही थी. जब प्याज की कीमत 60 से 80 रूपये किलो तक चली गई थी. यही प्याज आज किसानों को रुला रही है. किसानों को अपने फसल की सही कीमत नहीं मिल रही है. स्थिति ये है की किसानों को प्याज 5 पैसे प्रति किलो की दर पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

देश में प्याज का सबसे अधिक उत्पादन करने वाले जिला नासिक में तो स्थिति बहुत ही भयावह है. खबरों के अनुसार यहां पर एक किसान को 5 पैसे प्रति किलो की दर से प्याज बेचने का प्रस्ताव मिला था. लेकिन उसने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और अपने प्याज को खेत में ही सड़ने देना ज्यादा मुनासिब समझा.

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प्याज जल्द ख़राब हो जाने वाला उत्पाद है. इसके उत्पादन के अनुरूप ही इसकी कीमत नीचे ऊपर होती रहती है. अगर बंपर प्रोडक्शन होता है तो इसकी कीमत कम हो जाती है और अगर प्रोडक्शन कम होता है तो कीमत बढ़ जाती है.

पिछले साल तक देश के कई भागो में तो ये 60-80 रूपये किलो तक बिकी. भारी मुनाफे का अनुमान लगाते हुए इस साल भी किसानों ने बड़े पैमाने पर प्याज की फसल लगायी. इसका परिणाम ये हुआ की प्याज का अत्यधिक उत्पादन हुआ.

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 कीमत गिरने से खेतों में सड़ रही प्याज

सरकारी खरीद के बावजूद इन किसानों की समस्या कम नहीं हुई. जो प्याज खरीदी गयी वो मांग न होने के कारण सड़ने लगी. यही स्थिति किसानों की हुई. भंडारण की कमी के कारण उनकी फसल खेतो में ही सड़ने लगी और उन्हें औने-पौने दामो में अपने उत्पादन को बेचना पड़ रहा है.

थोक विक्रेता भी डिमांड कम होने के कारण किसानों से प्याज कम खरीद रहे है. भारत में ये सिस्टम रहा है की थोक व्यापारी प्याज का भंडारण करने के बाद उसे कुछ दिनों के बाद ऊंचे दामो में बेचते है. लेकिन भंडार की समस्या के कारण ये भी मुमकिन नहीं हो पा रहा है.

हाल ही में मध्य प्रदेश की मंडी में तो प्याज की कीमत 20 पैसे प्रति किलो तक पहुँच गयी थी. बाद में सरकार ने  हस्तक्षेप किया और किसानों से 6 रुपए के समर्थन मूल्य पर प्याज की खरीद की. इसके  बावजूद मध्य प्रदेश में प्याज के स्टॉक का सड़ना बंद नहीं हुआ.

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प्याज का उपयोग भारत के करीब-करीब सभी परिवार करते है. जब जब प्याज की कीमत आसमान में रही है, इसका खामियाजा तत्कालीन सरकार को उठाना पड़ा है. 'प्याज फैक्टर' के कारण ही 1980 में जनता पार्टी को लोक सभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इस वक्त विपक्ष में बैठी इंदिरा गाँधी ने बढ़ते प्याज के दाम को चुनावी मुद्दा बनाया था. इसी तरह 1998 में भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था. इस वक्त प्याज की कीमत 50  से  70 रूपये प्रति किलो पहुँच गयी थी.

अब हम यदि प्याज उत्पादकों की समस्यायों को नजरअंदाज करेंगे तो कही ऐसा न हो की वे इस फसल को छोड़कर किसी दूसरी फसल का उत्पादन करने लगे.

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इस स्थिति से बचने के लिए सरकार को एक ठोस नीति बनाने की जरूरत है जिससे प्याज के किसानों को अपनी फसल का सही मेहनताना मिल सके. सरकार कृषि बाजार में सबसे बड़ा भंडारक है. समय आ गया है की हम उत्पादन के सही तरीके के साथ-साथ भंडारण पर ध्यान दें जिससे अधिक उत्पादन होने की स्थिति में फसल को खराब होने से बचाया जा सके और साथ ही बाजार में इनकी कीमतों को अप्रत्याशित रूप से बढ़ने-घटने से रोका जा सके.

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आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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