ये न्यूनतम आय गारंटी योजना नहीं आर्थिक क्रांति का आइडिया है
राहुल गांधी की न्यूनतम आय गारंटी योजना अगर लागू होती है तो आर्थिक जगत में बड़ी क्रांति साबित होगी. जिस योजना को लोक लुभावन योजना कहा जा रहा है वो देश को आर्थिक प्रगति के नये सोपान पर पहुंचा सकती है. जिसे मुफ्तखोरी की योजना कहा जा रहा है वो देश के उद्योग धंधों की रफ्तार तेज़ कर सकती है.
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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने लोकसभा चुनाव (Loksabha Election 2019) से पहले सोमवार को बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि 'हम 12000 रुपये महीने की आय वाले परिवारों को न्यूनतम आय गारंटी देंगे. कांग्रेस गारंटी देती है कि वह देश में 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों में से प्रत्येक को हर साल 72000 रुपये देगी. यह पैसा उनके बैंक खाते में सीधा डाल दिया जाएगा.'
इस योजना को राहुल गांधी वैसे तो गरीबी पर आखिरी हमला बता रहे हैं लेकिन ये योजना अगर लागू होती है तो आर्थिक जगत में बड़ी क्रांति साबित होगी. जिस योजना को लोक लुभावन योजना कहा जा रहा है वो देश को आर्थिक प्रगति के नये सोपान पर पहुंचा सकती है. जिसे मुफ्तखोरी की योजना कहा जा रहा है वो देश के उद्योग धंधों की रफ्तार तेज़ कर सकती है. हम यहां बात करेंगे कि इस योजना से क्या और कैसे बदलेगा लेकिन पहले बताते हैं कि इसके पीछे राहुल गांधी का दर्शन क्या है.
विश्व में अमेरिका ने एक नया दर्शन दुनिया को दिया. ट्रिकल डाउन थ्योरी के नाम से मशहूर ये दर्शन कहता है कि टैक्स में छूट और सब्सिडी से लेकर जितने फायदे पूंजीपतियों को दिए जा सकते हैं दिए जाएं. ऐसा करने से समाज में समृद्धि आती है और पूंजीपतियों के जरिये धन समाज में पहुंचता है. वो लोगों को नौकर बनाते हैं और वेतन देते हैं. अपना माल बेचने के लिए दुकानदारों या छोटे व्यापारियों को कमीशन देते हैं इससे समाज में प्रगति होती है.
जिसे मुफ्तखोरी की योजना कहा जा रहा है वो देश के उद्योग धंधों की रफ्तार तेज़ कर सकती है.
पिछले करीब तीन दशक से भारत इसी नीति पर अमल कर रहा है और समाज का पैसा ज्यादा से ज्यादा अमीरों को दिया जा रहा है. सस्ती जमीनें उन्हें मिल रही हैं. उनको दिवालिया होकर निकल जाने की सुविधा दी जा रही है. दीवालिया नियमों में नरमी की जा रही है और तो और टैक्स में मोटी छूट भी दी जा रही है. सरकार ने सारी सब्सिडी बंद कर दी है और अमीरों को सारी सुविधाएं देनी शुरू कर दी हैं.
लेकिन इन तीन सालों में समाज को कोई खास फायदा नहीं हो सका. भारत के थोड़े से संसाधन हैं और वो पूंजीपतियों के पास चले गए हैं. गरीब आदमी और गरीब हो रहा है और अमीर और अमीर.
इसके विपरीत एक धारा है. ये धारा कहती है कि पैसा ज्यादा से ज्यादा जड़ों में डाला जाए. पैसा गरीबों को दिया जाए. इससे बाज़ार में पैसा आएगा. गरीब अपना धन जरूरत का सामान खरीदने पर खर्च करेंगे. इससे लघु उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा. अब तक चौपट हो चुके लघु उद्योग चमकने लगेंगे. लघु उद्योगों की मांग से बड़े उद्योगों की भी चांदी हो जाएगी.
दरअसल सरकार जो 72000 रुपये की कम से कम आमदनी की बात कर रही है वो पैसा गरीबों को नहीं दिया जा रहा बल्कि बाज़ार में तरलता का प्रवाह करने की कोशिश है. दूसरे शब्दों में कहें तो इससे लिक्विडिटी की लहर दौड़ जाएगी. बाज़ार में इतना पैसा होगा कि कोई भी कारोबार चालू करो रुकेगा नहीं.
न्यूनतम वेतन में भी जबरदस्त उछाल आएगा. 12000 रुपये से कम आमदनी वाले गरीबों को तो फायदा होगा ही देश में जिसे भी कर्मचारी की ज़रूरत होगी वो कम से कम 15000-20000 वेतन देने पर मजबूर होगा. जाहिर बात है 12000 रुपये से कम पर काम करने से आदमी घर बैठना बेहतर समझेगा.
इसका नतीजा ये होगा कि देश में आम लोगों का जीवन बदल जाएगा. एक तरफ 12000 रुपये महीने की कम से कम आमदनी होने से कारोबार बढ़ेंगे दूसरी तरफ इससे ज्यादा कमाने वालों की आमदनी में भी सुधार होगा और ये पैसा सीधे बाज़ार को मजबूती देगा. एक सवाल ये भी हो सकता है कि इतना पैसा कहां से आएगा. भारत सरकार उद्योगों को जो रकम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से देती है उसके मुकाबले ये रकम काफी कम है लेकिन उद्योगों को गति देने में इसका कोई सानी नहीं होगा.
कुछ लोग मान सकते हैं कि ये सिर्फ चुनावी जुमला होगा लेकिन ऐसा नहीं है. जब पूंजीवाद आता है तो पूंजी का केन्द्रीयकरण होता है. पैसा अमीरों के पास जाने लगता है. उनकी संपत्ति बढ़ जाती है जबकि आम लोगों की गरीबी बढ़ती है. ऐसे में असमानता और उसके परिणाम स्वरूप पूंजीवाद के खतरे बढ़ जाते हैं. हिंसा और अपराधों में बढ़ोतरी होती है.
इस योजना से देश में आम लोगों और गरीबों का जीवन बदल जाएगा
असमानता को कम करने के लिए पूंजीवादी सरकारें एक ना एक तरीके से गरीबों तक पैसा पहुंचाती हैं. सड़क और पुल बनाने या रियल स्टेट जैसे कारोबार को बढ़ावा देने के लिए सरकारें नीति बनाती हैं जिनसे गरीबों को काम मिले. यूपीए सरकार मनरेगा योजना इसी नीयत से लाई थी. राहुल गांधी अगर ये योजना लाते हैं तो दुनिया के सामने मिसाल बनेगी. उद्योगों और कारोबारों को समाज में धन बढ़ने के कारण भारी फायदा होगा. माल की डिमांड बढ़ने के कारण दाम अच्छे मिलेंगे. जाहिर बात है जीडीपी में जबरदस्त उछाल आएगा. डिमांड बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी तो उद्योग और बढ़ेंगे.
कुल मिलाकर अब समय आ गया है कि सरकार इस नये रास्ते पर चले, पिछले तीन दशक की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का अनुभव अच्छा नहीं रहा. लघुउद्योंगों की तरक्की के कारण चीन हमसे बहुत आगे है. वहां भी लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा अर्थव्यवस्था को चमका रही है. भारत में अगर ये बदलाव आता है तो आम आदमी एजेंडे पर होगा और दुनिया के सामने ये नयी मिसाल होगी जिसमें गरीबों का भी भला होगा और अमीरों का भी.
जाहिर बात है राहुल गांधी यूं ही नहीं कह रहे कि यह योजना चरणबद्ध तरीके से चलाई जाएगी. 'यह बहुत ही प्रभावशाली और सोची समझी योजना है. हमने योजना पर कई अर्थशास्त्रियों से विचार विमर्श किया है.' राहुल गांधी ने कहा कि पूरा आकलन कर लिया गया है. सब कुछ तय कर लिया गया है. उन्होंने कहा कि इससे पांच करोड़ परिवार यानी 25 करोड़ लोगों को फायदा होगा. लेकिन फायदा 25 करोड़ लोगों तक ही नहीं रुकेगा.
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