वो कारण जो एयर इंडिया को सरकार का सिरदर्द बनाते हैं...
एयर इंडिया सरकार का सिर दर्द बनती जा रही है और सरकार जल्दी ही इसके लिए दूसरी सेल लगा सकती है क्योंकि अगर एयर इंडिया के लिए सही बिडर नहीं मिला तो सरकार को भारी नुकसान होगा. पर एयर इंडिया अगर नहीं बिकी तो होगा क्या?
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सरकार की एयर इंडिया को बेचने की सारी कोशिशें बर्बाद साबित हो रही हैं. किसी न किसी कारण से सरकार को एयर इंडिया का सही ग्राहक नहीं मिल पा रहा है. एयर इंडिया के 24 प्रतिशत शेयर सरकार अपने पास ही रखना चाहती थी और साथ ही साथ कोई भी बोली लगाने वाला व्यक्ति तीन सालों तक एयर इंडिया के साथ ही बंधा रहता. कर्ज के तले दबी एयर इंडिया के कोई ग्राहक न मिलने के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन अगर इसे बेचने में सरकार नाकाम रही तो क्या होगा?
दरअसल, एयर इंडिया सरकार का सिर दर्द बनती जा रही है और सरकार जल्दी ही इसके लिए दूसरी सेल लगा सकती है क्योंकि अगर एयर इंडिया के लिए सही बिडर नहीं मिला तो सरकार को भारी नुकसान होगा. पर एयर इंडिया अगर नहीं बिकी तो होगा क्या?
1. घाटा और कर्ज बढ़ेगा..
जैसा की सभी को पता है कि एयर इंडिया की अभी भयंकर घाटे में चल रही है. ऐसा माना जा रहा है कि 2019-20 तक इसका घाटा 1.5 से 2 बिलियन डॉलर के बीच हो जाएगा और ये पूरा पैसा टैक्स देने वाले लोगों का होगा. 2012 से अभी तक इस एयरलाइन को फंड करने में 4 बिलियन डॉलर पहले ही लग चुके हैं. ऐसे में यकीनन सरकार के लिए और पैसे इस एयरलाइन पर खर्च करना सही नहीं होगा. अगर ये नहीं बिकी तो हालात सिर्फ इससे ज्यादा खराब ही होंगे.
लगातार कई सालों से घाटे में चल रही इस सरकारी एयरलाइन पर मार्च 2017 तक 33392 करोड़ का कर्ज था ये संख्या मार्च 2018 में 50000 करोड़ के पार हो गई थी. यकीनन कर्ज और नुकसान दोनों ही एयर इंडिया और सरकार को डुबाने के लिए काफी हैं.
2. मार्केट में स्थिती खराब हो जाएगी..
एयर इंडिया का प्राइवेटाइजेशन अगर नहीं हुआ तो मार्केट की स्थिति खराब हो जाएगी. वैसे ही एयर इंडिया का सिर्फ 13 प्रतिशत मार्केट शेयर है और ऐसा माना जा रहा है कि एयरलाइन के हालात नहीं सुधरे तो ये और 10% हो जाएगा. एयर इंडिया को 120-125 एयरक्राफ्ट की अभी जरूरत है जो डोमेस्टिक मार्केट में लगाए जाएंगे. इसके लिए भी एयरलाइन के पास पूरे फंड नहीं हैं या यूं कहें कि सरकार के पास पूरे फंड नहीं हैं. ऐसे में यकीनन स्थिति और बुरी हो जाएगी.
सिर्फ डोमेस्टिक मार्केट की ही नहीं अगर इंटरनेशन मार्केट की भी बात करें तो एयर इंडिया अपनी जगह खो रही है. इंडिगो और विस्तारा पहले ही बड़े इंटरनेशनल एयरक्राफ्ट लाने की तैयारी कर चुके हैं, स्पाइजेट की तरफ से भी प्लानिंग चल रही है, लेकिन अगर एयर इंडिया ने जल्दी ही अपने विस्तार के बारे में नहीं सोचा तो यकीनन समस्या और बढ़ेगी और सिर्फ डोमेस्टिक मार्केट ही नहीं बल्कि ग्लोबल मार्केट में भी सरकार को नुकसान झेलना पड़ेगा.
3. इंटरनेशन रूट में दिक्कत..
फिलहाल एयर इंडिया भारत का सबसे बड़ा इंटरनेशनल रूट वाली एयरलाइन है. अगर ये एयरलाइन प्रेशर में आएगी तो यकीनन भारतीय मार्केट में विदेशी एयरलाइन्स के आने की संभावनाएं बढ़ेंगी. ज्यादातर इंटरनेशनल एयरलाइन्स में द्विपक्षीय पॉलिसी का ध्यान रखा जाता है. जो प्रेशर के चलते एयर इंडिया निभा नहीं पाएगी. ऐसा माना जा सकता है कि इस प्रेशर को कम करने के लिए सरकार अपनी पॉलिसी में थोड़े बदलाव करे जो टूरिज्म के साथ-साथ एयर इंडिया के भविष्य के लिए भी बेहतर काम करे, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो एयर इंडिया की उड़ानें कम होती जाएंगी और ये समस्या सीधे सरकार को झेलनी होगी.
4. एयर इंडिया के साथ-साथ सह कंपनियों को भी नुकसान..
एयर इंडिया एक छतरी है तो उसके अंतरगत पांच अन्य सब्सीडरी कंपनियां भी हैं. इनमें से एक है एयर इंडिया एक्सप्रेस. एयर इंडिया एक्सप्रेस ने पिछले कुछ समय में लो कॉस्ट टिकट के जरिए अच्छा नाम कमाया है, लेकिन अगर देखा जाए तो एयर एशिया इंडिया, गो एयर जैसी लो कॉस्ट एयरलाइन्स से सीधी टक्कर भी मिली है. बाकी एयर लाइन्स नए विमान ला रही हैं और कम कीमत में डोमेस्टिक और इंटरनेशनल फ्लाइट्स की सुविधा दे रही हैं ऐसे में एयर इंडिया के साथ-साथ उसकी सह कंपनियां भी जाएंगी.
ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी को ही ले लीजिए. एयर इंडिया के लिए अगर सरकार ग्राउंड हैंडलिंग पॉलिसी में बदलाव कर भी देती है तो भी एयर इंडिया एयर ट्रांसपोर्ट सर्विस लिमिटेड (सह कंपनी) को कितना फायदा होगा. हाल ही में एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने 37 एयरपोर्ट्स में प्रोसेस को थोड़ा हल्का किया है जिससे एयर इंडिया को फायदा हो सके, लेकिन सरकार और एयर पोर्ट अथॉरिटी के हाथ में सिर्फ पॉलिसी बदलने की सुविधा है. बाकी सुविधाएं नहीं. उन्हें ठीक करने के लिए प्राइवेटाइजेशन जरूरी है.
5. कर्मचारियों का क्या..
एयर इंडिया में कम से कम 20 हज़ार लोग काम करते हैं. अगर जल्दी ही उनकी स्थिती में बदलाव नहीं किए गए तो यकीनन न सिर्फ ये स्टाफ अपने लिए बाकी विकल्प खोजेगा बल्कि इस स्टाफ की सैलरी देने के लिए भी सरकार को मशक्कत करनी पड़ेगी. स्टाफ को देखते हुए भी एयर इंडिया का प्राइवेट होना बहुत जरूरी है.
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