अभी तो पार्टी शुरू हुई थी...
2014 के बाद शेयर बाजार में आई तेजी ने भारत में वित्तीय निवेश की तस्वीर को ही बदल दिया है. वहीं रीयर एस्टेट और सोने का आकर्षण कम हुआ है.
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शेयर बाजार अमीर या आभिजात्य तो हो सकता है लेकिन अर्थव्यवस्था का मूड बनाने या बिगाड़ने में यह सबसे आगे है. खासतौर पर एक ऐसी सरकार जो अच्छी खबरों में खेलती हो वह इस तथ्य को अनदेखा नहीं कर सकती कि उसके आखिरी बजट के बाद शेयर बाजार बुरी तरह घबराया हुआ है. यह शेयर बाजार ही है जो पिछले चार साल से बल्लियों उछल कर भारतीय अर्थव्यवस्था में तरक्की का ऐलान कर रहा था.
बजट के बाद बाजार के गिरने की वजहों में ग्लोबल कारकों का भी अहम योगदान है, लेकिन बड़ी चिंता घरेलू कारकों की है, जो बाजार को अपेक्षा से अधिक समय तक कमजोर बनाए रख सकते हैं. बजट में घोषित लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स और ऊंचे घाटे ने शेयर बाजार को बहुत निराश किया है. आर्थिक मंदी और मुद्रास्फीति में कमी के बीच कमजोर और अस्थिर शेयर बाजार बहुत सारी छोटी-बड़ी आर्थिक जटिलताओं की वजह बन सकता है. बड़े पैमाने पर आई गिरावट के साथ अब शेयर बाजार में दो तरह के लोग हैं. एक हैं सतर्क और सशंकित, जो उच्च मुद्रास्फीति, तेल की बढ़ती कीमतें, जुड़वा घाटे (चालू खाता और राजकोषीय घाटा) और कम मांग को देखते हुए मध्यम अवधि में बाजार में मंदी व अस्थिरता देख रहे हैं. रिजर्व बैंक ने आज जारी मौद्रिक नीति में महंगाई बढ़ने और ग्रोथ गिरने को लेकर चेताया है. भारत में भी ब्याज दरें बढ़ने की संभावना है.
इसके विपरीत दूसरी ओर हैं कुछ उत्साही निवेशक जो यह मानते हैं कि बाजार में गिरावट जरुरी थी अब फिर से खरीददारी होगी. ध्यान रहे कि 2018 के बजट से पहले बाजार में अधिकांश लोग इसके बढ़ते जाने पर ही दांव लगा रहे थे.
जानना जरुरी है कि अगर बाजार अपेक्षा से अधिक समय तक अस्थिर रहता है या फिर इसमें गिरावट जारी रहती है तो क्या हो सकता है
बड़ी मुश्किल से बना था संयोग
2014 के बाद शेयर बाजार में आई तेजी ने भारत में वित्तीय निवेश की तस्वीर को ही बदल दिया है. शेयर बाजार मध्यई वर्ग की बचत के सबसे बड़े आकर्षण बन गए. अचल संपत्ति और सोने से निराश छोटे शहरों के निवेश म्यूचुअल फंड पर बैठ कर शेयर बाजार में पहुंच रहा है. 2017 के अंत तक म्युेचुल फंड का बाजार में निवेश (एसेट) 22 लाख करोड़ तक पहुंच गया. सिर्फ 2017 में ही म्यूचुअल फंड ने 1.69 लाख करोड़ जुटाये. इस निवेश ने बाजार में विदेशी निवेशकों के दबदबे को संतुलित करने में मदद की है. फंड मैनेजर्स की चिंता जायज है. अगर बाजार इसी तरह गिरता रहा तो म्यूचुअल फंड निवेश घटकर आधा हो सकता है कम रिटर्न और तगड़े टैक्स के चलते यह भी हो सकता है कि निवेशक रीयल एस्टेट और सोने में निवेश की लौट जाएं.
आईपीओ उत्सलव पर खतरा
लगातार तेजी के चलते 2017 में कंपनियों के आईपीओ (बाजारे पूंजी जुटाने के प्रस्ताव) एक दशक का उच्चतम स्तर पर पहुंच गए. अलग-अलग क्षेत्रों की 36 कंपनियों ने सिर्फ 2017 में 67,141 करोड़ रुपए जमा किए. पिचले 10 सालों में यह दूसरा सबसे बड़ा संग्रह था. इस वित्त वर्ष की अगली तिमाही में करीब 48 कंपनियां अपने आईपीओ लाने वाली हैं, जिनसे करीब 445 करोड़ रुपए जुटाये जाने हैं लेकिन जिस तरह से शेयर बाजार लगातार गिर रहा है वह आईपीओ की पार्टी में खलल डाल सकता है.
पीएसयू सेल
टैक्सू लगाकर सरकार ने भले ही शेयर बाजार के आकर्षण को कम कर दिया हो, लेकिन वित्त मंत्रालय अधिक लंबे समय तक बाजार में गिरावट जारी नहीं रहने दे सकता केन्द्र सरकार ने 2017-18 में सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 72,500 करोड़ रुपए (अब तक का सबसे अधिक) जुटाये. सरकार ने 2018-19 के लिए विनिवेश का लक्ष्य 80,000 करोड़ रुपए का रखा है. शेयर बाजार में तेजी के बिना यह नामुमकिन है.
विदेशी मेहमान
भारतीय शेयर बाजार विदेशी निवेशकों को देखकर थिरकता है इस गिरावट से ठीक पहले बाजार उन्हों ने बाजार को नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया. दुनिया में मंदी समाप्ति होने की खबर दरअसल भारत और दुनिया में इक्विटी बाजार के लिए बुरी खबर है. दुनिया के बैंकों ने बाजार में सस्ती पूंजी का जो पाइप खोल रखा था, उसे बंद करने का वक्त. आ गया है. ब्याज दरें बढ़ने लगी हैं. सोमवार को अमेरिका व ग्लोबल बाजारों में भारी गिरावट की यही वजह है. विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजार में धमाचौकड़ी सस्ती पूंजी पर आधारित है, लागत बढ़ने के डर से विदेशी मेहमान रुठने लगे हैं.
राजनीतिक मौसम
अब आखिरी, लेकिन महत्वपूर्ण बात. भारत में चुनावों का सबसे व्यस्त कैलेंडर खुलने वाला है गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों और हाल ही में राजस्थान और पश्चिम बंगाल में हुए उपचुनावों के बाद बाजार के खिलाड़ी अब सियासी सरगर्मी को लेकर सतर्क हैं. सियासी तापमान उन्हें सशंकित रखेगा और आने वाले चुनाव बाजार के लिए सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम होंगे.
बाजार के पास फिलहाल अच्छी खबरों की कमी हो गई लगती है. तकनीकी तौर यह मंदी की गिरफ्त में नहीं है लेकिन अस्थिरता अपने पंजे जरूर गड़ाने लगी है. छोटी अवधि में बाजार में निवेश करने वालों के लिए सतर्क रहने का वक्ते है अलबत्ता अगर लंबे वक्त के लिए निवेश किया है तो नुकसान के खतरे कम हैं.
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