सैरिडॉन बैन: किसी दवा के फायदे-नुकसान पर हमारी नीति सिरदर्द से भरी है
सिरदर्द की दवा सेरिडॉन पर लगे बैन ने एक बड़ी सरकारी कमजोरी को सामने ला दिया है. विभिन्न कैमिकल कंपोजिशन वाली दवाओं के निर्माण को लेकर सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है. ऐसे में कई कंपनियां साइड-इफेक्ट वाली दवाएं लांच कर दे रही हैं.
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सरकार की नाक के नीचे कंपनियों ने बहुत सी ऐसी दवाएं बना डाली हैं, जिसमें अलग-अलग कैमिकल कंपोजिशन (FDC या fix dose combination) का इस्तेमाल हुआ है. परेशानी यह है कि इन दवाओं में से कई पर मरीज के शरीर को नुकसान पहुंचाने का अंदेशा है. इसी खतरे को भांपकर मोदी सरकार ने 328 दवाओं को पिछले दिनों बैन किया. इसी में सेरिडॉन शामिल है. लेकिन अब सिरदर्द की इस दवा से नई माथापच्ची शुरू हो गई है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है, और सरकार से पूछा जा रहा है कि उसकी ऐसी दवाओं के बारे में नीति क्या है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने सेरिडॉन के अलावा दो और दवाएं से बैन हटा दिया है.
डोनाल्ड ट्रंप ने पहले से ही अवैध दवाएं बनाने वाले 21 देशों की लिस्ट में भारत को रखा हुआ है.
सेरिडॉन से हटा बैन
हाल ही में केंद्र सरकार ने 328 एफडीसी दवाओं पर बैन लगाया था और अब सुप्रीम कोर्ट ने इनमें से तीन दवाओं पर से बैन हटा दिया है. इन तीन दवाओं में सेरिडॉन, प्रिट्रॉन और डार्ट हैं. इस मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक नोटिस भी जारी कर दिया है और 1988 से पहले बनी एफडीसी दवाओं पर बैन लगाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जवाब मांगा है. इन 328 दवाओं को इसलिए बैन किया गया था क्योंकि इनसे लोगों की सेहत को नुकसान होने की आशंका जताई गई थी. वहीं दूसरी ओर, इन एफडीसी दवाओं को बिना केंद्र सरकार की अनुमति के सिर्फ राज्य सरकार से इजाजत लेकर बनाया जा रहा था. आपको बताते चलें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले से ही अवैध दवाएं बनाने वाले 21 देशों की लिस्ट में भारत को रखा हुआ है, जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान और म्यांमार भी शामिल हैं.
पहले समझिए एफडीसी को
एफडीसी यानी फिक्स डोज़ कॉम्बिनेशन वाली दवाएं वह होती हैं, जिन्हें दो या दो से अधिक दवाओं या यूं कहें कि तत्वों (इनग्रेडिएंट्स) को मिलाकर बनाया जाता है. इन दवाओं को बनाने का मकसद सिर्फ यही था कि मरीजों पर दवाइयों के बोझ को कम किया जा सके. कई बार दो अलग-अलग इनग्रेडिएंट्स वाली दवाओं को अलग-अलग अनुपात में मरीज को देना होता है, एफडीसी दवाएं ऐसे मामलों में खूब इस्तेमाल की जाती हैं. एफडीसी दवाओं की वजह से मरीजों पर दवा का बोझ तो कम होता ही है, साथ ही दवाओं पर होने वाला खर्च भी कम होता है.
गंभीर हो सकते हैं नतीजे
यह पाया गया है बहुत सी कंपनियां ऐसी दवाओं को जोड़कर भी एफडीसी दवाएं बना रही हैं, जो आपस में मिलने के बाद स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती हैं. एफडीसी दवाओं का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि अगर इससे किसी मरीज को रिएक्शन होता है तो यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि किस तत्व की वजह से वह रिएक्शन हुआ है. कई बार एक बीमारी के लिए एफडीसी देने से दूसरी दिक्कत बढ़ सकती है. जैसे अगर किसी को पेट दर्द है और उसे ऐसी एफडीसी दवा दे दी जाए, जिसमें दर्द के साथ-साथ बुखार की भी दवा हो तो दिक्कत हो सकती है. अगर लगातार ऐसा किया जाता है तो दर्द तो ठीक होगा, लेकिन बुखार की जो दवा शरीर में जाएगी, उसके खिलाफ शरीर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेगा. ऐसी स्थिति में बाद में बुखार को वह दवा शख्स पर असर नहीं करेगी.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के डॉ. केके अग्रवाल के अनुसार कंपनियों को केंद्र सरकार की तरफ से एक दवा बनाने की इजाजत मिलती है, लेकिन वह अन्य दवाएं मिलाकर एक नई दवा बना लेती हैं और राज्य सरकार से लाइसेंस भी ले लेती हैं. 328 दवाओं पर बैन लगाने का फैसला ऐसी ही दवाएं बनाने का नतीजा है, जिसके लिए केंद्र सरकार की इजाजत नहीं ली गई थी. इस तरीके से बनाई गई नई दवा की कीमत भी कम होती है और एक ही दवा कई रोगों के लिए इस्तेमाल होती है, जिससे लोग भी इन्हें खूब पसंद करते हैं, लेकिन कुछ दवाइयों के बुरे प्रभाव के बारे में वह नहीं जानते. कंपनियां ऐसी बहुत सी दवाओं को ओवर द काउंटर बेचती हैं. आपको बता दें कि ओवर द काउंटर की श्रेणी में आने वाली दवाओं के लिए डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन की जरूरत नहीं होती है. सेरिडॉन भी इन्हीं में से एक है, जिसे लोग मेडिकल स्टोर से खरीदकर खा लिया करते थे, लेकिन ड्रग कंट्रोलर को इस दवा से सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने के संकेत मिले, जिसके चलते उन्होंने इसे बैन कर दिया.
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