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Updated: 18 नवम्बर, 2016 01:46 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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नोटबंदी के 9 दिन बाद भी बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें लगी हुई हैं. लोग पैसे के लिए मारामारी कर रहे हैं. कैश पाने के लिए ऐसा मंजर शायद पहले कभी नहीं देखा गया है. देश में 500 व 1000 के नोटों पर पाबंदी लगने के बाद ये माना जा रहा है कि भारत में नकदी रहित व्यवस्था में बढ़ोतरी होगी. जिस तरह से कैश पाने के लिए भीड़ देखी जा रही है, उससे डेबिट और क्रेडिट कार्ड को प्लास्टिक मनी के तौर पर इस्तेमाल करने की कवायद बढ़ गयी है. भारत सरकार भी कैशलेस ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दे रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मई, 2016 में मन की बात कार्यक्रम के दौरान भारत को कैशलेस सोसायटी बनाने की अपनी मंशा जताई थी.

अब सवाल ये उठता है कि क्या कैशलेस इंडिया का आइडिया यहां पर संभव हो सकता है? क्या हम इस तरह की पद्धति के लिए तैयार हैं? अगर हम कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो ये अभी की व्यवस्था में मुश्किल प्रतीत होता है.

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कैशलेस सोसाइटी बनने के लिए कितना तैयार है भारत?

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ताजा डाटा के अनुसार भारत के बैंको ने इस साल जुलाई महीने तक 2.59 करोड़ क्रेडिट कार्ड जारी किये हैं, वहीं डेबिट कार्ड की संख्या 69.72 करोड़ है. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ये संख्या भारत में काफी है कैशलेस सोसाइटी की ओर कदम बढ़ने के लिए.

डेबिट और क्रेडिट कार्ड का प्रयोग हम कई तरह के ट्रांजेक्शन के लिए करते हैं जैसे ऑनलाइन भुगतान या खरीदारी के लिए, एटीएम से पैसा निकालने के लिए और व्यापारी प्रतिष्ठानों के पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) टर्मिनल में कार्ड स्वाइप करके खरीद किये गए सामानों का बिल भुगतान करने के लिए. भारत में एटीएम की संख्या करीब 2 लाख से अधिक है. पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) टर्मिनलों की संख्या करीब 14.4 लाख है. क्या भारत में ये संख्या काफी है? लगता तो यही है कि सवा सौ करोड़ भारतीयों के लिए कैशलेस मोड में जाने के लिए ये संख्या काफी नहीं है.

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आपको ये भी बताना जरुरी है कि ये आंकड़े पूरे भारत को प्रतिबिंबित नहीं कर रहे हैं क्योंकि कार्डों का ज्यादातर प्रयोग शहरी क्षेत्रों में ही होता है और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कई लोगों के पास कई-कई डेबिट और क्रेडिट कार्ड होते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में इनका प्रयोग काफी कम है. साथ ही साथ इनसे जुड़े टेक्नोलॉजी से ग्रामीण क्षेत्र के लोग अभी भी अनभिज्ञ हैं. साफ है की भारत के लिए सफर काफी लंबा हैं जब लोग कैशलेस सोसाइटी की कल्पना कर सकें.

अगर हम 8 नवम्बर डिमॉनेटाइजेशन के बाद किये गए डिजिटल ट्रांजेक्शन की बात करते हैं तो डेबिट और क्रेडिट कार्ड के प्रयोग में बढ़ोतरी हुई हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार 500 रूपये से कम रकम के ट्रांजेक्शन दुगुने हुए हैं क्योंकि छोटी रकम बैंक और एटीएम से कम मिल रही है या जल्दी खत्म हो जा रही है. इस समय उपभोक्ता अपने कार्डों का प्रयोग दैनिक उपयोगी चीजों के लिए ही ज्यादातर कर रहे हैं. ये तात्कालिक स्थिति है, आने वाला समय ही बताएगा की भारत, कैशलेस मोड का विस्तार किस तरह से करता है.

जहां एक ओर लोग जरूरत की वस्तुओं की खरीदारी के लिए नकदी हासिल करने के लिए बैंकों और एटीएम के आगे लंबी-लंबी कतारों में जूझ रहे हैं वहीं दूसरी ओर मोबाइल वॉलेट कंपनियों के बल्ले बल्ले जरूर हो रहे हैं. पेटीएम के अनुसार उनके कारोबार में 700% की वृद्धि दर्ज की गई और मोबिकविक का कहना हैं की उनके लेन-देन में 18 गुना इजाफा हुआ है. अन्य कंपनी फ्रीचार्ज आदि का वॉल्यूम भी काफी बढ़ा है.

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स्वीडन, बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा और ब्रिटेन कैशलेस देश बनने की लाइन में शुमार हैं. एक अनुमान के अनुसार 2016 के अंत तक स्वीडन पूरी तरह से कैशेलस देश बन जायेगा. यहां पर 96 फीसदी लोगों के पास बैंक डेबिट कार्ड हैं और सिर्फ 3 फीसदी लेन-देन कैश में होते हैं. वर्तमान में भारत में 86 फीसदी से ज्यादा लेन-देन कैश में होता है. अब देखना ये है कि आने वाले वर्षो में भारत इन देशों में शुमार हो पाता है कि नहीं. फिलहाल भारत के लिए ये चुनौती काफी कठिन है.

लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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