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Updated: 21 दिसम्बर, 2021 04:29 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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दुनिया बन चुकी थी. इंसान जो कि नग्न रहता था, पत्थर के औजार बनाकर शिकार कर रहा था. एक दिन उसने उन्हीं पत्थरों को रगड़कर आग जलाना सीख लिया. तब तक पहिया भी आ गया क्रांति हुई. इंसान सभ्य हुआ. अब वो कच्चा नहीं पका हुआ भोजन खाता था. ये है Anthropology वो भी NutShell में. विकास के इस कई सौ हज़ार किलोमीटर के सफर में इसके बाद जो है, आज हमारे सामने है. साथ ही हमारे सामने हैं तरह तरह के भोजन. चाहे भारत के अलग अलग राज्य हों या विश्व का कोई भी कोना. कहीं भी इंसान जाए तो उसे उसे एक से एक डिश मिलेगी. कहीं इन डिशों को खोजा गया तो कहीं इनके स्वरूप को बदला गया उद्देश्य साफ था नए का निर्माण. लेकिन तब क्या जब नए के चक्कर में कुछ का कुछ हो जाए. ऐसा कुछ जो सभ्य समाज के मुंह से ब्लंडर कहलाए. बात ब्लंडर की चली है तो क्या याद है आपको अभी कुछ दिनों पहले ही किसी ने कुछ नए के चक्कर में Fanta से Maggi बनाई थी. मित्राें मैगी सहिष्णुता की पराकाष्ठा है. उसमें सब्जी से लेकर चिकन तक और करी पत्ते से लेकर गरम मसाले और तेज पत्ते तक कुछ भी डाल दीजिए कुछ न कुछ तो बन ही जाएगा. इसलिए उसे बर्दाश्त कर लिया गया.

फैंटा से मैगी के बाद मिरिंडा से गोलगप्पा, अब दुनिया ख़त्म हो जाए तो ही ठीक है! मिरिंडा वाले गोल गप्पों ने बता दिया है कि बस कुछ दिनों की बात है क़यामत बस करीब ही है। धरती पर इंसान न ही रहे यही बेहतर है

लेकिन अब क्योंकि बर्दाश्त की भी सीमा होती है. इसलिए कोई क्या ही देखे और जब कोई Mirinda से न केवल गोल गप्पे का पानी बनाए बल्कि उसे बेचते हुए दूसरों को भी खिलाए तो एक बार को महसूस यही होता है कि शायद अब इस दुनिया में इंसानियत तो बची ही नहीं है.बस कुछ दिन बचे हैं, फिर दुनिया खत्म हो जाएगी. गोलगप्पे या कोई भी ऐसी हर दिल अजीज चीज की इस बदहाली पर हमें अपने को इंसान कहने पर शर्म आनी चाहिए और साथ ही ये भी मान लेना चाहिए कि एवोल्यूशन गलत हुआ. हम बंदर ही ठीक थे. न आग जलाते, न खाना पकाते, न ही गोलगप्पा खोजा जाता.

उपरोक्त बातें ऊल जलूल नहीं हैं इनके पीछे माकूल वजहें हैं. असल में मैगी के प्रति बरती गई हमारी लापरवाही का नतीजा गोलगप्पे और उसके पानी को भुगतना पड़ा है. असल में अब तक हम यही जानते थे कि गोलगप्पे का पानी सिर्फ पानी से बनता है और ये या तो अलग अलग फ्लेवर लिए या तोखट्टा होता है या फिर मीठा. लेकिन कहीं कोई Innovative और Creative कहकर हमारे सदियों पुराने गोल गप्पे के साथ मजाक करे और उसमें कोल्ड ड्रिंक मिलाकर परोस दे तो भावना तो आहत होगी ही साथ ही जो गुस्सा आएगा सो अलग.

ये अनहोनी हुई है और कहीं नहीं बल्कि राजस्थान के जयपुर में हुई है तो आदमी सिर से लेकर सीने तक कुछ भी पीटने को पूरी तरह से स्वतंत्र है. बता दें कि जयपुर में एक स्ट्रीट वेंडर ने इस अनहोनी को सार्थक बनाया और गोलगप्पे को खट्टे मीठे पानी की जगह Mirinda में डुबाकर परोस दिया है. गोलगप्पे के साथ इस तरह का जो मजाक हुआ है उसपर इंटरनेट पर एक नई जंग छिड़ गई है. एक पक्ष, होता है. चलता है के साथ है. जबकि दूसरे से त्योरियां चढ़ा ली हैं.

 
 
 
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चूंकि दौर हर दूसरी चीज को वायरल करने वाला है. मिरिंडा वाले गोल गप्पे का भी वीडियो वायरल है. पूरे सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रहे इस वीडियो में देखा जा सकता है कि ग्राहक को गोलगप्पा बेचने वाला वेंडर पहले गोलगप्पे को मिरिंडा में डिप करता है फिर उसे परोस देता है. दिलचस्प ये कि वो फ़ूड ब्लॉगर जिसने इस हैरतअंगेज घटना से दुनिया को रू-ब-रू कराया वो भी गोलगप्पे की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक पाया और यही सारे बवाल की जड़ है. लोग बस इसी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे.

दरअसल इंस्टाग्राम पर एक Chatore Brothers नाम का एकाउंट है जो अपने को फ़ूड ब्लॉगर कहता है. ये महाशय जयपुर पहुंचे थे जहां इन्होंने सड़क किनारे गोल गप्पा खाया. गोल गप्पे का पानी, पानी नहीं मिरिंडा था. फ़ूड ब्लॉगर ने वीडियो के साथ जो कैप्शन लिखा है उसके अनुसार मिरिंडा गोलगप्पे सेक्सी थे, मीठे-मीठे हो गए थे काफी. अब बात क्योंकि गोल गप्पे की है तो आप खुद बताइए क्या कोई इस मजाक को हल्के में लेगा? सच में हालात बिल्कुल युद्ध सरीखे हैं.

इस मिरिंडा वाले गोलगप्पे के मद्देनजर जो सबसे दिलचस्प या ये कहें कि मजेदार बात है. वो ये कि फूड ब्लॉगर के वीडियो को देखा तो लाखों लोगों ने है. मगर कोई भी ऐसा नहीं था जिसने इस पहल की तारीफ की हो. मामले पर आलोचना ही हो रही है और देखा जाए तो ये सही भी है.

बात बहुत सीधी और एकदम साफ है. कुछ चीजें हैं जो हमारी आत्मा को तृप्त करती हैं. अब चाहे वो मैगी हो या फिर गोलगप्पा ये ऐसी ही चीजें हैं. कोई भी समझदार आदमी इनके स्वरूप के साथ हुए इस तरह के मजाक को शायद ही बर्दाश्त कर पाए. सवाल ये है कि कुछ नए के नामपर पैसा कमाने का ऐसा भी क्या मोह कि किसी चीज के साथ ऐसा बर्ताव कर दिया जाए जो हमारी सोच से, हमारी कल्पना से परे हो.

क्या एक बार भी उस आदमी के हाथ न कांपे होंगे जिसने गोलगप्पे के पानी को मिरिंडा मय करने का दुस्साहस किया? अवश्य कांपे होंगे लेकिन बात फिर वही है Innovation और Creativity. साथ ही कम समय में ढेर सारा पैसा! कहने बताने को इस मुद्दे पर तमाम बातें हैं लेकिन उन बातों को एक बार के लिए साइड भी कर दिया जाए तो कहा यही जाएगा कि अगर Fanta से Maggi बनाना अपराध है तो गोलगप्पे के पानी को मिरिंडा मय करना उससे भी कहीं बड़ा अपराध जिसकी बक्शीश न तो जिंदगी में है और न ही मरने के बाद.

इंसान बंदर से विकसित होकर इंसान इसलिए नहीं बना था कि वो एक के बाद ऐसे गुनाह करे जिनकी माफी न हो. याद रखिए अब चाहे वो फैंटा वाली मैगी हो या फिर मिरिंडा वाला गोलगप्पे का पानी इंसानियत का तकाजा यही है कि एक सुर में इसका विरोध हो ताकि कोई आगे ऐसा करने से पहले दस बीस नहीं सौ दफे सोचे.

वैसे इंसान को सोचना चाहिए नहीं तो जंगल में नीम के डंडे पर पत्थर से बनाया भाला लेकर दौड़ने वाला इंसान क्या ही बुरा था. कम से कम वो रूटीन चीज फॉलो कर रहा था चाहता तो वो भी आसमान में उड़ती चिड़िया को भाला फेंक के ढेर कर सकता था लेकिन उसने विवेक और सूझ बूझ का इस्तेमाल किया और धनुष बाण बनाया. गोल गप्पे के पानी और धनुष बाण में कोई समानता नहीं है लेकिन विवेक में है. गोलगप्पे के पानी को मिरिंडा से बनाने वाला दुकानदार कम से कम अपने विवेक का तो इस्तेमाल कर ही सकता था. यूं भी इसमें कोई बुराई नहीं है.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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