Amrita Pritam Birthday: 'लिखन्तुओं' तुम्हारी बदौलत हर बर्थडे अमृता की आत्मा बेचैन रहती है
Amrita Pritam Birthday : लव स्टोरी के नाम पर वो किस्से जो न तो अमृता (Amrita Pritam ) के थे. न साहिर (Sahir Ludhianvi) के और न इमरोज़ (Imroz) के. वो आज सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि सोशल मीडिया (Social Media ) है और सोशल मीडिया के दौर में लाइक, कमेंट, शेयर सबको पाना है सबको फेमस होना है.
-
Total Shares
'Fans' एक ऐसा शब्द जो आदमी खरीदता नहीं कमाता है. फैंस ये प्रजाति प्रायः उन्हीं के होते है जो कुछ बड़ा करता या कर के जाता है. इतिहास भरा पड़ा है फैंस के किस्सों से. पता चलता है कि नस काटने से लेकर खून भरी चिट्ठियां लिखने तक इतिहास में फैंस ऐसा बहुत कुछ कर के गए हैं जो नजीर बन गया है. बात फैंस की चल रही हो और हम मशहूर साहित्यकार 'अमृता प्रीतम' (Amrita Pritam) का जिक्र न करें तो तमाम अच्छी और बड़ी बातों पर अपने आप ही फुल स्टॉप लग जाता है. जिस लेवल के दुख अमृता के फैंस ने उन्हें फैन फॉलोइंग के नाम पर दिए हैं उससे तो भगवान ही बचाए. 31 अगस्त ये वो तारीख है जो अमृत प्रीतम के बर्थडे (Amrita Pritam Birthday) के रूप में मशहूर है. 31 अगस्त 1919 में पंजाब के गुजरांवाला में अमृता का जन्म हुआ था. अमृता प्रीतम भले ही अपने जीवन में 100 से ऊपर किताबें जिनका कई भाषाओं में अनुवाद हुआ हो, लिखकर अमर हो गई हों लेकिन सोशल मीडिया के इस दौर में कम ही लोग हैं जो उन्हें उनके काम से याद रखते हैं. ज्यादातर को अमृता प्रीतम इसलिए याद हैं क्यों कि साहिर लुध्यानवी (Sahir Ludhianvi)) और इमरोज़ (Imroz) की वो 'गर्ल फ्रेंड' थीं. सोशल मीडिया ऐसे 'लिखन्तुओं' से घिरा पड़ा है जो आज यानी 31 अगस्त यानी ठीक अमृता के बर्थडे के दिन 'साहिर-अमृता-इमरोज' के ऐसे-ऐसे किस्से पोस्ट कर रहे हैं जो पूर्ण रूप से काल्पनिक हैं और जिनका वास्तविकता से उतना ही संबंध है जितना कवि का अपनी कल्पना के मद्देनहर कहना'हिंदी-चीनी' भाई भाई.
सोशल मीडिया की बदौलत अमृता प्रीतम साहिर और इमरोज के बीच उलझ कर रह गयी हैं
नहीं मतलब ठीक है. एक दो बार चलता है. जब हम किसी से प्यार करते हैं,तो हमें पूरे हक़ है ये जानने का कि वो शख्स जिसे हम प्यार करते हैं. वो किससे या किस किस से प्यार करता है. लेकिन कम से कम हम इस बात का तो ख्याल रखें कि चाहे आदमी ज़िंदा हो या फिर वो परलोक सिधार चुका हो 'एक 'प्राइवेसी' नाम की भी चिड़िया होती है.'और ये साहिर अमृता और इमरोज़ इन तीनों के ही मामले में भी लागू होती है.
अच्छा चूंकि सोशल मीडिया का एक बड़ा तबका सहमत दद्दा और वआआह क्या कह गईं दीदी की थ्योरी पर अमल करता है इसलिए 'साहिर-अमृता-इमरोज़' की आड़ लेकर सोशल मीडिया के इंटीलेक्चुअल्स जो अति किये हैं कभी कभी उसे देखकर खीज होती है. जिस तरह अमृता के बर्थडे के दिन किस्सों की बाढ़ आती है और जैसे उसमें नैतिकता बहती है मैं पूरे विश्वास से इस बात को कह सकता हूं कि शायद स्वर्ग में बैठी अमृता भी सोचती हों कि भई भारत में जन्म लेकर कहीं कोई गलती तो नहीं कर दी?
बात साहिर-अमृता-इमरोज़ से जुड़े किस्सों की हुई है तो क्यों न हम भी एक किस्से के जरिये अंगुली कटाकर शहीदों में नाम लिखवा लें. तो किस्सा कुछ यूं है कि 'बर्थडे वाले दिन फेसबुक-ट्विटर पर इतनी चिरांद हुई है कि अमृता वहां स्वर्ग में नाराज़ बैठी हैं. तभी मूड अच्छा करने के लिए इमरोज़ आए. इमरोज़ केक के साथ साथ गोल गप्पे, पपड़ी और फ्राइड राइस लेकर आए. केक तक तो फिर भी ठीक था लेकिन इस अजीब से कॉम्बो ने अमृता को और नाराज़ कर दिया उन्होंने इमरोज़ को लगभग डांटते हुए कह दिया दूर करो इन गोल गप्पों और पपड़ी को मेरी नज़र से. और ये जो फ्राइड राइस है, ख़बरदार जो अब ये मेरे सामने आया.
इतने में साहिर पनीर चिल्ली और दही वड़े लेकर आए. अमृता का गुस्सा सातवें आसमान पर आ गया. अमृता ने उनसे भी साफ कह दिया फ़ौरन से पहले फेंक दो इसे कूड़ेदान में और ख़ुद भी उसी में कूद जाओ. भला ये भी कोई कॉम्बिनेशन है? पनीर चिल्ली के साथ दही वड़ा. हे भगवान! मेरी ही किस्मत में ये दोनों ही लिखे थे. अब खाना किसी ने क्या ही खाया होगा बर्थडे खराब हुआ तो अलग.'
निस्संदेह साहिर-अमृता-इमरोज़ से जुड़ी ये एक बहुत वाहियात कल्पना है लेकिन यकीन करिये इससे कहीं ज्यादा वाहियात सोशल मीडिया का माहौल है. सोशल मीडिया पर ऐसे तमाम किस्से शेयर किए जा रहे हैं जिसे पढ़कर भले ही हमारा सूखे न सूखे यदि साहिर-अमृता-इमरोज़ होते तो निश्चित तौर पर उनका खून सूख जाता वो रोते और ज़ार ओ कतार रोते.
ये भी दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि सोशल मीडिया पर अपने स्वार्थ के लिए हमने अमृता की काबिलियत को स्वाहा कर दिया
देखिए साहब बात एकदम सीधी और क्लियर है. अमृता प्रीतम सिर्फ साहिर और इमरोज़ तक सीमित नहीं हैं. अमृता का कद इन छोटी मोटी चीजों से कहीं ज्यादा बड़ा है. वो हिंदी/ पंजाबी साहित्य में वही स्थान रखती है जो स्थान किसी बाग में बरगद का होता है. बता दें कि अमृता का काम कुछ ऐसा था जिसके चलते उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया. 1969 में पद्मश्री,1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ और 2004 में उन्हें पद्मविभूषण मिला. ऐसे में यदि हम अमृता की इन उपलब्धियों को नकार कर उन्हें साहिर और इमरोज़ तक सीमित कर दें तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के शब्दों में कहें तो - 'ये अच्छी बात नहीं है.'
अमृता ने अपनी रचनाओं के जरिये समाज को समझाया था कि सही फेमिनिज्म क्या होता है. न सिर्फ उन्होंने स्त्री मन को अपनी रचनाओं में उतारा बल्कि जिस तरह उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच बंटवारे के दर्द को अपनी रचनाओं में उकेरा वो अपने आप में कमाल है. साफ है कि हमें प्यार मुहब्बत, रूठने मनाने से इतर अमृता को इन अच्छी चीजों के लिए उन्हें याद करना चाहिए.
बहरहाल हम जानते हैं सोशल मीडिया की हकीकत. किसी को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला चाहे अमृता का 101 वां बर्थडे हो या फिर 150 वां जैसा सोशल मीडिया का रायता है और जिस तरह सबको काबिल बनते हुए अपने को बुद्धिजीवी घोषित करना है. आज जैसे लोग अमृता की अधूरी मुहब्बत का जिक्र कर रहे हैं काश वैसे ही चर्चा उनके काम पर होती लेकिन ये होगा नहीं। ऐसा क्यों ? क्योंकि दूसरों के फटे में टांग अड़ाना हमारा पुराना शौक है और क्यों कि बात सोशल मीडिया की है तो भइया लाइक कमेंट और शेयर भी ऐसा ही कंटेंट देता है.
खैर अपनी रचनाओं से पूरी दुनिया को अपना दीवाना बनाने वाली अमृता अच्छा है हमारे बीच नहीं हैं. हमें कहते हुए दुःख हो रहा है लेकिन सत्य यही है कि अपनी ऐसी दुर्गति वो खुद न देख पातीं. जाते जाते बस इतना ही हैप्पी बर्थ डे अमृता. हो सके तो सोशल मीडिया के इन कॉमरेड, इन लिखन्तुओं को माफ़ कीजिये. ये नादान हैं. और नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं. क्यों कर रहे हैं. किसके लिए कर रहे हैं.
ये भी पढ़ें -
Firaq Gorakhpuri बन रघुपति सहाय ने बताया कि सेकुलरिज्म-भाईचारा है क्या?
आपकी राय