मोटापा भी नेमत थी, लेकिन फिटनेस के भूत ने इसे भी न छोड़ा...
बिहार कैडर के आईपीएस हैं विवेक राज सिंह. उन्होंने अपने इंस्टा अकाउंट पर पहले और अबकी तस्वीरें साझा की हैं. विवेक साहब तो तस्वीर डाल के किनारे हो लिए लेकिन देश का वो आम आदमी जो खुद को हट्टा कट्टा और जिसे जमाना मोटा कहता है इन तस्वीरों को देखकर दुविधा में है. दुविधा क्यों है? इसका कारण अपने में दिलचस्प है.
-
Total Shares
समय समय की बात है जिस मोटापे को पहले इंसान के खाए पिए होने की पहचान थी अब उसे ही बीमारी मान लिया गया है. फिटनेस और ज़ीरो फिगर के नाम ले धड़ाधड़ जिम और फिटनेस सेंटर गली कूचों में खुल चुके है. बताइए अच्छा भला इंसान घर में ठूंस ठूंस कर खाता है फिर चर्बी गलाने जिम जाता है. आप भी सोच रहे होंगे कि आज मैं यह कौन राग बजा रहा हूं. अभी एक खबर पढ़ी एक कोई पुलिस के बड़े अधिकारी है विवेक राज सिंह भाई बिहार कैडर के आईपीएस है शायद. इन्होंने अपने इंस्टा अकाउंट पर अपनी तस्वीर शेयर की जिसमें उन्होंने अपने पहले और अब की तस्वीर डाली और यह बताया कि उन्होंने अपना वज़न लगभग सवा कुंटल से 43 किलो कम किया है. अच्छी बात है सर जी. जब तक यह खबर हमनें पढ़ी थी तब तक तो हमें सामान्य लगी. अब भाई वह बड़े हाकिम दूसरे पुलिस विभाग के, उन्हें रात दिन चोर पुलिस खेलना है. इस दौड़ भाग में इतना वज़न कम करना कौन बड़ी बात है?
बिहार कैडर के आईपीएस ने वजन काम कर देश के सभी मोटे लोगों को काम्प्लेक्स दे दिया है
अच्छा मान लिया कि आपने कम कर लिया तो भाई अपनी इस शौर्य गाथा को गाने की क्या ज़रूरत थी? खबर जब से पत्नी के सामने पड़ी है तब से इस खबर ने असामान्य रूप धारण कर लिया है. भाई साहब हमें घरवाले और सबसे ज्यादा धर्मपत्नी जी द्वारा हाथी, मोटका मूस मोटेलाल और न जाने क्या क्या उपाधि से नवाजा जा रहा है.
View this post on Instagram
बताइए फिटनेस के खेल क्रिकेट में अधिक वज़न के कारण कब इंजमामुल हक़, अर्जुन रणतुंगा और डेविड बून को कोई दिक्कत हुई. वो तो अपने इंजी भाई नल्ली निहारी के शौकीन थे, तो कभी कभार थोड़ा डकार मारने पिच पर रुक क्या जाते विरोधी टीम बिना खेल भावना का प्रदर्शन किए उन्हें रन आउट करवा देती थी. ख़ैर जेंटलमैन के खेल में यह गलत बात थी लेकिन क्रिकेट बाल की जान बचाने के लिए यह सब करना ही पड़ता था.
बचपन में जब क्रिकेट में मैं बैटिंग करता तो लोगबाग भले मेरे शॉट की तारीफ़ न करे लेकिन मेरी चाल ढाल पर रणतुंगा बुलाते थे. वही रणतुंगा जो 1996 में हम सब के नाक के नीचे से क्रिकेट का वर्ल्डकप श्रीलंका पहुंचा दिए और बेचारे दुबले पतले कांबली रोते रहे. जाने दीजिए क्या करिएगा.
फिल्मों में भी देखिए अपने हरि भाई यानि संजीव कुमार, अमजद खान, टुनटुन और बुढ़ापे में सारा कपूर खानदान क्या गज़ब लगते थे. अब आप बताइए मुगल-ए-आज़म में बादशाह अकबर की भूमिका में मोटे ताजे पृथ्वीराजकपूर साहब की जगह अगर इफ्तिखार खान साहब से या देवानंद साहब होते तो कैसा लगता?
मुंबईया सिनेमा से लेकर तेलगु सिनेमा तक आपको अधिकतर मोटे व्यक्ति ही अच्छे विलेन, चरित्र अभिनेता और कमेडियन की भूमिका में नज़र आएंगे. अपने मरहूम कादर खान साहब या अभी दक्षिण के मशहूर हास्य कलाकार ब्रह्मानंद जी को देख लीजिए. क्या बिंदास व्यक्तित्व और लाजवाब अभिनय है.
View this post on Instagram
ख़ैर दुनियां का दस्तूर है. लोग अपने पिचके गाल से ज्यादा दूसरे की तोंद की हंसी उड़ाते है. आप गौर करिए मोटे लोग बहुत गुस्सैल या बदमाश टाइप के मिलेंगे. ज्यादातर मोटे लोग आपको लोगों को हंसाते गुदगुदाते प्रख्यात अभिनेता प्रेमनाथ की तरह बॉबी फिल्म के गाने न चाहू सोना चांदी गाते और उसी जीवन दर्शन को जीते मिल जायेंगे.
अरे भाई जब ऊपर वाले ने शरीर बनाने में कोई कंजूसी नहीं की तो हम मोटे लोग उसके बनाए शरीर को सुखाकर पापड़ बनाने वाले कौन हैं? हम इस नश्वर देह को डॉक्टरों की सलाह और तमाम बीमारियों से लड़ते झगड़ते भी इसके दुबले होने का कष्ट बर्दाश्त ही नहीं कर सकते. क्या कहा आपने मोटे लोगो में डायबिटीज, बीपी और हाइपरटेंशन जैसे बीमारियों का खतरा होता है.
भाई इस बात को तो चलिए मानता हूं लेकिन बार बार मोटे लोगों को बीमारियों का घर न कहे. कुछेक लोगों को छोड़कर बाकी प्रकृति के बनाए नायाब प्राणी है. अपनी देह से उन्हें भी प्यार है लेकिन क्या करे मजबूर है. 30 -35 साल तक देह जैसी भी हो अच्छी लगती है उसके बाद बीबी के प्यार और काम का जंजाल दोनों में उलझा आदमी कहां से सुबह सुबह दौड़ लगा ले.
आप इसे आलस्य कहकर मुंह बिचका सकते है लेकिन बिस्तर और सोफे में घुसकर अपने देह की सच्चे अर्थों में हिफ़ाज़त हम मुटल्ले लोग ही करते है. फ़िलहाल इन सब बातों का मतलब ही क्या है फैशन है तो है. अब अम्मा से लेकर बच्चों की अम्मा ने हमें भी कुछ न सही तो कम से कम आईपीएस अधिकारी महोदय से प्रेरणा लेने की बात कहकर 10 किलो तक अपना वज़न कम करने का हुक्म सुना दिया गया है.
हम भी मन ही मन अपनी काहिलपने को समझा रहे है लेकिन लग रहा इस बार बचना मुश्किल है. मिठाई और घी तो पहले ही हमारे घरेलू डॉक्टर साहब बंद करवा दिए है. मज़े की बात यह बात जब अबकी होली में वे हमें समझा रहे थे तो उस वक्त चार पांच गुझिया अपने उदर में पहुंचा कर अपनी तोंद पर हाथ फेर रहे थे.
ये भी पढ़ें -
मिया खलीफा अब फ्री स्पीच की 'खलीफा' हैं, पाकिस्तान बेअदबी क्यों कर बैठा?
काश! बयान ये बता पाते कि उन्हें योगगुरु रामदेव दे रहे हैं या फिर 'सेठ रामदेव'
2018 में बने विष्णु के दसवें अवतार का 2021 में सेलिब्रिटी बन जाना, नमन रहेगा!
आपकी राय