पड़ोसी के घर कोरोना आने के लक्षण, और बचाव!
Coronavirus के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं मगर जैसा लोगों का रुख है उन्होंने लापरवाही की हद कर रखी है. आज भी हमारे आस पास तमाम महानुभाव ऐसे हैं जो मास्क (Mask), सेनेटाइजर (Sanitizer) और दो गज दूरी से परहेज कर रहे हैं. और कोरोना संक्रमण हो जाए तो बीमारी को छुपाकर इसका प्रसाद बांटने का काम अपना जी जान दांव पर लगाकर कर रहे हैं.
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इस समय कोरोना संक्रमण (Corona Infection) से पीड़ित परिवार और उनके स्वस्थ पड़ोसी दोनो ही धर्मसंकट का खतरा झेल रहे हैं. एक को अपनी पीड़ा साझा करने में तरह तरह की आशंकाएं हैं, तो पड़ोसी इसी कयासों के साथ दुबले हुए जा रहे हैं कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं? मतलब एक तो इंसान पहले से ही कम शैतान और झूठा न था, उस पर आ गया कोरोना. बोले तो 'करेला, नीम चढ़ा!' जी, हां! कहां तो हम सोच रहे थे कि कोविड-19 से त्रस्त इस दुनिया में अब मनुष्य पहले से कहीं अधिक समझदार और संवेदनशील हो जाएगा. पर न जी न! 'डोंट अंडर एस्टीमेट द नालायकपंती लेवल ऑफ़ दिस प्रजाति!' आरोग्य सेतु' भी किसी सरकारी पुल की तरह भरभराकर गिर गया. शुरू में तो सब उसे अपनी सुरक्षा हेतु ही इस्तेमाल कर रहे थे पर जैसे ही ख़ुद में लक्षण दिखने लगे तो इन्हीं महान लोगों द्वारा एप को ऐब की तरह देख, तत्काल प्रभाव से बर्ख़ास्त कर दिया गया.
तात्पर्य यह है कि हमें दूसरों से तो अपनी सुरक्षा की चिंता थी पर हमको संक्रमण होते ही इसे छुपाने पे पिल पड़े. मानो, कोरोना न हुआ ग़बन हो गया जी! अब तो जेल में फंसना पड़ेगा टाइप. इम्युनिटी सिस्टम फ़ेल क्या हुआ, लोग बच्चों की तरह अपनी मार्कशीट ही छुपाने लगे कि 'हाय, हाय दुनिया वाले क्या कहेंगे! कित्ती बेइज़्ज़ती की बात है!' मुए कोरोना ने इंसानों पर स्वार्थ का ऐसा मुलम्मा चढ़ा दिया है कि अब मनुष्य को मनुष्यता तक पहुंचने में कुछेक सदियां और लग ही जाने वाली हैं.
आज भी तमाम लोग ऐसे हैं जप प्रायः मास्क से बचते ही नजर आते हैं
अरे, भई! बीमारी ही तो है! क्या आपको इसके छुपाए जाने का खतरा सचमुच नहीं पता? चलिए, अगर कुछ लोग अपनी होशियारी दिखाने पर आ ही गए हैं तो देशहित में हमारा भी फर्ज बनता है कि इसका पर्दाफ़ाश करें!
ये हैं बीमारी छुपाए जाने के पांच प्रमुख लक्षण -
1- सहायकों को छुट्टी दे दी जाए अथवा दुमंज़िला मकान हो तो एक ही मंज़िल तक उसका आना-जाना सीमित कर दिया जाए.
2- फ़ोन पर बात करते समय उनकी भाषा में अतिरिक्त विनम्रता आ जाए या हर बात पर कहें कि 'भई! अब जीवन का क्या ठिकाना!'
3- अचानक ही उनका टहलना बंद हो जाए.
4- रोज जिनके यहां zomato की एक्टिवा खड़ी रहती थी, अब नदारद दिखने लगे.
5- नित राजनीति में डूबे प्राणी यकायक,सोशल मीडिया को अपनी जीवन-दर्शन से भरी पोस्ट से छलनी करने लगें!
और क्या कहें! बड़ी अजीब दुनिया है रे बाबा! बस, यही दिन देखने को रह गए थे! इस कोरोना ने तो सच्चाई का ऐसा जनाज़ा उठवाया है न कि न रोते बन रहा और न... हंसते तो हम वैसे ही कभी नहीं हैं.वैसे तो व्यक्तिगत बात है पर इस दुनिया में अब क्या अपना और क्या पराया! चलिए बताये देते हैं. पहले तो हमारी हेल्पर ने ही हमसे इस बीमारी को छुपाया, जैसे-तैसे हम ये बात बताने को ज़िन्दा बच गए.
इस दुःख से अभी पूर्ण रूप से उबर भी न पाए थे (बचने के नहीं, हेल्पर के झूठ के) कि पड़ोसी ने भी डिट्टो यही सितम ढा दिया. अब इस बात की भी बोल्ड और अंडरलाइन की गई बात ये है कि वो हेल्पर जिसे अपनी बीमारी छुपाते हुए जरा भी लाज नहीं आई थी, उसी ने ये ख़बर दी. उस पर ये भी बोली कि 'बेन, उन्होंने कितना गलत किया! बताना तो चैये था न?' उसकी इस मासूमियत पर उसके नहीं बल्कि अपने ही बाल नोचने और सिर धुनने का मन कर रहा था. दिल तो ये भी किया कि अभी ईश्वर के चरणों में पछाड़ें खाकर गिरुं कि 'आखिर, आप चाहते क्या हो?'
वो तो मेरे अच्छे करम के सदके, तभी एक देवदूत प्रकट हुआ. उसे तो मेरे मन की हर बात पहले से ही पता होनी थी. सो सीधे ही बोला, 'पड़ोसी का बेटा कैसा है?' मैं मुंह फुलाते हुए बोली, 'जब उन्होंने बताया ही नही कोविड का, तो हालचाल कैसे लूं? अब घर में है तो सही ही होगा!' वो बोला, 'पूछकर कन्फर्म कर ले न!' मैंने कहा कि 'न मरीज की भावनाओं से खिलवाड़ समझ लोग आहत हो सकते हैं.' वो गुस्से में भर बैठा, 'अबे भोली, उनकी भावना की ऐसी की तैसी! उनके घर की हेल्पर तुम्हारे घर आ रही थी, तो उन्होंने किस बात का ख्याल रखा?' फिर मेरे गाल पर प्यार भरी थपकी देते हुए बोला 'अरी भोली! उनसे ऐसे पूछ ले कि आपका बेटा कैसा है जिसको कोविड नहीं हुआ?' या फिर ये कहकर पूछ ले, 'आपका बेटा नहीं दिख रहा, कैसा है वो?' 'तू बस ऐसे 3-4 सवाल लिख कर ले जा, उनको पर्ची देकर कहना कि इनमें से किसी का भी जवाब दे दो! मतलब, उनको बुरा भी न लगे और अपने पेट में शांति भी पड़ जाए!
उसके आइडियाज को सुन मेरा ठीक वही हाल हुआ जो इस समय आपका हो रहा होगा. फिर भी हमने उससे कहा कि 'धक्के मार के निकाल देंगे मेरे को.' तो ज़नाब बोले, 'अबे, तो तू उधर मत जा न! अपनी बाउंड्री से उधर पर्ची फेंक दे और पड़ोसी को बोल कि उठा कर पढ़ लो, पीछे जवाब लिख देना.' या फिर ऐसा कर कि तू सीधे एक पब्लिक पोस्ट ही लिख दे कि 'मुझे पड़ोसी पर शक है. उनके घर में कुछ गड़बड़ है. वरना वो यूं मुंह लटकाए झूले पर बैठे नहीं रहते हैं. आज वो नज़रें चुरा रहे हैं.'
तो भई! हमने उसकी ये लास्ट वाली राय मान ली है. यदि आपको भी पता करना है कि 'पड़ोस में किसी को कोरोना हुआ है क्या' तो ये नुस्ख़े अपनाएं और सफ़लता मिलने पर हमारी फ़ीस अकाउंट में ट्रांसफर कर दें. फ़ीस न दें तो भी चलेगा बस मास्क पहनने, दो गज की दूरी और साबुन से हाथ धोने का पक्का वादा करते जाइए.
नारायण! नारायण!
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