व्यंग्य: पाक को मुहंतोड़ जवाब देना है तो गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित कर दीजिए
शर्माजी इंसाफवाले के साथ इंटरव्यू तो लंबा खिंच गया. बहुत सारी बातें हुईं लेकिन कई बातों पर उन्होंने ऑफ द रिकॉर्ड का सेंसर भी लगा दिया. पेश है इंटव्यू के संपादित अंश.
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उस रिपोर्टर को शर्मा जी इंसाफवाले का इंटरव्यू लेकर आने को कहा गया था. बड़ी मुश्किल से बनारस के मणिकर्णिका घाट पर किसी तरह उनसे संपर्क हो पाया. असल में वो अपनी किताब के सिलसिले में रिसर्च करने वहां पहुंचे थे. रिपोर्टर ने तो सोचा उनकी कोई संस्मरण लिखने की योजना होगी. हैरानी उसे तब हुई जब उसने किताब का नाम सुना - 'शव साधना से राष्ट्रवाद विमर्श और निष्कर्ष'.
इंटरव्यू तो लंबा खिंच गया. बहुत सारी बातें हुईं लेकिन कई बातों पर उन्होंने ऑफ द रिकॉर्ड का सेंसर भी लगा दिया. पेश है इंटव्यू के संपादित अंश.
रिपोर्टर - शर्मा जी...
[बीच में ही रोक कर शर्मा जी बोल पड़े.]
शर्माजी - ऐ मिस्टर, आप पूरा नाम लेंगे तभी इंटरव्यू हो पाएगा. पूरा नाम मतलब - शर्माजी इंसाफवाले.
रिपोर्टर - ओके सर. अगर पूरा नाम लेना भूल जाऊं तो सर बोल सकता हूं?
शर्माजी - चलेगा... चलेगा. अब तो कोई योर ऑनर बोलेगा नहीं, इसलिए सरजी चलेगा.
रिपोर्टर - ठीक है सरजी कोशिश करूंगा कि जी भी न छूटे.
रिपोर्टर - सरजी ये मोर वाला क्या चक्कर है. हमने तो टीवी चैनलों पर भी देखा है और यूट्यूब पर भी तमाम वीडियो भरे पड़े हैं.
शर्माजी - टीवी की तो बात ही मत करो. सब पेड न्यूज है - और यूट्यूब क्या है - सोशल मीडिया है. सोशल मीडिया पर तो सब फेक न्यूज ही है.
ये आंसू मेरे...
रिपोर्टर - सरजी टीवी मतलब मेरा न्यूज चैनल ने नहीं, मैं तो डिस्कवरी और नेट जियो जैसे चैनलों की बात कर रहा था.
शर्माजी - सब बकवास है. यही तो त्रासदी है. ज्ञान के लिए डिस्कवरी नहीं शास्त्र पढ़ो. जरूरी नहीं की सब किताबें ही खरीदो. नेट पर तो दुनिया भर का
शास्त्र पड़ा हुआ है. चाहो तो व्हाट्सऐप पर भी अच्छे ग्रुप ज्वाइन कर लो. वहां भी शास्त्रों पर गंभीर चर्चा होती है.
रिपोर्टर - अच्छा चलिये मोर की बात छोड़िये ये गाय को लेकर आइडिया आपको कहां से आया. कहीं आप भी मौजूदा माहौल से प्रभावित तो नहीं थे?
शर्माजी - क्या मूर्खों जैसी बातें करते हो. तुम लोग कुछ पढ़ते लिखते हो नहीं. अब मैं समझा हमारे एक मित्र तुममे से 90 फीसदी लोगों के बारे में अच्छी राय क्यों नहीं रखते.
एक बार राष्ट्रीय पशु घोषित करके तो देखो...
रिपोर्टर - आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया. मेरा सवाल था गाय को लेकर आइडिया...
शर्माजी - वही तो मैं कह रहा था. जिस तरह मोर के बारे में मैंने साइंटिफिक बातें बतायी हैं, उसी तरह गो-टियर्स पर भी शोध होनी चाहिये. कुछ न कुछ जरूर निकलेगा. मेरा तो विश्वास है कि इससे देश की फेमिली प्लानिंग की समस्या पूरी तरह हल हो सकती है. सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि फेमिली प्लानिंग सक्सेस हो गया तो फिर कभी इमरजेंसी लागू करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी.
रिपोर्टर - जी.
शर्माजी - अब गोबर को ही लीजिए. अब तक इसका बेस्ट इस्तेमाल सिर्फ कम्पोस्ट के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. अरे भई, ये सुपरफुड है. असल में आजकल की पीढ़ी का शास्त्रों से नाता ही टूट गया है. गोबर को अगर कैप्स्युल में भर कर उसका सेवन किया जाये तो महीनों खाने-पीने की जरूरत नहीं पड़ेगी. ये सब शास्त्रों में है, बस इंटरप्रेट करने और लैब में टेस्ट कर उसे मान्यता देने की जरूरत है.
रिपोर्टर - सरजी...
शर्माजी - अब आपको कुछ पूछने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गया हू्ं कि आपके मन में क्या चल रहा है.
रिपोर्टर - जी सरजी.
शर्मा जी - बस सुनते जाइए. हां, तो मैं गोबर की बात कर रहा था. अब गोमूत्र के बारे में भी जान लीजिए. सच तो ये है कि बस गोमूत्र ही एक ऐसा है जिसके बारे में थोड़ा बहुत लोगों को पता है. वैसे इसमें बाबा रामदेव का भी बहुत बड़ा योगदान है जिन्होंने कलियुग में सबसे पहले इसके गुणों को पहचाना और आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया है.
रिपोर्टर - जी सरजी.
शर्माजी - अब तक आपने सिर्फ पीपल के बारे में सुना होगा. गाय के बारे में भी वही मान्यता है. मान्यता से मतलब उस चीज के मान्यता प्राप्त यानी रिकग्नाइज्ड होने से है. इसे आप नया रिसर्च या आत्म ज्ञान भी कह सकते हैं जिसका अनुभव सिर्फ अनुभव से ही होता है. आपको पता नहीं है लेकिन गाय की श्वसनप्रणाली ऐसी है जिसमें सिर्फ ऑक्सीजन का ही आदान प्रदान होता है. कार्बन-डाई-ऑक्साइड का कोई रोल नहीं है. गाय जब सांस लेती है तो जो ऑक्सीजन अंदर खींचती है उसे और ज्यादा शु्द्ध करने के वो बाहर छोड़ती है. यानी अगर किसी को ऑक्सीजन देना हो तो मास्क लगाने की जरूरत नहीं बस उसे गाय के मुहं के पास ले जाइए और चमत्कार देखिये.
रिपोर्टर - जी सरजी.
[अब तक शर्माजी इंसाफवाले पूरे रौ में आ चुके थे. उन्हें रोकना या टोकना नामुमकिन था. वो बोलते जा रहे थे. उनके आगे जी बोलने के अलावा कोई चारा न था.]
शर्माजी - मैं तो कह रहा था कि गौरक्षकों को ऑटो-लाइसेंस दे देना चाहिये.
रिपोर्टर - मतलब!
शर्माजी - अरे यार, ऑटो लाइसेंस का मतलब ऑटो चलाने का लाइसेंस नहीं. जो भी कार्यकर्ता ऑलरेडी इस बिजनेस में हैं उन्हें यूं ही लाइसेंस दे देना चाहिये. अब बिजनेस को लेकर आपको कोई गफलत तो नहीं हुई ना?
रिपोर्टर - जी ना.
शर्माजी - मैं कहना चाहता हूं कि जो पहले से ही गौरक्षक के तौर पर काम कर रहे हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से लाइसेंस दे देना चाहिये. इसके लिए कुछ करना भी नहीं है. बस आधार नंबर लो और मुहर मार कर लाइसेंस दे दो.
रिपोर्टर - जी.
शर्माजी - देखो, ऐसा है कि गाय के राष्ट्रीय पशु घोषित होते ही सारे गोरक्षकों को कानूनी मान्यता मिल जाएगी. फिर अगर दलितों में से कोई बहिष्कार करता है तो उससे भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. वे खुद ही सब संभाल लेंगे.
रिपोर्टर - जी.
शर्माजी - गोरक्षकों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि वे हरदम ऑटोमोड में रहते हैं. उन्हें किसी के ऑर्डर की जरूरत नहीं होती. वे ऑटो डिसीशन लेते हैं. अगर एक बार उन्हें सीमा पर तैनात कर दिया जाये तो वो दिल्ली से आने वाले फरमान का इंतजार नहीं करेंगे - जैसे ही उनके मन में ऑटो विचार आया वो सामने वाले पर धावा बोल देंगे. सबसे पहले तो वो पाक अधिकृत कश्मीर पर कब्जा करेंगे. बलूचिस्तान को मान्यता देंगे. अगर मान्यता दे दिये तो आगे की लड़ाई भी वो खुद ही लड़ लेंगे. बलूचिस्तान के बाद पंजाब और सिंध को अलग अलग करके ही दम लेंगे. सुबह जब तक आपकी नींद खुलेगी. मैं आप से भी कह रहा हूं रिपोर्टर बाबू. उठते ही आप पाएंगे कि क्या लाहौर और क्या इस्लामाबाद, सारे नामोनिशान मिट चुके हैं. बस शुरू करने की जरूरत है. कोई काम आधा अधूरा छोड़ने से काम नहीं चलेगा. एक बार गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करके देखिये - फिर न तो राष्ट्रवाद को लेकर चिंता फिक्र की जरूरत होगी और न राम मंदिर निर्माण की और पाकिस्तान को ऐसा मुहंतोड़ जवाब मिलेगा कि वो ये भूल जाएगा कि सांस कहां से लें और...
रिपोर्टर - जी सरजी. थैक यू सरजी शर्माजी इंसाफवाले.
शर्माजी - जियो बच्चा. खूब खुश रहो. अच्छा इंटरव्यू छापना. फोटो भी बड़ा लगाना.
रिपोर्टर - जी सरजी.
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