गुटखा खाने के शाही स्वैग में कैंसर सिर आंखों पर है तो ये हावड़ा ब्रिज क्या चीज है!
हमेशा की तरह गुटखे के शौक़ीन शर्मसार हुए हैं. वजह गुटखे की पीक से सने हावड़ा ब्रिज की तस्वीर. किसी ज़माने में तंबाकू का शौक शाही कहा जाता होगा, लेकिन अब जबकि पता चल गया है कि इस शौक के चलते कैंसर होता है, तो फर्क क्या पड़ा? जब गुटखा खाने वालों को कैंसर मंजूर है तो हावड़ा ब्रिज क्या चीज है?
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सभ्य समाज में गुटखा खाने को असभ्यता की निशानी माना जाता है. और, गुटखा खोरों को भारतीय समाज की बहुसंख्य आंखें हिकारत भरी नजरों से देखती हैं. गुटखा जहां एक तरफ जाहिलियत की निशानी कहा गया है. तो वहीं इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि गुटखा तमाम बीमारियों का घर है. कैंसर, पिचके हुए गाल, ख़राब दांत गुटखे के साइडइफेक्ट्स के रूप में सैंकड़ों चीजें हमारे सामने हैं. यदि इनपर बात हो तो जो फेहरिस्त बनेगी वो खासी लंबी होगी. बावजूद इसके यदि आप किसी गुटखा खाने वाले से बात करें तो उसके लॉजिक चौंकाने वाले होंगे. तर्क तो जो दिए जाते हैं, सो दिए ही जाते हैं. लेकिन गुटखे को घिन्न का स्वरुप मानने वालों ने गुटखे की पीक को हमेशा ही एक बड़ी समस्या माना है. ऐसे लोगों का मानना है कि गुटखाखोर न मौका देखते हैं, न दस्तूर. जहां भी 'पास' मिला पिच्च से पिचकारी मारी... और फिर जगह का पूरा स्वरुप ही बदल गया. जहां थूका गया वो स्थान लाल या गेरुए रंग में रंग गया. वहीं जो गुटखे के शौक़ीन हैं उनके भी तर्क कम दिलचस्प नहीं हैं. ऐसे लोगों का मानना है कि हम आर्टिस्ट लोग हैं और मॉडर्न आर्ट के पक्षधर (ये कितना शर्मनाक है कि यहां वहां थूके हुए को ये लोग मॉडर्न आर्ट की संज्ञा देते हैं) हैं.
सभ्य समाज मेजॉरिटी में है और गुटखाखोर माइनॉरिटी में. इसलिए सुनना तो है ही. आए कोई भी और सुना दे. बेचारे गुटखाखोरों की जैसी स्थिति है, महसूस यही होता है कि इनका तो जन्म ही हुआ है शर्मिंदा होने के लिए.
कोलकाता के हावड़ा ब्रिज पर जो गुटखा खोरों ने किया है वो तंबाकू के शौकीनों को शर्मसार कर देगा
गुटखा खोरों को फिर शर्मसार किया गया है और दिल तोड़ने वाला ये कारनामा किया है, छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अवनीश शरण ने. असल में, अवनीश ने कोलकाता स्थित हावड़ा ब्रिज के एक पिलर की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की है. जिस पर गुटखा खाने वालों ने बड़े करीने से चित्रकारी की है. अवनीश शरण कह रहे हैं कि गुटखे की पीक हावड़ा ब्रिज को खा रही है. उन्होंने अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, अक्षय कुमार और अजय देवगन को भी टैग कर दिया है. जो अलग अलग गुटखों के ब्रांड एम्बेसेडर रहे हैं.
Kolkata Port Trust has said saliva laced with gutkha is corroding the iconic 70-year-old bridge. The Howrah Bridge is under attack from gutkha-chewers. @shahrukh_35 @akshaykumar @ajaydevgn @SrBachchan Source: Google pic.twitter.com/sriVMIULig
— Awanish Sharan (@AwanishSharan) April 21, 2022
आईएएस इतने पर ही रुक जाते तो भी ठीक था लेकिन उन्होंने तो जैसे कसम ही खा ली थी कि सिर्फ ट्वीट के जरिये ही वो गुटखाखोरों को भिगाकर जूते मारेंगे. उन्होंने दोबारा एक ट्वीट किया और बताया कि आखिर कैसे कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ने पुल को गुटखे की पीक से बचाने के लिए जुगाड़ कर लिया है.
देखिए ‘गुटका प्रेमियों’ की सुविधा के लिए ‘कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट’ ने कितना बढ़िया उपाय किया है. अब गुटका थूकने वालों को कोई ‘अपराध बोध’ का सामना नहीं करना होगा. साथ ही पुल की रक्षा भी ‘गुटके की हानिकारक केमिकल’ से की जा सकेगी. @iamsrk @ajaydevgn @akshaykumar pic.twitter.com/0TN67YiqU5
— Awanish Sharan (@AwanishSharan) April 22, 2022
अवनीश के इस ट्वीट पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गयी है. अल्पसंख्यक गुटखा लवर्स फिर से बहुसंख्यक गुटखा हेटर्स के निशाने पर हैं. किस्म किस्म की बातें हो सकती हैं लेकिन उससे पहले ये बता देना वक़्त की जरूरत है कि वो तमाम लोग जो गुटखा खाते हैं, शाही लोग हैं और उनका शौक शाही है. इतिहास पर नजर डालें तो मिलता है कि ताम्बुल और सुपारी का जिक्र तो वेदों में है. जनाब यज्ञ में देवता को इसकी आहुति दी जाती थी.
अब जबकि बात निकल ही आई है तो ये भी बताने की जरूरत है कि इसका सेवन कितना आध्यात्मिक और प्राचीन था. राजा महाराजा स्वागत ही इससे करते थे. नववधुएं पति से प्रथम मुलाक़ात में इसी पान के सहारे प्रेममय जीवन के सपने देखती थीं और किसी कवि को लिखना पड़ा- पान खाय सैंया हमार, किए होठ लाल. सावरी सूरत... राजा महाराजाओं से लेकर मुगलिया सल्तनत और नवाबों के दरबार और रियाया के बीच पान का पायदान हमेशा सम्मानित और ऊंचा रहा.
मकबूल में विशाल भारद्वाज ने एक गुण यह भी बताया कि पान की गिलौरी जुबान को काबू रखती है. देखिए. आज के राजे महाराजे यानी नेता पान खाना भूल गए और उनकी जबाने कितनी बेकाबू हैं. पान तो नव वधू से नगर वधू हर किसी के जरूरत की चीज रही. शान ओ शौकत की प्रतीक. सलीके और सभ्यता की निशानी. सल्तनतों और रजवाड़ों में सोने चांदी के पीकदान होते थे. जिसकी जैसी हैसियत वैसे पीकदान. पीतल के तांबे के और कांसे के भी. अब ये एल्युमिनियम के कूकर में खाना खाने वाली जमात क्या समझेगी...
हमारी किस्मत खराब थी जिस सोने चांदी से हमारे पीकदान बनते, उसे दुष्ट बिन कासिम ऊंट पर लूट कर अरब ले गया. बाकी बचा था लोहा तो उसे अंग्रेजों ने पिघलाकर ट्रेंने और पटरियां बना दीं. जो लोहा बचा उसे विलायत ले गए. पीकदान पर यह कहर यहीं नहीं रुका. हमें असभ्य कहकर अंग्रेजों ने तंबाकू-सुपारी के खिलाफ भी खूब प्रोपोगेंडा फैलाया ताकि अपनी सिगार बेच सकें.
एक बार फिर दोहरा दें कि तम्बाकू/ गुटखा खाना एक शाही शौक है. चूंकि पीकदान से लेकर उसे साफ़ करने वाले गुलामों तक अब हमारे पास कुछ बचा नहीं है इसलिए आदमी यहां-वहां थूक रहा है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने 70 साल पुराना पुल है या कोई सदियों पुराने किले की दीवार, पीक के सामने जो आएगा वो रंगा जाएगा. भई पान/ तम्बाकू/ गुटखे से नफ़रत अगर यहां वहां पीक से है तो इसके जिम्मेदार असल में कौन हैं? हम और आप तो नहीं?
मजाक की बात नहीं है लेकिन किसी ज़माने में यदि सभ्य/ चिंतनशील समाज की शान तंबाकू आज अगर बदनाम हुआ है तो इसके जिम्मेदार वो गिने चुके लोग हैं जिन्होंने 'शाही' फैक्टर को तो अपनाया लेकिन शालीनता को निकाल फेंका. पहले बड़े लोग पूरे एटीट्यूड से तंबाकू खाते थे लेकिन आज लोगों को सिर्फ इसलिए भुगतना पड़ रहा है कि लोग गुटखाखोर तो बन गए लेकिन उन्होंने सलीका छोड़ दिया.
जिस चीज के लिए कभी पीकदान हुआ करता था अगर उस चीज के लिए दीवारों, खम्बों, दराजों का इस्तेमाल होगा तो आलोचना भी होगी और लानत मलामत भी. बात बाकी ये है कि समस्या गुटखाखोर नहीं. नए नए और यहां वहां गुटखा थूकने वाले लोग हैं.
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