अय्यर जैसे "फूफाओं - जीजाओं" से, कांग्रेस और बीजेपी दोनों परेशान हैं
मणिशंकर अय्यर ने पीएम मोदी को नीच कहकर कांग्रेस के लिए गुजरात चुनाव में वही काम किया है, जो किसी शादी में बिगड़ैल या नशेड़ी फूफा-जीजा करते हैं.
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गुजरात चुनाव सिर पर हैं. भागा दौड़ी और दौरों का दौर है. पार्टी के अलावा राहुल गांधी तक चुनाव में व्यस्त हैं और उन्हें एक मिनट की भी फुर्सत नहीं मिल पा रही. पार्टी में सब बिजी हैं सिवाए मणिशंकर अय्यर के. ऐसे में बड़ा सवाल ये हैं कि ऐन चुनावों के वक़्त मणिशंकर अय्यर के बयान "नीच" क्यों हो जाते हैं. ये कोई पहली बार नहीं है कि अय्यर बहके हैं. पूर्व में भी ऐसे कई मौके आ चुके हैं, जब उनकी इस फिसली हुई जुबान का खामियाजा कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी दोनों को भुगतना पड़ा है. कांग्रेस ने अय्यर को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया है और उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है.
अय्यर ने अपने बयान से पूरी कांग्रेस को मुसीबत में डाल दिया है
जब मैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार, मणिशंकर अय्यर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को "नीच" और "असभ्य" कहने पर विचार कर रहा हूं. तो मुझे हमारी "इंडियन वेडिंग्स" की याद आ रही है. गुजरात चुनाव का माहौल बिल्कुल मुहल्ले की शादी जैसा है, जहां मुझे अय्यर किसी बिगड़ैल फूफा या जीजा की तरह लग रहे हैं. जो अटेंशन न मिलने से बौखलाए हुए इधर उधर टहल रहे हैं. ये छोटी छोटी बातों को बड़ा दिखाकर लोगों की नजर में आने का प्रयास कर रहे हैं. ये कभी रसगुल्ले के मीठे होने से आहत दिख रहे हैं तो कभी इस बात को मुद्दा बना रहे हैं कि हलवाई को पूड़ी रिफाइंड में नहीं बल्कि देसी घी में तलनी चाहिए थी ताकि उसका खस्तापन बरक़रार रहता.
समाज ऐसे फूफाओं और जीजाओं को बिल्कुल भी पसंद नहीं करता और इनसे दूरी बनाकर रहता है. बात शादियों की हो रही थी तो हम अपने आस पास कई ऐसे मौके देख चुके हैं, जब हमने लोगों को ऐसे फूफा और जीजाओं का सामाजिक बहिष्कार करते देखा है. इस समाज में हम ये भी देख चुके हैं कि इन फूफओं और जीजाओं से त्रस्त हुए लोगों ने, पहले टिक्की का पत्ता न मिल पाने और गोलगप्पे न खाने के चलते मुंह फुलाए फूफाओं और जीजाओं को शादी में ले जाना छोड़ दिया है. हम ये भी देख चुके हैं कि कैसे हर बात पर आयोजन का मजा किरकिरा करने वाले ये फूफा और जीजा दिखाते तो यही हैं कि इन्हें भी शादी में नहीं जाना मगर सबसे पहले सूट या कुर्ता पैजामा लेकर धोबी के यहां उसे प्रेस कराने यही लोग जाते हैं.
यदि कांग्रेस ने अय्यर जैसों पर नकेल नहीं कसी तो भविष्य में स्थिति गंभीर होने वाली है
आखिर क्यों ये बिगड़ैल फूफा और जीजा माहौल खराब करते हैं
इस सवाल के जवाब के लिए हमें किसी मनोवैज्ञानिक द्वारा 100-150 लोगों पर किये गए शोध की जरूरत बिल्कुल नहीं है. न ही ये इतना बड़ा विषय है कि इसे किसी शोधकर्ता की 500 पन्नों की केस स्टडी रिपोर्ट से जोड़ा जाए. बहुत सिंपल सी बात है दूर के ये फूफा या जीजा बस पहचान के शिकार हैं. हां ये बेचारे "आइडेंटिटी क्राइसिस" के मारे हैं. प्रायः ये देखा गया है कि इन्हें साल भर कोई पूछता नहीं है, इनकी कहीं कोई बात भी नहीं होती लेकिन जब घर में विवाह जैसा बड़ा आयोजन होता है और घर रिश्तेदारों से पटा पड़ा होता है तब ये ऊल जलूल हरकतें करते हुए सबकी नजरों में बने रहना चाहते हैं.
कहा जा सकता है कि शादी के ऐन वक़्त पर इनकी हरकतें ऐसी हो जाती हैं कि उसे झेलना व्यक्ति की ज़रूरत नहीं बल्कि मजबूरी हो जाता है. और तब कोशिश बस ये रहती है कि कैसे भी करके इन्हें मुख्य आयोजनों से दूर रखा जाए ताकि ये अपनी हरकतों से व्यवधान न डालें. हालांकि ये दूर होते हैं मगर इनको लेकर विडंबना तब खून के आंसू रोती है जब ये मुख्य आयोजन में आ जाएं और अपने ही पक्ष की भरपूर बेइज्जती करवा दें.
अय्यर अकेले नहीं है कांग्रेस के नुकसान के लिए सिब्बल भी बराबर के जिम्मेदार हैं
जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं. गुजरात चुनाव रूपी शादी सब ठीक ठाक चल रहा था. घर में नए नए मुखिया बने राहुल गांधी की कूटनीति और मेहनत दोनों अपना रंग दिखाने लग गयी थीं. काफी हद तक माहौल कांग्रेस के फेवर में था, राहुल गांधी इस चुनाव को लेकर गंभीर जान पड़ रहे थे और कई बार कार्यकर्ताओं को को निर्देशित कर चुके थे कि कोई भूलकर भी प्रधानमंत्री या भाजपा की बुराई नहीं करेगा या ही कोई बेतुके बयान देगा. इतने दिशा निर्देशों को दरकिनार करते हुए फूफा मणिशंकर अय्यर ने घर के मुखिया राहुल गांधी की बात को कोई खास तवज्जो नहीं दी और ऐसा बयान दे दिया कि अब तक की सारी मेहनत और करे कराए पर पानी फिर गया.
बयान से उपजे विवाद में भाजपा भी कोई पीछे नहीं है. इसके नेता भी इसे आलोचना की भट्टी में झोंकते हैं
समाज है तभी राजनीति है जैसे समाज में लोग ऐसे फूफाओं और जीजाओं से परेशान हैं वैसे ही राजनीति में भी ऐसे फूफा और जीजा भरे पड़े हुए हैं. बात कांग्रेस पार्टी की हो तो वहां मणि शंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी ऐसे फूफाओं और जीजाओं का काम कर रहे हैं भाजपा में ये भूमिका मनोहर लाल खट्टर, अडवाणी, साक्षी महाराज, गिरिराज सिंह,योगी आदित्यनाथ, सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे लोग निभा रहे हैं.
समाज और राजनीति में समानता है समाज भी फूफाओं और जीजाओं के चलते मजा किरकिरा होने के कारण शादियां खराब होने से परेशान है. राजनीति के भी बुरे हाल हैं. चूंकि राजनीति समाज से जुड़ी है. अतः राजनीति भी ऐसे लोगों की बदौलत दूषित हो रही है. कह सकते हैं फूफा और जीजा अपनी कुंठाओं में डूबे हैं और ये उसी नाव में छेद कर रहे हैं जिसमें ये सवार हैं. इनके ऐसा करने से वो लोग आए दिन अवसाद का शिकार हो रहे हैं, जो इन्हें और इनके नखरों को झेल रहे हैं. अंत में बस इतना ही कि अब वो वक़्त आ गया है जब "घर के लोग" इन बखेड़ा खड़ा करने वाले फूफाओं और जीजाओं के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा दें, कहीं ऐसा न हो, जब तक बिगुल बजे और क्रांति आए तब तक बहुत देर हो जाए.
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